संदेश

मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुट्ठी से दरकता रेत सा जीवन

चित्र
कभी न होगी जैसे अंधेरी शाम जी रहे इस घर-आंगन में ऐसे , जैसे हम यहाँ अजर-अमर-अविनाशी , रहेगा हमेशा संग हमारे यह संसार , घर-परिवार , संग कितने साथी सहचर शुभचिंतक , न होगा जैसे कभी अवसान। इसी संग आज के राग-रंग , कल के सपने बुन रहे , कभी न होगा वियोग-विछोह , जी रहे ऐसे जैसे रहेंगे यहाँ हर हमेशा , नहीं होगा अंत हमारा , न आएगी कभी अंधेरी शाम।  संसार की चकाचौंध में मश्गूल कुछ ऐसे, जैसे यही जीवन का आदि-अंत-सर्वस्व सार, बुलंदियों के शिखर पर मदमस्त ऐसे, चरणों की धूल जैसे यह सकल संसार। लेकिन काल ने कब इंतजार किया किसी का , लो आगया क्षण , भ्रम मारिचिका की जडों पर प्रहार , क्षण में काफुर सकल खुमारी, फूट पड़ा भ्रम का गु्ब्बार , उतरा कुछ बुखार मोह-ममता का, समझ में आया क्षणभंगुर संसार। रहा होश कुछ दिन , शमशान वैराग्य कुछ पल , फिर आगोश में लेता राग-रंग का खुमार , मुट्ठी से दरकता फिर रेत सा जीवन ,                      होश के लिए अब अगले प्रहार का इंतजार।

समग्र स्वास्थ्य और मीडिया

चित्र
एक जागरुक मीडिया उपभोक्ता की भूमिका स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव - आज सिर्फ स्वास्थ्य के बारे में चर्चा पर्याप्त नहीं। समग्र स्वास्थ्य पर विचार आवश्यक हो गया है। क्योंकि हमारे समाज व देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव दिखता है। जब कोई बिमार पड़ता है , दैनिक जीवन पंगु हो जाता है , कामकाज पेरेलाइज हो जाता है , तब हम किसी डॉक्टर की शरण में जाते हैं। दवा-दारू लेकर ठीक हो जाते हैं और जिंदगी फिर पुराने ढर्रे पर लुढकने लगती है। अपने स्तर पर स्वास्थ्य के लिए प्रायः हम सचेष्ट नहीं पाए जाते। स्वास्थ्य के प्रति पुरखों की गहरी समझ और समग्र सोच – जबकि स्वास्थ्य के प्रति हमारे पुर्वजों की सोच बहुत गहरी और समग्र रही है। स्वस्थ्य की चर्चा में शरीर , मन और आत्मा हर स्तर पर विचार किया गया है। शरीर को जहाँ समस्त धर्म का आधार वताया गया (शरीरं खलु धर्म साधनम्) वहीं रोग के कारण के रुप में धी , धृति और स्मृति के भ्रंषक अधर्म आचरण को पाया गया। इसके साथ स्थूल स्तर पर वात-पित-कफ त्रिदोष का असंतुलन और मानसिक स्तर पर तम और रज गुणों की प्रधानता को पाया गया। तथा इसी के अनुरु

यात्रा वृतांत - कुंजापुरी शक्तिपीठ

चित्र
कुंजापुरी से नीरझरना , ट्रेकिंग एडवेंचर कुंजापुरी ऋषिकेश क्षेत्र का एक कम प्रचलित किंतु स्वयं में एक अद्वितीय एवं दर्शनीय तीर्थ स्थल है। शक्ति उपासकों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि कुंजापुरी पहाडी के शिखर पर बसा यह शक्तिपीठ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 52 शक्तिपीठों में से एक है , जहाँ माता सती का छाती वाला हिस्सा गिरा था। कुंजा पहाडी के शिखर पर बसे इस तीर्थ का एकांत-शांत वातावरण, प्रकृति की गोद में शांति को तलाशते पथिकों के लिए एक आदर्श स्थान है।  राह का प्राकृतिक सौंदर्य़ –  यह स्थान ऋषिकेश से महज 25 किमी की दूरी पर स्थित है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है , जिसके बीच यात्रा जैसे प्रकृति की गोद में शांति-सुकून का गहरा अहसास देती है। जैसे-जैसे सफर ऊपर बढ़ता है नीचे ऋषिकेश , गंगाजी व ऊधर जोलीग्रांट-देहरादून का विहंगमदृश्य क्रमशः स्पष्ट होने लगता है। आसपास पहाड़ियों पर बसे गाँव , उनके सीढ़ीदार खेत दूर से दिलकश नजारा पेश करते हैं। बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के माह में इस राह का नजारा अलग ही रहता है