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लक्ष्य निर्धारण – रखें अपनी मौलिकता का ध्यान

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अपनी अंतःप्रेरणा को न करें नजरंदाज जीवन में लक्ष्य का होना बहुत महत्वपूर्ण है। बिना लक्ष्य के व्यक्ति उस पेंडुलम की भांति होता है , जो इधर-ऊधर हिलता ढुलता तो रहता है , लेकिन पहुँचता कहीं नहीं। जीवन का लक्ष्य स्पष्ट न होने पर व्यक्ति की ऊर्जा यूँ ही नष्ट-भ्रष्ट होती रहती है और हाथ कुछ लगता नहीं। फिर कहावत भी है कि खाली मन शैतान का घर। लक्ष्य विहीन जीवन खुराफातों में ही बीत जाता है , निष्कर्ष ऐसे में कुछ निकलता नहीं। पश्चाताप के साथ इसका अंत होता है और बिना किसी सार्थक परिणाम के एक त्रास्द दुर्घटना के रुप में वहुमूल्य जीवन का अवसान हो जाता है। अतः जीवन में लक्ष्य का होना बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन जीवन लक्ष्य निर्धारण में प्रायः चूक हो जाती है। अधिकाँशतः बाह्य परिस्थितियाँ से प्रभावित होकर हमारे जीवन का लक्ष्य निर्धारण होता है। समाज का चलन या फिर घर में बड़े-बुजुर्गों का दबाव या बाजार का चलन या फिर किसी आदर्श का अंधानुकरण जीवन का लक्ष्य तय करते देखे जाते हैं। इसमें भी कुछ गलत नहीं है यदि इस तरह निर्धारित लक्ष्य हमारी प्रतिभा , आंतरिक चाह , क्षमता और स्वभाव से मेल खाती हो। ले

जीवन यात्रा – शांति की खोज में एक पथिक, भाग-2

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हिमालय की नीरव वादियों में जीवन के रुपांतरणकारी पल लक्ष्य की ओर बढ़ता मार्ग कहीं-कहीं गहरी घाटियोँ से होकर भी गुजरा। ये घाटियाँ भी उसे जीवन का एक मर्म स्पष्ट कर गई। कहीं-कहीं लगा कि वह लक्ष्य के विपरीत जा रहा है , लेकिन बाद में पता चला कि वह तो मंजिल की ओर समीप आ गया है। इसी तरह जीवन में टेढ़े-मेढ़े , उतार-चढ़ाव भरे रास्ते आते हैं , इन्हें स्थायी विचलन विफलता मानने की भूल न की जाए। ये मंजिल के आवश्यक सोपान हो सकते हैं , बस चरण गति मंजिल की ओर उन्मुख होनी चाहिए। हिमालय की गोद में आए नाना प्रकार के आगंतुक भी उसे कुछ संदेश दे गए। रास्ते में कई पर्यटक , घोड़ा , गाड़ी आदि से सफर कर रहे थे , जो दुर्गम हिमालय के महज स्तही परिचय से ही संतुष्ट थे। लेकिन कुछ साहसी रोमाँच प्रेमियों का दल ऐसा भी था जो इतने भर से संतुष्ट नहीं था। वह पैदल ही अपना बोझा लादे आगे हिमालय की दुर्गम वादियों की ओर बढ़ रहे थे। वे हिमालय की दुर्गम चेतना से सीधा संपर्क साध कर जीवन के उच्चस्तरीय सत्य का साक्षात्कार करना चाहते थे। पथिक भी उन्हीं के साथ हो लेता है। दल का नेता उसके उत्साह , साहस व जीवट   को देखकर

जीवन यात्रा – शांति की खोज में एक पथिक, भाग-1

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हिमालय की नीरव वादियों में जीवन के रुपांतरणकारी पल फुर्सत के कुछ लम्हें कितने दुर्ळभ हो चलें हैं आज की भागमभाग भरी जिंदगी में। यदि मिल भी जाएं तो टीवी , इंटरनेट , यार-दोस्त , पार्टी और गप्प-शप्प। पता ही नहीं चलता कि कैसे बीत गए। जबकि इन पलों को प्रकृति के संग विताया जाए तो ये क्षण जीवन के यादगार पल सावित हो सकते हैं। मनोरंजन के साथ शिक्षा के , प्रेरणा के , शाँति-सकून के और सृजन के आनन्द के , आत्म अन्वेषण , आत्म विकास के माध्यम हो सकते हैं। प्रकृति की गोद में फुर्सत के ये पल जीवन के रुपांतरण की पटकथा लिख सकते हैं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही एक जीवन यात्रा जो किसी के भी जीवन का सत्य हो सकती है। हिमालय की गोद में यह उसकी पहली यात्रा थी। हिमालय के बारे में बहुत कुछ सुन-पढ़ रखा था। साथ ही बचपन से ही हिमाच्छादित पर्वतश्रृंगों के प्रति ह्दय में एक अज्ञात सा आकर्षण था , लेकिन जीवन के गोरखधंधे में उल्झा जीवन अभी तक इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। तमाम उपलब्धियों के साथ विताया जा रहा संसारी जीवन अब बोझिल हो चला था। जीवन की जटिलताएं कुछ इस कदर हावी हो चलीं थी कि अपने लिए सोचने की