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नवरात्रि साधना का व्यवहारिक तत्वदर्शन

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नवरात्रि साधना का राजमार्ग   नवदुर्गा   आजकल नवरात्रि का पर्व अपने पूरे जोरों पर है, आज इसका पांचवाँ दिन है, जो सकन्द माता के लिए समर्पित है। पहले दिन शैलपुत्री के रुप में साधक का संकल्प, ब्रह्मचर्य के तप में तपते हुए (ब्रह्मचारिणी), माँ चंद्रघंटा के दिव्य संदेशों को धारण करते हुए, माँ कुष्माण्डा से इस पिण्ड में व्रह्माण्ड की अनुभूति का वरदान पाते हुए आज बाल यौद्धा के रुप में माँ की गोद में जन्म लेता है। जो क्रमशः भवानी तलवार को धारण करते हुए (माँ कात्यायनी), सकल आंतरिक-बाहरी असुरता का संहार करते हुए (माँ कालरात्रि) एक महान रुपाँतरण (माँ गौरी) के बाद   अंतिम दिन सिद्धि (माँ सिद्धिदात्रि) को प्राप्त होता है। यह नवरात्रि वर्ष में दो वार ऋतु संधि की वेला में आती है, जिसका विशिष्ट महत्व रहता है। यह तन-मन में ऋतु बदलाव के साथ होने वाले परिवर्तनों के साथ सूक्ष्म लोक में उमड़ते-घुमड़ते दैवीय प्रवाह के साथ जुडने एवं लाभान्वित होने का विशिष्ट काल रहता है। ऋषियों ने इसके सूक्ष्म स्वरुप को समझते हुए इस काल को विशिष्ट साधना से मंडित किया। गायत्री परिवार में नैष्ठिक साधक चौबीस हजार का एक लघ