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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

फिल्म समीक्षा – तान्हाजी, द अनसंग वॉरियर


स्वराज के अमर योद्धा की अद्वितीय शौर्य-बलिदानी गाथा

बाहुबली के बाद एक ऐसी फिल्म आई है, जो दर्शकों को अपने सिनेमाई करिश्मे के साथ मंत्रमुग्ध कर रही है और उनमें एक नया जोश, एक नयी ऐतिहासिक समझ व सांस्कृतिक चेतना का संचार कर रही है। मराठा योद्धा तानाजी मालुसरे के अप्रतिम शौर्य, बलिदान एवं अदम्य साहस की गाथा पर आधारित यह फिल्म शुरु से अंत तक दर्शकों को बाँधे रखती है। इसके कथानक की कसावट, चरित्रों के रोल, चाहे वे तानाजी के रुप में अजय देवगन हों, खलनायक उदयभान सिंह राठौर के रुप में सैफ अली खान या सावित्री बाई के रुप में काजोल या छत्रपति शिवाजी महाराज के रुप में शरद केलकर या अन्य – सभी अपनी जगह सटीक छाप छोड़ते हैं। पृष्ठभूमि में सुत्रधार के रुप में संजय मिश्रा की आबाज अपना प्रभाव डालती है। एनीमेशन एवं वीएफएक्स का उत्कृष्ट प्रयोग इसकी विजुअल अपील को ज्बर्दस्त ढंग से दर्शकों को हर दृश्य में हिस्सेदार बनाती है। गीत-संगीत एवं नृत्य भी स्वयं में बेजोड़ है, जिनमें भागीदार होकर दर्शक शौर्यभाव से भर जाते हैं। युद्ध के बीच-बीच में हल्की कॉमेडी दर्शकों को गुदगुदाती है तो मानवीय भावों के मार्मिक चित्रण दर्शकों को भावुक कर देते हैं।

आश्चर्य नहीं कि जीवंत इतिहास के रोमाँचक पलों के साक्षी बनते हुए दर्शकों के अंदर जैसे भावनाओं का समन्दर लहलहा उठता है और फिल्म के अंत में नम आँखों के साथ दर्शक बाहर निकलता है। कुल मिलाकर अनसंग वॉरियर तानाजी का चरित्र दर्शकों के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है।

आश्चर्य नहीं कि पहले दिन से फिल्म को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ उमड़ रही है और 2020 की यह सबसे लोकप्रिय एवं हिट फिल्म के रुप में उभरी है। 8.6 की आईबीडीएम रेटिंग के साथ बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने धमाल मचा रखा है। दूसरे सप्ताह भी तान्हाजी का जादू दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा है। बॉक्स आफिस पर महज सप्ताह में 100 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है और इस सप्ताह 200 करोड़ की ओर अग्रसर है और आगे यह किन नए रिकॉर्ड को स्थापित करती है, देखना रोचक होगा।
विदित हो कि सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक लगभग पूरा भारत मुगल शासकों के अधीन था। शिवाजी के पिता शाहजी भौंसले मुगल शासन में एक सैन्य अधिकारी के रुप में कार्यरत थे। माता जीजाबाई नहीं चाहती थी कि उनका वेटा शिवा भी मुगलों के अधीन काम करे। वे बालक शिवा को बचपन से ही रामायण-महाभारत की कथाओं के माध्यम से स्वतंत्रता, स्वाभिमान एवं शौर्य की भावना कूट-कूट कर भरती हैं।
दादाजी कोन्डेव उन्हें युद्धकला एवं नीतिशास्त्र में पारंगत बनाते हैं। साहसी एवं स्वाभिमानी मराठों को इक्टठा कर बालक शिवा उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और मात्र 15 साल की आयु में तोरण का किला जीतकर स्वराज की ओर पहला कदम उठाते हैं। इस तरह इनका विजय अभियान आगे बढ़ता है और कई किले इनके अधिकार में आ जाते हैं तथा स्वराज की परिकल्पना मूर्त होने लगती है। मुगल शासक औरंगजेब को यह विस्तार नागवार गुजरता है और वो विराट सेना के साथ हमला करवाता है। मध्यम मार्ग अपनाते हुए पुरन्दर की संधि होती है, जिसमें कोन्ढाणा सहित 23 किले खो बैठते हैं। कूटनीतिक चाल चलते हुए मुगल शासन मराठा शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से राजपूत यौद्धा उदयभान सिंह राठोर को कोन्ढाणा का सरदार बनाते हैं।
कोन्ढाणा का किला रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ माता जीजावाई को विशेषरुप से प्रिय था, जिसको अपने अधिकार में लाने की दृष्टि से शिवाजी महाराज स्वयं धावा करने की तैयारी करते हैं।

