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रविवार, 31 दिसंबर 2023

मेरी चौथी झारखण्ड यात्रा, भाग-3

 

दिव्य रथ से लेकर हवाई सफर का रोमाँच

टाटानगर से पटना, दिव्य रथ बस सेवा

जमशेदपुर में तीन दिवसीय अकादमिक कार्यक्रम को पूरा कर अब घर बापिसी होनी थी। बापिसी में रेल की वजाए बस और फ्लाइट से यात्रा का संयोग बन रहा था। अतः पहले चरण में टाटानगर से पटना दिव्य रथ में सवार होते हैं, जो एक नया अनुभव होने जा रहा था। हालाँकि एक बार अमृतसर से कटरा तक पिछले ही माह ऐसा सफर कर चुका था, लेकिन इस बार सिंगल बर्थ वाली सीट थी। रात को 7 बजे टिकट में चलने का समय था, लेकिन चलते-चलते बस को 8 बज चुके थे। प्रातः छः बजे पहुँचने का अनुमान था। लेकिन बस साढ़े पाँच बजे ही पटना पहुँचा देती है।

रात के अंधेरे में बाहर बहुत अधिक कुछ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन रोशनी में जगमगाते शहर के भवन, दुकानें, मॉल्ज आदि के भव्य दर्शन अवश्य रास्ते भर होते रहे। दिव्य रथ की खासियत यह भी थी कि हमें नीचे लेट कर सफर करने का बर्थ मिला था, जिसमें सवारी जब चाहे लेट कर सो सकती थी। हालांकि हम तो अधिकाँश समय बाहर के नजारों को ही निहारते रहे और पिछले तीन-चार दिनों के यादगार अनुभवों व लिए गए शिक्षण की जुगाली करते रहे।



रास्ते में बस ग्यारह बजे के आसपास एक स्थान पर भोजन के लिए रूकती है। भोजन के साथ यहाँ एक नई तरह की व्यवस्था थी। जिसमें परात में सजे सफेद रसगुल्ले और गुलाव जामुन की दुकान थी। रात्रि भोजन के लिए बस यहाँ आधे घण्टे के लिए रुकती है। लेकिन सवारियां सबसे पहले रसगुल्लों व गुलाव जामुन पर ही टूट पड रही थी। इसके दस मिनट बाद यहाँ गर्मागर्म चाय-कॉफी परोसी जा रही थी। ठंडी रात में इनका महत्व भुगतभोगी समझ सकते हैं।

रसगुल्ला, गुलाब-जामुन की विशेष व्यवस्था

प्रातः पटना में पहारी नामक स्थान पर बस रुकती है। यह मेन रोड पर स्थित एक खुला स्टेशन है। पटना का आईएसबीटी यहाँ से 3 किमी अन्दर है। सड़क के किनारे बना लकड़ी-तरपाल आदि का रैनवसेरा सवारियों की एक मात्र शरणस्थली थी। सो हम भी अगली व्यवस्था होने से पूर्व यहीं एक बैंच पर बैठते हैं। यहाँ से गायत्री शक्तिपीठ 6.7 किमी तथा पटना साहिब गुरुद्वारा 4.5 किमी औऱ एयरपोर्ट 15 किमी की दूरी पर था। 

कुल्हड चाय का नया अंदाज

कंकरवाग स्थित गायत्र शक्तिपीठ में रुकने की योजना के अनुरुप ऑटो से वहाँ पहुँचते हैं। मेट्रो का कार्य़ प्रगति पर था, सो ऑटो शॉर्टकट गलियों से गन्तव्य तक पहुँचा देता है। यहाँ का गायत्री शक्तिपीठ युवाओं की रचनात्मक गतिविधियों के लिए खासा प्रसिद्ध है। जिसका जिक्र खान सर कर चुके हैं, हाल ही के कार्यक्रम में अवध औझा सर भी इनके कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं।

