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थोड़ा सा धीरज, थोड़ा सा विश्वास

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 चाहते हो अगर शांति , सुकून , सुख सच्चा चाहते हो अगर शांति , सुकून , सुख सच्चा , तो थोड़ा सा धीरज , थोड़ा सा विश्वास धारण करना होगा। अधीर मन दुश्मन शांति का , बने काम पल भर में बिगाड़ दे , दही अभी जमा भी नहीं था कि कच्चे दूध से मक्खन निकालने लगे। रिश्तों की डोर बड़ी नाजुक , गलतफहमी विष विकराल जड़ घातक , बिना कारण समझे , पल भर में निष्कर्ष पर उतरना संघातक। थोड़ा सा धीरज धारण कर तो देख अधीर मन , काल को भी पक्ष में करने की कला सीख ली फिर तूने , विरोधियों की क्या विसात , दुश्मन भी तेरा लौहा मानेंगे । लेकिन अधीर मन , नहीं अगर धीरज इंतजार का ,  हथेली पर फल की चाह तत्काल बीज गलने से पहले , तो फिर , प्रतिक्रिया , वाद-प्रतिवाद, संतप्त जीवन रहेगी नियति , उर में अशांति धारण किए , फिर , बाहर अंधकार की शिकायत बेमानी। सच्चाई-अच्छाई-भलाई की भी है कोई शक्ति ,  विश्वास कर , आजमा कर दो देख , अपमान नहीं किसी का , उपेक्षा हो सकती है ,  थोड़ा सा धीरज धारण कर तो देख। चाह अमृत फल की , लेकिन चाल सारी नश्वर जगत की , शाश्वत के संग , प्

यात्रा वृतांत – हरियाली माता के देश में, भाग-2

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जंगलीजी का मिश्रित वन – एक अद्भुत प्रयोग, एक अनुकरणीय मिसाल जगत सिंह जंगली जी स्वयं स्वागत के लिए सड़क पर खड़े दिखे। उनकी व्यस्तता के बीच हमें उम्मीद नहीं थी कि आज मिल पाएंगे, लेकिन इन्हें प्रत्यक्ष देखकर व इनके आत्मीय स्पर्श को पाकर हम सब भावविभोर हुए। हाथ में देवदार व रिंगाल की ताजा हरि पत्तियों से इनका किया गया भावपूर्ण स्वागत ताउम्र याद रहेगा। यहाँ सड़क के ऊपर और नीचे दो अलग-अलग संसार व विचार से अवगत हुए। सड़क के ऊपर था बन विभाग का चीड़ के वृक्षों से अटा जंगल और सड़क के नीचे था जंगली जी का लगभग 60 किस्मों के वृक्षों से जड़ा 4 हेक्टेयर में फैला मिश्रित बन। सड़क के ऊपर के जंगल गर्मी में किसी भी दिन एक चिंगारी दावानल का रुप लेकर पूरे जंगल, व वन्य जीवन को स्वाहा कर सकती थी, जबकि नीचे के हरे-भरे जंगल में ऐसी विभीषिका की संभावना न के बरावर थी। सड़क से नीचे सीढ़ी दार ढलान से उतरते ही हम जंगलीजी के अद्भुत जंगल में प्रवेश कर चुके थे। जिसकी शीतल छाया, बह रही ठंड़ी हवा, रास्ते में स्वागत करते नन्हें से लेकर मध्यम व बड़े पेड़ और सबसे ऊपर बन प्रांतर की नीरव शांत