ईधर तानाजी अपने बेटे की शादी का निमंत्रण लेकर राजगढ़ पहुँचते हैं। जब पता चलता है कि कोन्ढाणा के किले के लिए युद्ध की तैयारियाँ चल रही हैं, तो वे इसका जिम्मा स्वयं पर ले लेते हैं। तानाजी एक बार छद्मवेश में जाकर किले का पूरा मुआइना करते हैं और इसके बाद पाँच सौ मराठा यौद्धाओं को साथ लेकर दो हजार सैनिकों से आबाद किले पर चढ़ाई करते हैं। इसके लिए वे रात के अंधेरे में किले के चढ़ाईदार पश्चिमी हिस्से से उपर चढ़ते हैं, जहां पहरा कम रहता है तथा कल्याण दरवाजे से प्रवेश करते हैं और अंदर घमासान युद्ध होता है।
 युद्ध के दौरान एक हाथ कटने के बाद, तानाजी इस पर पगडी लपेट कर ढाल के साथ लड़ते हैं। युद्ध में अंततः उदयभान सिंह राठोर परास्त हो जाता है, लेकिन तानाजी भी वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। किला मराठाओं के कब्जे में आ जाता है, लेकिन वे अपना सरदार खो बैठते हैं। इस पर शिवाजी महाराज के शब्द थे – गढ़ आला पण सिंह गेला अर्थात् गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेरा सिंह नहीं रहा। तब से कोन्ढाणा किले का नाम सिंहगढ़ पड़ता है। पुना से महज 35 किमी दूर सिंहगढ़ आज एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो इस फिल्म के बाद पूरे देश की नजर में आ चुका है। युद्ध के बाद शिवाजी महाराज स्वयं तानाजी के बेटे की शादी करवाते हैं और तानाजी का बूत स्मृति समारक के रुप में सिंहगढ़ में स्थापित होता है।

उत्कृष्ट एनीमेशन एवं वीएफएक्स का उपयोग करते हुए किले को व युद्ध के हर दृश्य को जीवंत तरीके से दर्शाया गया है। युद्ध का फिल्माँकन हॉलीबुड की किसी भी युद्ध फिल्म से कम नहीं है, जिसमें भारतीय सिनेमा (बालीवुड़) के विश्व सिनेमा की ओर बढ़ते कदमों की आहट देखी जा सकती है। ऐसे तकनीकी कौशल से बनी फिल्में विदेशों में जहाँ इससे कई गुणा अधिक बजट में बनती है, वहीं यह फिल्म महज 150 करोड़ रुपए में तैयार हुई है, जिसे कुछ विशेषज्ञ भारत के मंगल ग्रह पर भेजे चंद्रयान की तरह किफायती प्रयोग मान रहे हैं। मालूम हो कि फिल्म के एनीमेशन व वीएफएक्स में स्वदेशी तकनीशियनों ने काम किया है।
हमारे विचार में तान्हाजी बाहुबली के बाद एक दूसरी बेमिसाल फिल्म आई है, जो दर्शकों के जेहन को कहीं गहरे छू जाती है। साथ ही ऐतिहासिक दस्ताबेजों के ऊपर आधारित होने के कारण तान्हाजी का असर बाहुबली से कहीं अधिक गहरा एवं व्याप्क प्रतीत होता है, क्योंकि इसके साथ छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य एवं दिव्य चरित्र भी अभिन्न रुप में जुड़ा हुआ है।
फिल्म के माध्यम से जहाँ दर्शकों की ऐतिहासिक समझ रवाँ हो रही है, वहीं स्वदेश एवं राष्ट्रभक्ति के भावनाएं हिलोंरें मार रही हैं। जिस पावन भाव के साथ इसके निर्देशक ओम राउत एवं प्रोड्यूसर अजय देवगन ने फिल्म को बनाया है, वह दर्शकों को कहीं गहरे छू रहा है। कहीं से भी हल्के फिल्मी मनोरंजन को परोसने की कुचेष्टा यहाँ नहीं दिखती। पात्रों के चरित्र के साथ उचित न्याय इस फिल्म की विशेषता है, जो आशा है कि अनसंग वॉरियर की श्रृंखला की अगली कढ़ियों में भी बर्करार रहेंगी।

