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मेरा गाँव, मेरा देश – मौसम सर्दी का और यादें बचपन की

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तैयारी पूरी हो तो सर्दी से अधिक रोमाँचक कुछ नहीं सर्दी का मौसम आ चला। जैसे ही पहाड़ों में बारिश क्या हुई, पर्वत शिखरों ने बर्फ की हल्की सी चादर ओढ़ ली और सर्दी ने दरबाजे पर दस्तक दे दी। जीवन के असली आनन्द का मौसम आ गया। हालाँकि शीत लहर के चलते देश-दुनियाँ में होने वाले नुक्सान के साथ पूरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहना चाहूँगा कि यदि सर्दी का इंतजाम पूरा हो तो इससे अधिक रोमाँचक और सुखद शायद ही कोई दूसरा मौसम हो। पतझड़ के साथ आते शिशिर ऋतु के अपने ही रंग हैं, ढंग हैं, मजे हैं और अपने ही आनन्द हैं, जिनको अपने बचपन की यादों के समृद्ध स्मृति कोश से बाहर निकालकर गुदगुदाने की अपनी ही मौज है। अपने बचपन के घर से दूर, बहुत दूर, फुर्सत के पलों में हम इतना तो कर ही सकते हैं। दशहरा आते ही हमारे गाँव में सर्दी की शुरुआत हो जाती थी, क्योंकि हम ऊनी कोट पहनकर दशहरे के कलाकेंद्र में रात्रिकालीन प्रोग्राम देखने जाया करते थे। दशहरे के ठीक 20 दिन बाद दिवाली तक ठंड़ की मार ठीक ठाक अनुभव होती थी, जिसका स्वागत हम खेतों में तिल के सुखे गट्ठों को जलाकर किया करते थे। सर्दी की तैयारियाँ समय स