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य़ात्रा वृतांत - सुरकुंडा देवी का वह यादगर सफर, भाग-1

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गढ़वाल हिमालय की गोद में सफर का रोमाँच   जनरल इलेक्टिव के पाठ्यक्रम में यात्रा वृताँत के तहत विद्यार्थियों के साथ जिस तरह से अचानक शैक्षणिक भ्रमण का प्लान बना, लगा कि जैसे माता का बुलावा आ गया। 28 अक्टूबर की सुबह 25 छात्र-छात्राओं और शिक्षकों का दल देवसंस्कृति विवि से प्रातः 8 : 20 बजे रवाना हुआ। इस टूर के प्रति सबकी उत्सुकता एवं उत्साह का भाव चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था। टूर की विशेषता थी ऋषिकेश-चम्बा से होकर सुरकुंडा की यात्रा, जिसे हम पहली बार कर रहे थे। अतः एक नए मार्ग पर यात्रा के रोमाँच व जिज्ञासा भरे उत्साह के साथ सफर शुरु होता है। काफिले के सभी सदस्य इस रुट पर पहली बार सफर कर रहे थे और संभवतः अधिकाँश तो पहली बार पहाड़ों की यात्रा कर रहे थे, वह भी हिमालय की गोद में। लगभग आधा घंटे में हम ऋषिकेश पहुंच चुके थे, इसके पुल को पार करते ही सामने खड़े, आसमान की ऊँचाईयों को छूते गढ़वाल हिमालय के उत्तुंग शिखर जैसे हाथ पसारकर हमारा स्वागत कर रहे थे। इनके सबसे ऊंचे शिखर पर माता कुंजा देवी का शक्तिपीठ स्थित है, जिसके दूरदर्शन ऋषिकेश से सहज रुप में किए जा सकते हैं। आपकी जान