यदि आपने यह फिल्म अभी तक न देखी हो तो बड़े थियेटर में जाकर अवश्य देखें। लेप्टॉप या मोबाईल पर इसके साथ न्याय नहीं हो पाएगा।
कुछ तथ्य जो फिल्म को और भी दर्शनीय बनाते हैं –
1.     अजय देवगन के फेन्ज के लिए यह फिल्म एक ट्रीट से कम नहीं है, जो इनकी 100वीं फिल्म भी है। काजोल के साथ इनकी भूमिका के कारण फिल्म ओर भी विशिष्ट बन गई है। दोनों आठ साल बाद एक साथ किसी फिल्म में काम कर रहे हैं।

2.  खलनायक उदयभान सिंह राठोर के रुप में सैफ अली खान का अभिनय दर्शनीय है।
3.     छत्रपति शिवाजी महाराज के रुप में शरद केलकर भी भूमिका बेजोड़ है। याद हो कि डब्ब की गई एसएस राजामौली की फिल्म बाहुबली के हिंदी संस्करण में इन्हीं की आबाज बाहुबली के रुप में गूंजती रही है।
4.     मराठा शौर्य पर आधारित यह फिल्म इतिहास का जीवंत दस्तावेज है। अपने इतिहास से अनभिज्ञ या भूला बैठी पीढ़ी के लिए यह फिल्म एक प्रभावी एवं जीवंत शिक्षण से कम नहीं है।
5.     फिल्म का थ्री-डी संस्करण भी उपलब्ध है, जिसमें थ्री-डी चश्में के साथ फिल्म के दृश्यों व घटनाओं का सघन फील लिया जा सकता है। हालाँकि फिल्म का दू-डी संस्करण भी स्वयं में जीवंत एवं प्रभावशाली है।

