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यात्रा वृतांत – हमारी पहली त्रिलोकनाथ यात्रा, भाग-2

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  लाहौल घाटी के विहंगम दर्शन लाहौल घाटी, अक्टूवर 2020 का नजारा अगले दिन केलाँग से लोकल बस में त्रिलोकनाथ धाम की यात्रा करते हैं, जो यहाँ से 45 किमी की दूरी पर दक्षिण की ओर स्थित है। रास्ते में तांदी के संगम को दायीं ओर से पार करते हैं, जहाँ चंद्रा और भागा नदियाँ मिलकर चंद्रभागा नदी के रुप में आगे बढ़ती हैं, जो आगे चलकर चनाव नदी कहलाती है। यहाँ   रास्ते में ठोलंग, शांशां आदि स्टेशन पड़ते हैं। मालूम हो कि ठोलंग ऐसा गाँव है जहाँ हर घर से अफसर, डॉक्टर और आईएएस अधिकारी मिलेंगे और यहाँ पर सबसे अधिक आईएएस अफसर होने का रिकॉर्ड है।  लाहौल घाटी का एक गाँव इनके आगे एक स्थान पर बस से उतर कर पुल से चंद्रभागा नदी (चनाव) को पार करते हैं। साथ में उस पार गाँव के लोकल लोग भी हमारे साथ थे। चंद्रभागा का पुल पार कर गाँव से होकर गुजरते हैं, इनके खेतों में एक विशेष प्रकार की फूल वाली लताओं से खेतों को भरा पाते हैं। पता करने पर इनका नाम हॉफ्स निकला, जो खेतों व गाँव के सौंदर्य़ में चार चाँद लगा रही थी। इनसे बेहतरीन किस्म की वीयर तैयार की जाती है और किसानों को इस फसल के अच्छे दाम भी मिलते हैं। लगभग आध

यात्रा वृतांत – हमारी पहली त्रिलोकनाथ यात्रा, भाग-1

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  लाहौल के ह्दय क्षेत्र कैलांग की ओर मनाली के आगे रोहतांग पास की ओर रोहताँग के पार – बहुत सुना था, लाहुल-स्पीति के बारे में बड़े-बुजुर्गों से किवदंतियों के रुप में बचपन से। तीन-चार वर्ष पहले बेसिक कोर्स के दौरान यहाँ से होकर गुजरे भी थे, लेकिन वह परिचय यहाँ के मात्र पहाड़ों, नदियों, हिमानियों, सरोवरों तथा शिखरों से था। यहाँ के लोकजीवन, संस्कृति-समाज तथा अध्यात्म से परिचय न के बराबर था, जिसे इस बार थोड़ा नजदीक से समझने-जानने का अबसर था। इस बार केलाँग में रुकने व आस-पास के क्षेत्रों को एक्सप्लोअर करने का संयोग बन रहा था। पिताजी कैलांग में बागवानी विभाग के अधिकारी पद पर कार्यरत थे। साथ ही हमारी नयी-नयी शादी हुई थी, जीवन संगिनी संग इस क्षेत्र में यात्रा का प्लान बन चुका था, जिसका विशेष आकर्षण था त्रिलोकीनाथ धाम की तीर्थयात्रा, जिसके रोचक संस्मरण बचपन से घर के बुजुर्गों से सुनते आए थे। यात्रा कई मायनों में याद्गार रही, जिसके कुछ दृष्टाँत आज भी रोंगटे खड़ा कर देते हैं और रोमाँच पैदा करते हैं। मालूम हो कि लाहौल एक ऐसा क्षेत्र है, जो प्रायः नवम्बर से अप्रैल तक लगभग छः माह पूरी दुनियाँ स

मेरा गाँव मेरा देश - बेसिक कोर्स का रोमाँच, भाग-3

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लाहौल घाटी में पर्वतारोहण और शिखर का आरोहण यहाँ आकर तम्बू गाढ़ते हैं, थोड़ी ही देर में इस विरान घाटी में तम्बुओं की एक बस्ती बस जाती है। नदी का पानी मिट्टी लगे ग्लेशियर के पिघलने के कारण साफ नहीं था, सो थोड़ी दूरी पर नीचे चश्में से पीने के लिए शुद्ध जल लाते थे। जिगजिंगवार घाटी चट्टानी पहाड़ों के बीच अधिकाँशतः पत्थरीला धरातल लिए एक विरान स्थल है। सड़क के थोडा ही नीचे मैदान में हमारी बस्ती सज चुकी थी। पास में बर्फिली नदी बह रही थी, जिसके उस पार नीचे आढ़ी-तिरछी सड़क और नीचे पहाड़ खड़े थे। हमारे पीछे दायीं ओर चट्टानी पहाड़ खड़े थे, जिनकी गोद से होकर जिग-जैग सड़क आगे लेह की ओर बढ़ रही थी। कभी कभार कोई इक्का-दुक्का बाहन वहाँ से गुजरता तो दूर से हाय-बाय हो जाती, अन्यथा इस निर्जन स्थल पर तो जैसे परिन्दा भी पर नहीं मारने बाली कहावत लागू हो रही थी। वायीं ओर नदी के उस पार बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे थे, जहाँ अगले दिनों हमारा स्नो-क्राफ्ट और आईस-क्लाइंविंग का अभ्यास होना था। बर्तन धोने के लिए पास में बह रही नदी का पानी प्रयोग करते थे, पानी इतना ठँडा रहता कि, खाने का तेल-घी सब हाथ में जम जाता