गायत्री शक्तिपीठ, कांकरबाग, पटना

26 तारीक की प्रातः एक नए हवाई यात्रा का अनुभव जुड़ने वाला था, जो शायद हवाई यात्रियों के काम आए। स्पाइस जेट से टिकट बुक थी, जिसमें पहली बार हम सफर कर रहे थे। इनके निर्देश के अनुसार, 3 घंटा पहले एयरपोर्ट पर पहुँचना था, सो समय पर सुबह 8 बजे पहुँच जाता हूँ। पता चला कि फ्लाइट 2 घंटे लेट है। एजेंट के माध्यम से बुकिंग के कारण हमें मोबाइल तथा मेल से अपडेट नहीं मिल सके, यह पहला सबक था। अतः जब भी टिकट बुक करें, तो सवारी का मोबाइल नम्बर तथा जीमेल ही दें, ताकि लेट लतीफी के सारे संदेश यात्री तक आते रहें और वह उसी अनुरुप अपनी यात्रा की व्यवस्था को पुनर्निधारित कर सके। एक घंटा इंतजार के बाद 9 बजे अंदर प्रवेश मिलता है।

अपना सामान जमा करने के बाद, अंदर प्रतीक्षालय में पहुँचते हैं। लेकिन अब फ्लाइट 11 की बजाए 1 बजे तक लेट हो चुकी थी। अपने मोबाइल, साथ रखी पुस्तकों तथा वहाँ उपलब्ध समाचार पत्रों के साथ समय का सदुपयोग करता रहा। बीच में मूड बदलने के लिए यहाँ के जल तथा गर्म पेय का भी स्वाद चखते हैं। पानी 70 रुपए का और चाय 160 रुपए की, मसाला डोसा 270 का और ब्रेड पकौड़ा 150 रुपए। ये सस्ते बाले काउंटर के दाम थे। दूसरे में इस पर 50-100 रुपए और जोड़ सकते हैं।

प्रतीक्षालय कक्ष में, पटना हवाई अड्डा

1 घंटे बाद पता चला कि फ्लाइट 2 घंटे औऱ लेट हो चुकी है अर्थात् 3 बजे चलेगी। सवारियों का धैर्य का बाँध टूट रहा था। वहाँ के कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों का घेराव होता है, पूछताछ होती है। इस सबके बावजूद फ्लाइट और लेट हो रही थी। अंततः 4 बजे फ्लाइट के चलने का निर्देश मिलता है, जो सबके लिए बड़ी राहत का संदेश था।

इस बीच खाली समय का सदुपयोग करने के लिए लैप्टॉप पर कुछ लेखन कार्य करता हूँ। आखिर 4 बजे फ्लाइट में प्रवेश, साढ़े 4 बजे यात्रा शुरु।

उड़ान के लिए तैयार विमान

स्पाइस जेट को रास्ते में गाली देते हुए लोग इसके सामने खड़े होकर जमकर सेल्फी से लेकर फोटो ले रहे थे, आखिर सवारियों का जड़ प्लेन से क्या शिकायत। शिकायत तो इनका संचालन करने वाले लोगों की लेट-लतीफी तथा लापरवाही से थी। सवारियों के घेराव का दवाव कुछ ऐसा रहा कि 2 घंटे का सफर महज ढेढ़ घंटे में पूरा होता है और 6 बजे दिल्ली हवाइ अड्डे पर विमान उतरता है। 

हवाइ जहाज में सीट इस बार वाईं ओर बीच की मिली थी, बाहर ढलती शाम के साथ आसमां में डूबते सूर्य़ का नजारा विशेष था, जिसकी फोटो खिड़की के साथ बैठे बालक से खिंचवाते रहे।

सूर्यास्त का दिलकश हवाई नजारा

पुरानी हवाई यात्राओं की स्मृतियां झंकृत हो रहीं थी और फ्लाइट की लेट-लतीफी एक दैवीय प्रयोजन का हिस्सा लग रहीं थी। 
हवाई जहाज में यात्री सेवा

उतरने की तैयारी में हवाई यान

दिल्ली पहुँचने से पहले उतरने की तैयारी की घोषणा होती है। आश्चर्य हो रहा था कि एक घंटे में ही हमें यह शुभ सूचना मिल रही थी। दिल्ली राजधानी में प्रवेश का नजारा अद्भुत था। नीचे रोशनी के जममगाते दिए कतारबद्ध जल रहे थे। कहीं चौकोर, तो कहीं षटकोण और कहीं गोल - भिन्न-भिन्न कोणों के जगमगाते डिजायन आकाश से दिख रहे थे। आसमां के सारे तारे जैसे जमीं पर सजकर हमारी फ्लाइट के स्वागत के लिए खड़े प्रतीत हो रहे थे।