शनिवार, 29 अप्रैल 2017

फिल्म समीक्षा - एसएस राजामौली का सिनेमाई जादू फिर चला




भारतीय सिनेमा में नए मानक गढ़ती बाहुबली-2
बाहुबली के पहले संस्करण ने दर्शकों को जिस जादूई आगोश में बाँधा था, उसमें निहित प्रश्नों के उत्तर पाने व उसकी पूरी कहानी जानने के लिए बाहूबली-2 का सबको पिछले दो वर्षों से बेसब्री से इंतजार था। सो तमाम परिस्थितिजन्य प्रतिकूलताओं को चीरते हुए दर्शक बाहुबली बनकर सिनेमा हाल पहुँचे। सस्पेंस था कि बाहुबली का दूसरा हिस्सा कसौटियों पर खरा उतरता भी है या निराश करता है। लेकिन जब पूरी बाहुबली देखी तो लगा कि एसएस राजामौली का सिनेमाई जादू बर्करार है, बल्कि नए स्तर को छू गया है, जिसके चलते फिल्म हर दृष्टि से नए मानक स्थापित कर रही है। अखिल भारतीय फिल्म के साथ बाहुबली-2 का दिग्विजय अभियान पूरे विश्व में जारी है। फिल्म का जादूई रोमाँच, पात्रों की सशक्त भूमिका, कथा की कसावट, भावों के रोमाँचक शिखर, प्रकृति के दिलकश नजारे, अदाकारों का बेजोड़ अभिनय, कर्णप्रिय संगीत - सब मिलकर दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रहे हैं और शुरु से अंत तक बाँधे रखते हैं। 
इस सब के बीच युद्ध के बीभत्स दृश्य, खलनायकों की कुटिल चालें बीच-बीच में कुछ विचलित अवश्य करती हैं लेकिन अंत तक न्यायपूर्ण समाधान के साथ दर्शकों को गहरे संतोष के भाव से भर देती हैं। भारतीय परम्परा में सत्यमेव जयते, धर्मो रक्षति रक्षतः, सत्यं-शिवं-सुंदरं के भाव बोध के साथ फिल्म की समाप्ति दर्शकों को गहन तृप्ति, तुष्टि और आनन्द से सराबोर कर देती है। 
कुल मिलाकर बाहुबली-2 इसके पिछले संस्करण से उपजी आशा-अपेक्षाओं पर खरा उतरती है और ऐसे ऊच्च मानक स्थापित करती है, जिसपर खुद को सावित करना बॉलीवुड़ सहित अन्य भाषायी फिल्मों के लिए कठिन ही नहीं दुष्कर होगा। बॉक्स ऑफिस पर पहले ही बाहुबली-2 नए मानक स्थापित कर चुकी है। 28 अप्रैल को दिखाए जाने से पहले ही 250 करोड़ बजट की यह फिल्म 500 करोड़ कमा चुकी थी। पहले ही दिन 28 अप्रैल को यह फिल्म विश्वभर में 200 करोड़ रुपए कमा लेती है,  जहाँ तक पहुँचने के लिए बॉलीवुड सुपरहिट फिल्मों को हफ्तों लग जाते हैं। कुल मिलाकर अनुमान है कि बाहुबली-2 1000 करोड़ रुपए के जादूई आंकड़े को पार कर जाए तो आश्चर्य नहीं। (बल्कि नौवें दिन बाहुबली-2 इस मानक को पार कर जाती है, अब 1500 करोड़ इसका अगला मानक है।) आईएमडीबी के अंतर्राष्ट्रीय मानक पर 9.1 रेटिंग के साथ यह वैश्विक स्तर पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर रही है, जो आगे कितना बर्करार रहती है देखना रोचक होगा। कुल मिलाकर भारतीय सिनेमा ही नहीं विश्व सिनेमा के इतिहास में बाहूबली एक कालजयी फिल्म के रुप में अपना स्थान पाती दिख रही है।
इंटरवल के पहले हिस्से में प्राकृतिक दृश्यों का फिल्माँकन एक जादूई दुनियाँ में ले जाने वाला है। चाहे घाटियाँ हों या बर्फीले पहाड़, नदियाँ हों या फूलों से सजे खेत-बागान, हर जगह सीजीआई और विजुअल इफेक्ट तकनीक का बेहतरीन उपयोग, दर्शकों को एक आलौकिक सौंदर्य़ सृष्टि में विचरण की अनुभूति देता है, जिसमें कनाडा के रॉकी माउँटेन, यूरोप के आल्पस, एशिया की गगनचूम्बी पर्वत-श्रृंखलाओं एवं हिमालय की हिमाच्छादित दिलकश वादियों के दिग्दर्शन किए जा सकते हैं। एनीमेशन के माध्यम से पूरे विश्व के प्राकृतिक सौंदर्य़ को फिल्म में समेटने का यह प्रयास प्रकृति प्रेमियों के लिए ग्लोबल सिनेमा का एक बेजोड़ प्रयोग प्रतीत होता है।
इसके नारी पात्र पिछली बार की तरह बहुत ही सशक्त और दमदार हैं। राजमाता शिवगामी का चरित्र स्वयं में बेजोड़ है। ममतामयी, दृढ़ प्रतिज्ञ, नीतिज्ञ किंतु कहीं-कहीं राजसी अतिरेक में निर्णय की चूकें, इनकी विशेषता है। जो कहानी को आगे बढ़ाने के हिसाब से इंसानी पात्रों की जरुरत भी है। राजकुमारी देवसेना अपने अप्रतिम सौंदर्य़, शौर्य-पराक्रम, राजसी स्वाभिमान और युद्ध कौशल के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती है। इसके साथ महायौद्धा राजकुमार अमरेंद्र बाहूबली की जोड़ी खूब जमती है। फिल्म के पूर्वार्ध में प्रेम प्रसंग के दृश्य हल्की कॉमेडी के साथ दर्शकों को गुदगुदाते और रोमाँचित करते हैं, जिसमें मामा कट्टप्पा और बाहूबली छद्म बेश में देशाटन के लिए निकले होते हैं। राजकुमारी देवसेना के राज्य में इनकी लीला दर्शक खुद ही देख कर फिल्म के पूर्वाद्ध का रहस्य-रोमाँच भरा लुत्फ उठा सकते हैं।
फिल्म में राजमाता शिवगामी, अमरेंद्र बाहूबली, देवसेना व कट्टप्पा जैसे सशक्त पात्रों के साथ कहानी को आगे बढ़ाने के लिए राजकुमार भल्ललादेव और इनके पिता बाजाला देव की कुटिलता, धूर्तता, सत्ता लोलुपता और क्रूरता सब मिलकर दुर्घष संघर्ष, रोमहर्षक युद्ध के दृश्य प्रस्तुत करती है, जिसके लोमहर्षक दृश्य कमजोर दिलवालों को बीच-बीच में बिचलित कर सकते हैं। लेकिन एसएस रोजामोली का ऐसे दृश्यों का कलात्मक फिल्माँकन अपने आप में बेजोड़ है, जिनको दर्शक बखूबी लुत्फ उठाते हुए देख सकते हैं। युद्ध दृश्यों का फिल्माँकन विश्व की श्रेष्ठतम युद्ध फिल्मों से किसी तरह कमतर नहीं है। 
मार्शल आर्ट फिल्मों के दर्शक अमरेंद्र बाहुबली के फाइटिंग सीन्ज में ड्रंक्ड कुंगफू मास्टर की शैली को देख सकते हैं। देवसेना के सौंदर्य-प्रेम में डूबे राजकुमार की अलमस्त किंतु अचूक युद्ध शैली दर्शकों का खासा मनोरंजन करती है। सफेद नंदियों की पीठ पर आगे बढ़ता बाहुबली एंटर द न्यू ड्रेगन के कुंग्फू मास्टर टॉनी झा के हाथी के पीठ पर दौड़ते सीन की याद दिलाता है। वृक्षों, पर्वत शिखरों व दिवारों को लांघटे-फांदते बाहुबली को देख सहज ही टार्जन से लेकर इंद्रजाल कॉमिक्स के महानायकों का अपराजेय शौर्य-पराक्रम दर्शकों की सांसे थाम कर देखने के लिए सीटों पर बाँधे रखता है।
देेवसेना के कुंटल राज्य से बापसी का दृश्य स्वयं में एनीमेशन तकनीक की विलक्षण क्षमता का परिचायक है, जो परिलोक का स्वर्गोपम दृश्य जीवंत कर देता है। कुछ पल के लिए समुद्री यान को पंख लग जाते हैं, सफेद बादलों के घोड़ों के संग यह हवाई यान बन जाता है। देवसेना और बाहुबली का प्रेम प्रसंग यहाँ टाइटेनेिक फिल्म के यादगार दृश्य सी अनुभूति देता है। समीक्षकों का यह कथन कि फिल्म का हर सीन मानो एक आइटम सीन है, बाहुबली-2 पर सटीक बैठता है।


