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यात्रा वृतांत - मेरी पोलैंड यात्रा, भाग-2

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बिडगोश शहर का पहला दिन, पहला परिचय                    बिडगॉश – छोटा सा एयरपोर्ट, लेकिन कितना सुंदर। चारों और ऊँचे-ऊँचे पाईन ट्री से घिरा। यहाँ के पाईन ट्री इस तरह से नीचे से तराशे होते हैं कि इनका ऊपरी हिस्सा ही घनी हरि पत्तयों से भरी टहनियों से लदा होता है। निसंदेह रुप में ये हमारे चीड़ के पेड़ों से अधिक समार्ट लगते हैं व सुंदर भी। इनमें कुछ-कुछ देवदार की झलक मिलती है।  यहाँ लुफ्तांसा के रिजनल यान से उतरकर विडगोश हवाई अड्डे के अंदर आते हैं, दिल्ली एयरपोर्ट से चढ़ा अपना लगेज एकत्र करते हैं। बाहर काजिमीर विल्की यूनिवर्स्टी के इंटरनेशनल रिलेशन विभाग की मेडेम अग्नयशिका चालक के साथ हमारे स्वागत के लिए खड़ी थी। इनका नाम हिंदी के अग्नि और यशिका शब्दों से जोड़कर हमारे लिए याद रखना आसान रहा। हमारा पहला संवाद इन्हीं से होता है। इनका आत्मीय संवाद एकदम नए एवं अपरिचित परिवेश की हमारी स्वाभाविक दुबिधा को हल्का कर देता है। बातचीज से पता चला कि ये भारत आ चुकी हैं, हमारे ही विश्वविद्यालय में कुछ दिन रुक चुकी हैं, जिसे ये भावपूर्ण याद कर रही थींं।  एयरपोर्ट के करेंस