मंजिल के समीप हवाई यान


यान से दिल्ली शहर का नजारा

जो भी हो हम शहर के एकदम ऊपर से नीचे उतर रहे थे और कुछ ही मिनटों में एक झटके के साथ विमान हवाई पट्टी पर उतरता है और अपनी गति को नियंत्रित करते हुए कुछ मिनटों के बाद खड़ा हो जाता है। फीडर बस से बाहर उतरकर 7 नबंर काउंटर से अपना बैगेज इकटठा करते हैं। 

एयरपोर्ट के एराइवल गेट पर टेक्सी से लेकर बस आदि की उम्दा सुविधाएं हैं। यहाँ से हर 15 मिनट में विशेष बसें दिल्ली रेलवे स्टेशन तथा आईएसबीटी कश्मीरी गेट के लिए चलती रहती हैं।

अराइवल गेट से  रेल्वे स्टेशन व आईएसबीटी के लिए बस सेवा

हमें याद है पाँच वर्ष पहले ये सुविधा नहीं थी, मेट्रो से होकर जाना पड़ता था, जो काफी मशक्कत भरा काम रहता था। पौन घंटे में हम आईएसबीटी पहुंचते हैं।

यहाँ से हमें सीधा ऋषिकेश-श्रीनगर जा रही बस साढ़े 8 बजे मिल जाती है, साढ़े बारह तक हरिद्वार पहुँचने का अनुमान था। लेकिन रास्ते में कोहरा शुरु हो गया था, जो सारा गणित बिगाड़ देता है। 200 किमी का दो तिहाई सफर कोहरे में पूरा होता है। 

भारी धुंध के बीच दिल्ली से हरिद्वार की ओर 

खतोली में एक छोटा वाहन सड़क से नीचे उतर चुका था। हमारी सीट चालक के पीछे थी। घने कोहरे के बीच जब बस गुजरती तो हमें रह रहकर अंदेशा होता कि बस कहीं खाइ में न लूढक जाए, क्योंकि सड़क तो कहीं दिख ही नहीं रही थी। विजिविलटी कहीं शून्य प्रतीत हो रही थी।

जीरो विजिबिल्टी के बीच चुनौतीभरा सफर

उठ उठकर सड़क को देखता, बीच में सफेद रंग की रेखा सडक का अहसास करवाती। लगता ठीक है, चालक कॉमन सेंस के सहारे चला रहा है। हम अपनी चटांक बुद्धि से तड़का क्यों लगा रहे हैं, ड्राइवर के अनुभव पर विश्वास क्यों नहीं कर लेते। 

इस तरह कब रूढ़की आ गया पता ही नहीं चला, नींद की झपकी खुली तो बस हरिद्वार में प्रवेश हो चुकी थी। हरिद्वार बस स्टैंड की कोई सबारी न होने के कारण बस सीधा हर-की-पौड़ी साइड से होकर शांतिकुंज पहुंचती है और फ्लाइऑवर के पास हमें उतार देती है। रात के अढाई बज चुके थे। धुंध के कारण हम लगभग 2 घंटे लेटे थे। लेकिन सही सलामत घर पहुँचने का संतोष साथ में था।

इस तरह वर्ष 2023 का उत्तरार्ध दस दिन के बस, ट्रेन व हवाई सफर के रोमाँच के बीच गुजरता है। मौसम की मार से लेकर, मानवीय त्रुटि, जनसेवा की लचर व्यवस्था के बीच जीवन का अनुभवजन्य शिक्षण भी चलता रहा। आखिर अनुभव से शिक्षण, यही तो जीवन का सार है। किताबी सबक हम भूल सकते हैं, लेकिन जीवन की पाठशाला में मिले अनुभवजन्य सबक सीधे ह्दय एवं अंतरात्मा के पटल पर अंकित होते हैं। आपस में सांझा करने पर कुछ शायद इन राहों पर चल रहे मुसाफिरों के कुछ काम आए।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव का संदेश

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