पिछली फिल्म से चला आ रहा महाप्रश्न, बाहूबली को कट्ट्प्पा ने क्यों मारा, का उत्तर आंशिक रुप से पूर्बार्ध में मिलता है, जो उत्तरार्ध में स्पष्ट हो जाता है। राज्य की सुरक्षा की खातिर दीवार की तरह खड़े और बज्र बनकर देशद्रोहियों की कुटिल चालों को ध्वस्त करते कट्टप्पा का युद्ध कौशल रोमाँचित करता है। कट्टप्पा का चरित्र शुरु से लेककर अंत तक विभिन्न भूमिकाओं में दर्शकों के दिल को गहरे छू जाता है। लेकिन यहाँ भीष्म पितामह की तरह राज प्रतीज्ञा में बंधी कट्टप्पा की बेबसी-लाचारी कचोटती है। इसी के चलते षडयन्त्र का वाहन बनकर कट्टप्पा की प्रतिज्ञा अमरेंद्र बाहुबली के अंत का त्रास्द कारण बन जाती है।
 इसी मरणात्क अपराधबोध से मुक्ति के प्रायश्चित बोध के साथ कहानी आगे बढ़ती है, जब राजमाता शिवगामी को षडयन्त्र में उलझने का बोध हो जाता है। इसी के साथ वह शिशु महेंद्र बाहुबली को महिष्मति का भावी राजा घोषित कर देती है। राजकुमार के बढ़े होने की कहानी बाहुबली के पिछले हिस्से में फिल्माई गई है। उसी के निष्कर्ष के रुप में अब कट्टप्पा और महेद्र बाहुबली कहर बनकर भल्लादेव के अन्याय, अत्याचार और आतंक पर टूट पड़ते हैं। यहाँ से  युद्ध के फाइटिंग सीन ऐसा रोमाँच पैदा करते हैं कि बाहूबली के हर प्रहार के साथ दर्शक अधर्म और असुरता की जड़ों पर कुठाराघात होता देखते हैं। और अंत में अपनी माँ देवसेना द्वारा पिछले 25 वर्षों से सजाई जा रही लकड़ी की चिता पर भल्लालदेव की आहुति के साथ आसुरी आतंक का एक अध्याय समाप्त होता है।

