माँ गंगा की पुकार

एक नहीं असंख्य भगीरथों की आज जरुरत मैं वही गंगा मैया हूँ जिसमें करोड़ों लोग पतितपावनी कहकर रोज डूबकी लगाते हैं और अपना सारा पाप-ताप मुझमें निमज्जित कर शुद्ध-बुद्ध होकर अपनी पाप-मुक्ति की कामना करते हैं। मुझे भी अच्छा लगता है कि अज्ञान-अंधकार में भटक रही संतानें मेरे आंचल का स्पर्श पाकर संताप मुक्त होकर जाती हैं। अच्छा लगे भी क्यों न, आखिर मैं माँ जो हूँ, मेरा धरती पर अवतरण का उद्देश्य ही शापयुक्त संतानों को सांसारिक संताप से मुक्त करना है। शापग्रस्त सगरसुतों को उबारने के लिए पुत्र भगीरथ ने कितना कठोर तप करके मेरा आवाह्न किया था। मुझे अपार खुशी और संतोष होता है कि मेरे 2500 किमी लम्बे रास्ते के तट पर मानव बस्तियाँ बस्ती गई और धीरे-धीरे मानव सभ्यता-संस्कृति फलती फूलती गई। देश के एक बड़े भूखण्ड की मैं जीवन रेखा हूँ। साथ ही पूरे देश की संस्कृति के तार मुझसे जुड़े हैं। देश का आधिकाँश क्षेत्र मेरे आंचल में सिमटा है, जो इससे बाहर है वह भी मेरे ममत्व से रीता नहीं। अपनी क्षेत्रीय नदियों को वे मुझसे जोड़ते हुए मेरी संतान होने के भाव से तृप्त होते हैं। ईश्वरीय अनु