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कुल्लू घाटी की देव परम्परा

आध्यात्मिक-सांस्कृतिक विरासत का भी रहे ध्यान कुल्लू-मानाली हिमाचल का वह हिस्सा है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत के आधार पर एक विशिष्ट स्थान रखता है। क्षेत्र की युवा पीढ़ी को शायद इसका सही-सही बोध भी नहीं है, लेकिन यदि एक बार उसे इसकी सही झलक मिल जाए, तो वह देवभूमि की देवसंस्कृति का संवाहक बनकर अपनी भूमिका निभाने के लिए  सचेष्ट हो जाए। और बाहर से यहाँ पधार रहे यात्री और पर्यटक भी इसमें स्नात होकर इसके रंग में रंग जाएं। कुल्लू-मानाली हिमाचल की सबसे सुंदर घाटियों में से है, जिसके कारण मानाली सहित यहाँ के कई स्थल हिल स्टेशन के रुप में प्रकृति प्रेमी यात्रियों के बीच लोकप्रिय स्थान पा चुके हैं। हालाँकि बढ़ती आवादी और भीड़ के कारण स्थिति चुनौतीपूर्ण हो जाती है, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन इसकी सुंदर घाटियाँ, दिलकश वादियाँ अपने अप्रतिम सौंदर्य के साथ प्रकृति एवं रोमाँच प्रेमियोँ तथा आस्थावानों का स्वागत करने के लिए सदा तत्पर रहती हैं। 60-70 किमी लम्बी और 2 से 4 किमी चौड़ी घाटी के बीचों-बीच में बहती ब्यास नदी की निर्मल धार, इसे वि

पुस्तक समीक्षा – हिमालय की वादियों में

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यात्राओं में हिमालय हिमालय युगों-युगों से लोगों को आकर्षित करता रहा है। सैलानियों के लिए अगर हिमालय को सौंदर्य अविभूत करने वाला है, तो युगों-युगों से साधक यहाँ तपस्या और समाधि के लिए आते रहे हैं। हिमालय पर लिखी गई असंख्य किताबों में भी इसके विविध रुप उभरकर सामने आए हैं। लेखक सुखनंदन सिंह की पुस्तक हिमालय की वादियों में, इसी की ताजा कड़ी है। पहाड़ों की गोद में जन्में लेखक बचपन से ही हिमालय के प्रति आकर्षित रहे हैं। उन्होंने खुद लिखा है कि किशोरावस्था में नगर स्थित निकोलाई रोरिख केन्द्र में जाने का अवसर मिला, तो युवावस्था में पर्वतारोहण के माध्यम से हिमालय को नजदीक से देखने का संयोग बना। स्वामी विवेकानन्द और उनके गुरु भाई स्वामी अखण्डानन्द की हिमालय हिमालय यात्राओं ने इन यात्राओं में ईश्वरीय आस्था को बल दिया। युगऋषि पं.श्रीराम शर्मा आचार्य के सुनसान के सहचर ने हिमालय की गुढ़ आध्यात्मिक चेतना परिचित काया, तो स्वामी अमर ज्योति की पुस्तक हिमालय की आत्मा ने हिमालय की विरल ऊँचाईयों और गहराईयों से संवेदित किया। ऐसे ही सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह जी की आत्मकथा विचित्र नाटक ने हेमकुण्ड साह

मेरा गाँव मेरा देश – मौसम गर्मी का

गर्मी के साथ पहाड़ों में बदलता जीवन का मिजाज मैदानों में जहाँ मार्च-अप्रैल में बसन्त के बाद गर्मी के मौसम की शुरुआत हो जाती है। वहीं पहाड़ों की हिमालयन ऊँचाई में, जंगलों में बुराँश के फूल झरने लगते हैं, पहाड़ों में जमीं बर्फ पिघलने लगती है, बगीचों में सेब-प्लम-नाशपाती व अन्य फलों की सेटिंग शुरु हो जाती है और इनके पेड़ों व टहनियों में हरी कौंपलें विकसित होकर एक ताजगी भरा हरियाली का आच्छादन शुरु करती हैं। मैदानों में इसी समय आम की बौर से फल लगना शुरु हो जाते हैं। मैदानों में कोयल की कूकू, तो पहाड़ों में कुप्पु चिड़िया के मधुर बोल वसन्त के समाप्न तथा गर्मी के मौसम के आगमन की सूचना देने लगते हैं। मई माह में शुरु यह दौर जून-जुलाई तक चलता है, जिसके चरम पर मौनसून की फुआर के साथ कुछ राहत अवश्य मिलती है, हालाँकि इसके बाद सीलन भरी गर्मी का एक नया दौर चलता है। ये माह पहाड़ों में अपनी ही रंगत, विशेषता व चुनौती लिए होते हैं। अपने विगत पाँच दशकों के अनुभवों के प्रकाश में इनका लेखा जोखा यहाँ कर रहा हूँ, कि किस तरह से पहाड़ों में गर्मी का मिजाज बदला है और किस तरह के परिवर्तनों के साथ पहाड़ों का वि