यात्रा वृतांत - हमारी कोलकाता यात्रा - भाग1

भावों के सागर में एक डुबकी संचार की अवधारणा को लेकर आयोजित एक बौद्धिक संगोष्ठी (कॉन्फ्रेंस) में जाने का संयोग बना, सो अपने दो युवा सहयोगी, सहशिक्षकों के साथ इसमें भागीदारी के लिए कोलकाता चल पड़े। अंतिम समय तक सीट रिजर्व नहीं थी, लेकिन अंतिम कुछ घंटों में रिजर्वेशन कन्फर्म होने के साथ लगा, जैसे दैवी कृपा साथ में है। रात ठीक 1030 बजे दून एक्सप्रेस हरिद्वार से कोलकाता की ओर चल पडी। यात्रा की भ ाव भूमिका - भावों की अतल गहराई लिए हम इस यात्रा पर जा रहे थे। यही वह वंग भूमि है जिसने हर तरह की विभूतियों से इस भारतभूमि को धन्य किया है और विश्व को अजस्र अनुदान देकर मानवता को कृतार्थ किया है। साहित्य हो या कला, फिल्म हो या स्वतंत्रता संग्राम - हर क्षेत्र में इसके विशिष्ट योगदान रहे हैं, और सर्वोपरि धर्म-अध्यात्म क्षेत्र में तो इसका कोई सानी नहीं। श्री रामकृष्ण परमहंस-स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद, स्वामी प्रण्वानन्द, कुलदानंद व्रह्मचारी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी विशुद्धानंद, महायोगी श्री अरविंद, सुभाषचंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर, विपिन चंद्र पाल,....इस वीर प्रसुता दिव्य भूमि, इस ती