मंगलवार, 24 जून 2014

इन्हीं पलों को बना दें निर्णायक क्षण (Perfect moments)


परफेक्ट मोमेंट्स कभी-कभी ही आते हैं, लेकिन इनके इंतजार में अंतहीन अनिर्णय की स्थिति जीवन का एक कटु सच है। परफेक्ट क्षणों के इंतजार में न जाने कितनी प्रतिभाएं अपनी चमक बिखेरे बिना ही इस संसार से विदा हो जाती हैं। कितने ही जीवन ऐसे में कुंद इच्छाओं के साथ कुँठित जीवन जीने के लिए विवश होते हैं। कितने ही विचारकों के विचार, भावनाशीलों के भाव, कलाकारों की कल्पनाएं इस इंतजार में बिना प्रकट हुए चित्त की अंधेरी गुहा में खो जाती हैं। फिर, दूसरों को वही दिलचाहा काम करते देख, एक कुढ़न-जलन और पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं बचता। यह सही समय के इंतजार में सही निर्णय न ले पाने की कष्टप्रद स्थिति है और दीर्घसूत्रता के रुप में व्यक्तित्व विकास की एक बड़ी बाधा भी, जिससे निज़ात पाना जरुरी है।

     इसलिए जब भी कोई सशक्त विचार मस्तिष्क में कौंधे, दमदार भाव दिल में प्रस्फुटित हो, कल्पना का उद्दात झोंका चिदाकाश में तैर जाए, उसे पकड़ लें और क्रिया रुप में परिणत करने की कार्ययोजना बना डालें। हो सकता है इसे क्रिया रुप देने में कुछ समय लगे, कुछ तैयारी करनी पड़े, लेकिन ऐसा न हो कि परफेक्ट क्षण के इंतजार में यह किसी अंजाम तक पंहुचे बिना ही दम तोड़ ले। यह जीवन की एक बड़ी दुर्घटना होगी। ऐसे में अधूरे सपनों, बिखरे विचारों, अमूर्त कल्पनाओं, टूटे संकल्पों से भरे चित्त का मरघट सा सन्नाटा, किसी सुखी, सफल व संतुष्ट जीवन की परिभाषा नहीं हो सकती।

     और इस सामान्य से सच को समझना भी जरुरी है कि हर बड़ा कार्य पहले किसी व्यक्ति के अंतःकरण में एक विचार-भाव-कल्पना बीज के रुप में प्रकट होता है। फिर इसे खाद-पानी देने के लिए संकल्पित प्रयास करने पड़ते हैं और इसे पुष्पित-पल्लवित करने के लिए साहस भरे सरंजाम जुटाए जाते हैं। साथ ही, जिन ऊँचाइयों तक व्यक्ति उड़ान भर सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं। अधिकाँशतः इंसान अपना मूल्याँकन कमतर करता है, क्योंकि उसके सोचने का तरीका अपने अहं की परिधि में सिमटा होता है। लेकिन जब व्यक्ति एक विराट भाव के साथ जुड़कर आगे बढ़ता है, तो उसकी जिंदगी के मायने बदल जाते हैं। उन क्षणों में सृष्टि की तमाम् शक्तियां उसके साथ जुड़ जाती हैं और सामने संभावनाओं के असीम द्वार खुलते जाते हैं। ऐसे में जो घटित होता है वह आशा से परे आश्चर्यजनक और अद्भुत होता है।


     माना बचपन की कल्पनाएं बहुत ही अनगढ़ व मासूम हो सकती हैं, जवानी का जोश बहुत मदहोशी भरा व रुमानी हो सकता है, लेकिन इन्हीं में व्यक्ति की मौलिक संभावनाओं का सच भी छिपा होता है। इस बीजमंत्र को तलाशने व तराशने भर की जरुरत होती है। आश्चर्य नहीं कि इस प्रयास में शुरुआती तौर-तरीके बहुत ही एकांकी, अनगढ़ व अतिवादी हो सकते हैं। दुनियाँ को मध्यम मार्ग का उपदेश देने वाले भगवान बुद्ध की शुरुआत एक कठोर त्याग-तपस्या भरे अतिवाद से होती है। स्वामी विवेकानंद का शुरुआती दौर कट्टर संन्यासी के रुप में था, लेकिन भावों की उद्दातता क्रमशः प्रकट होती है। इसी तरह विराट से जुड़कर महत् कार्यों को अंजाम देने वाले हर इंसान की शुरुआत कुछ ऐसी ही कथा व्यां करती है, जो समय के साथ परिष्कृत, परिपक्व एवं पुष्ट होती है।

     अगर ये परफेक्ट समय के इंतजार में रहे होते, समय रहते अपने साहसिक निर्णय न लिए होते, तो इंसानियत इनके वरदानों से वंचित रह जाती। यही तमाम शोध, आविष्कारों से लेकर जीवन के हर क्षेत्र की खोजों, उपलब्धियों व सफलताओं से जुड़ा सच है। यहीं से एक बड़ा सच प्रकट होता है कि अपने बचपन व जवानी के सपनों, कल्पनाओं, संकल्पों के बीच रुहानी बीज को समझने की जरुरत है, जिन्हें हम प्रायः असंभव मानकर, ढर्रे के जीवन जीने के लिए अभिशप्त होते हैं। इसकी बजाए अपने मौलिक सच को खोज कर, उसे निष्कर्ष तक पहुँचाने की साहसिक शुरुआत ही इस नश्वर जीवन का सच्चा पुरुषार्थ हो सकता है।

     इसके लिए किनारों पर लहरों को गिनते हुए सागर पार करने के सपने लेते रहने भर से काम चलने वाला नहीं। पथिक को उफनते सागर में कूदने का साहस करना होगा, नाव पर सवार होने का इंतजाम करना होगा। ठोस एक्शन का शुरुआती जोखिम उठाना होगा। इसी के साथ जीवन अपने स्वप्न-सच को जीवंत करते हुए एक सार्थक अभियान बन सकता है और समाधान का एक हिस्सा बनकर व्यापक जनहित का महत कार्य सध सकता है। 


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