फिल्म के नायक प्रभास ने बाहूबली की भूमिका में अपने फिल्मी कैरियर के 4-5 वर्षों को एक ही फिल्म पर केंद्रित करने का जो दाँव लगाया और एसएस राजामौली पर अटूट विश्वास जताया, वह त्याग-बलिदान और तप फलित होता दिख रहा है। इस सिनेमा के बाद प्रभास भारतीय सिनेमा में एक ऐसे महानायक के रुप में उभर चुके हैं जिनके सामने बॉलीबुड के स्थापित नायक खुद को बौना महसूस करें तो आश्चर्य़ न होगा। दक्षिण भारत उनमें सुपरस्टार रजनीकाँत का नया संस्करण देख रहा है, और उनके चाहने वाले उनकी फोटो पर दूग्धाभिषेक तक करते दिख रहे हैं।
बाहुबली-2 की सुनामी के बीच भारतीय फिल्मों के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो चुके हैं। फिल्म अखिल भारतीय फिल्म के रुप में उभर कर सामने आई है, जिसमें विश्व सिनेमा की और भारतीय सिनेमा के दृढ़ एवं आश्वस्त कदमों को देखा जा सकता है। भारत के बाहर विश्व के हर कौने से इसकी रिकॉर्ड तोड़ परर्फोमेंस के चर्चे हो रहे हैं। फिल्म की यह ऐतिहासिक सफलता एसएस राजामौली की पूरी टीम के सामूहिक श्रम का फल है, जिसके लिए सभी बधाई के पात्र हैं। इस फिल्म के निर्देशक एसएस राजमौली इस फिल्म के साथ देश के सबसे प्रतिभावान डायरेक्टर के रुप में उभर चुके हैं, जिन्हें भारत के जेम्स केमरून की संज्ञा दी जा रही है। और उनके पिता श्री विजयेंद्र प्रसाद देश के सबसे लोकप्रिय एवं मंहगे सक्रिप्ट राइटर के रुप में उभर चुके हैं।  

विश्वभर की 9000 सक्रीन पर एक साथ रिलीज होने वाली बाहुबली-2 भारतीय फिल्मों के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुकी है। अभी देखना रोचक है कि यह रिकॉर्ड के किन-किन शिखरों तक पहुँचती है और नए मानक स्थापित करती है। अगर आप बाहुबली-2 न देखे हों तो अपने शहर-कस्बे के उम्दा थिएटर में जाकर एक बार इस ऐतिहासिक फिल्म को अवश्य देखें, क्योंकि ऐसी फिल्में कभी-कभार ही बनती हैं। लेप्टॉप या मोबाइल पर इस फिल्म के साथ न्याय नहीं हो सकता।

जुड़ते नए तथ्य -
बाहुबली-2 पहले तीन दिन में 500 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी है, जो दूसरी भारतीय फिल्मों से बहुत आगे है। 
अमेरिका में 100 करोड़ कमाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म है।
नौ दिन में बाहुबली-2 1000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। 1500 करोड़ का आंकड़ा कब छूती है, इसका इंतजार है।
सुपरस्टार रजनीकान्त ने जब बाहुबली-2 को देखा तो बोले - बाहुबली भारतीय सिनेमा का गौरव है। उन्होंने एसएस राजामौली को भगवान का बच्चा बताते हुए सलाम किया और बाहुबली को मास्टपीस करार दिया।

 

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हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय से एक परिचय करवाती पुस्तक यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं, घुमने के शौकीन हैं, शांति, सुकून और एडवेंचर की खोज में हैं ...