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मुट्ठी से दरकता रेत सा जीवन

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कभी न होगी जैसे अंधेरी शाम जी रहे इस घर-आंगन में ऐसे , जैसे हम यहाँ अजर-अमर-अविनाशी , रहेगा हमेशा संग हमारे यह संसार , घर-परिवार , संग कितने साथी सहचर शुभचिंतक , न होगा जैसे कभी अवसान। इसी संग आज के राग-रंग , कल के सपने बुन रहे , कभी न होगा वियोग-विछोह , जी रहे ऐसे जैसे रहेंगे यहाँ हर हमेशा , नहीं होगा अंत हमारा , न आएगी कभी अंधेरी शाम।  संसार की चकाचौंध में मश्गूल कुछ ऐसे, जैसे यही जीवन का आदि-अंत-सर्वस्व सार, बुलंदियों के शिखर पर मदमस्त ऐसे, चरणों की धूल जैसे यह सकल संसार। लेकिन काल ने कब इंतजार किया किसी का , लो आगया क्षण , भ्रम मारिचिका की जडों पर प्रहार , क्षण में काफुर सकल खुमारी, फूट पड़ा भ्रम का गु्ब्बार , उतरा कुछ बुखार मोह-ममता का, समझ में आया क्षणभंगुर संसार। रहा होश कुछ दिन , शमशान वैराग्य कुछ पल , फिर आगोश में लेता राग-रंग का खुमार , मुट्ठी से दरकता फिर रेत सा जीवन ,                      होश के लिए अब अगले प्रहार का इंतजार।

मात्र मेरी सफाई, तुम्हारी दुहाई से काम चलने वाला नहीं

इतना तो धीरज रखना होगा, इंतजार करना होगा उंगलियाँ उठ रही हैं, फिर नियत पर आज नहीं कोई बात नयी, तल्खी जानी-पहचानीं, नहीं कुछ नया, बक्रता शाश्वत, कुचाल नहीं अनजानी। खुद से ही है हमें तो शिकायत-शिक्वे गहरे कल के, हर रोज ठोक पीट कर , कर रहे हैं दुरुस्त खुद के तंग दरवाजे, ऐसे में स्वागत है इन प्रहारों का, औचक ही सही, ये प्रहार तो हमें लग रहे हैं, प्रसाद ईश्वर के। लेकिन यह आलाप, प्रलाप, विलाप क्यों इतना, गर सच के पक्ष में है जेहन, तो फिर तुम्हारे सांच को आंच कैसी, क्यों नहीं छोड़ देते कुछ बातें काल की झोली में, अग्नि परीक्षा से तप कर, जल कर, गल कर,   आएगा सच निखर कर सामने। सच हमारा भी और सच तुम्हारा भी, सच के लिए इतना तो धैर्य रखना होगा, इतना तो इंतजार करना होगा। मात्र मेरी सफाई से और तुम्हारी दुहाई से तो काम चलने वाला नहीं, काल के गर्भ में हैं जबाव सवालों के, सत्य के, न्याय के, इंसाफ के, इसके पकने तक कुछ तो धैर्य रखना होगा, इंतजार करना होगा।  

परिस्थितियों के प्रहार से मायूस मन को

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THIS WORLD as GREAT GYMNASIUM  क्यों होते हो निराश-हताश इतना, क्यों इतना विचलित-मायूस-उदास, छोटी सी तो घटना घटी है, बहुत बड़ी जिंदगी की कायनात।1 कब अबारा बादल ढक पाए हैं सूरज को, कब रात, मिटा सकी है भौर की आश, घटना घट गई, बिजली कड़क गई, करारे सबक दे गई, अब, बढ़ चलो धूल झाड़कर, खुला सामने पूरा आकाश।2 माना मायावी दौड़ में शामिल दुनियां, क्यों होते हो इस भीड़ में शुमार, जब तुम्हारा ध्येय मौलिक अलक्षित, क्यों तुलना-कटाक्ष में समय बर्बाद।3 क्या भूल गए अपना यथार्थ-हकीकत, मौलिक सच, अद्वितीय पथ-पहचान, जब तोड़ने हैं रिकॉर्ड अपने ही, फिर कैसी प्रतियोगिता का भ्रम-भटकाव।4  ऐसे में स्वागत हर चुनौती का, स्वागत हर विषम परिस्थिति प्रहार, अंतिम विजय जब ध्रुब सुनिश्चित, बढ़ता चल तू हर सीमा के पार।5  बस रहे ईमानदार कोशिश पहचान अपनी, जज्बा अद्म्य, सीखने की ललक अपार, कौन सी बाधा रोक सके  फिर   ढगों को, होशोहवाश में देखो सपना होता साकार।6 राह में आएंगी बाधाएं अप्रत्याशित , अपरिमित,    होंगे स्वार्थ- दंभ - झूठ