भारतीय प्रेस दिवस (16 नबम्वर) पर मीडिया मंथन-भाग2

भारतीय पत्रकारिता – दशा, दिशा एवं दायित्वबोध माना चारों ओर घुप्प अंधेरा , लेकिन दिया जलाना है कब मना पिछली पोस्ट के आगे जारी ...... ऐसे में आजादी के संघर्ष के दौर की पत्रकारिता पर एक नजज़र उठाना जरुरी हो जाता है। स्वतंत्रता संग्राम की पत्रकारिता – एक मिशन आजादी के दौर में पत्रकारिता एक मिशन थी, जिसका अपना मकसद था – देश को गुलामी से आजाद करना, जनचेतना का जागरण और अपने सांस्कृतिक गौरवभाव से परिचय। भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर महावीरप्रसाद द्विवेदी , श्रीअरविंद से लेकर गणेशशंकर विद्यार्थी और माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर विष्णु पराड़कर तक आदर्श पत्रकारों की पूरी फौज इसमें सक्रिय थी। वास्तव में देश को आजाद करने में राजनीति से अधिक पत्रकारिता की भूमिका थी। स्वयं राजनेता भी पत्रकार की भूमिका में सक्रिय थे। तिलक से लेकर लाला लाजपतराय, सुभाषचंद्र बोस से लेकर गांधीजी व डॉ. राजेंद्रप्रसाद जैसे राजनेता इसका हिस्सा थे। आजादी के बाद क्रमशः इस मिशन के भाव का क्षय होता है। शुरुआती दो – तीन दशकों तक नेहरुयुग के समाजवादी विकास मॉडल के नाम पर विकास पत्रकारिता चलती रही। लेकिन आप