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सोमवार, 30 जून 2025

सत्य का संधान, स्थापना धर्म की


सत्य का संधान, स्थापना धर्म की,

किसने कहा कि है कार्य सरल-सहज, खेल बच्चों का,

स्वयं प्रभु आते हैं धरा पर इसको संभव बनाने।

 

लेकिन उनके साथी सहचर अंश होने के नाते,

हर संवेदनशील इंसान, जाग्रत जीवात्मा को उतरना पड़ता है मैदान में,

नहीं चुप रह सकती झूठ व असुरता का नग्न नृत्य को देख,

 करती है कुछ प्रयास इनसे जूझने, दूर करने के लिए,

 अपने स्तर पर, अपने ढंग से, अपनी क्षमता के अनुरुप।

 


अपने भोलेपन, मासूमियत में नहीं समझ पाती स्वरुप जगत का,

पहले सब अच्छे लगते हैं, उसे अपने जैसे, सरल-सहज,

सच्चे ईमानदार समझदार, गुरु के भक्त, वंदे सब प्रभु के।

 

लेकिन समय के साथ, कटु यथार्थ से पड़ता है जब वास्ता,

पता चलता है कि सबके अपने-अपने अर्थ, अपनी-2 परिभाषा,

 सत्य की, धर्म की, अच्छाई-बुराई और जीवन के मकसद की,

नहीं जीवन सरल इतना, शाश्वत वक्रता की यह विचित्र सृष्टि।

 

सूक्ष्म स्वार्थ-अहंकार, राग-द्वेष, महत्वाकाँक्षाएं सबकी अपनी-2,

ऐसे में सत्य-न्याय, धर्म-इमान, सही-गलत की बातें सापेक्ष,

सब अपनी-अपनी समझ, अनुभव, पूर्वाग्रह व समझ के चश्में से देख रहे।

 

जब अपने-परायों का भेद मुश्किल, तो बदल जाते हैं मायने धर्म स्थापना के,

ऐसे में जग के भोलेपन की भ्रम मारीचिका का टूटना है स्वाभाविक,

और अंधकार की शक्तियों का है वजूद अपना, सत्ता अपनी, संसार अपना।

 

नहीं चाहते ये परिवर्तन अभी वाँछित, अपनी शर्तों पर जीने के ये आदी,

नहीं औचित्य से मतलब इन्हें अधिक, बस अपने वर्चस्व की है इन्हें चिंता भारी,

इन पर न आए आँच तनिक भी, सत्य, न्याय, इंसानियत से नहीं इन्हें अधिक मतलव।

 

जाने-अनजाने में हैं ये हिस्सा समस्या के, शांति-समाधान में नहीं इनको अधिक रुचि,
आलोक सत्य का, प्रकाश धर्म का, तलवार न्याय की, हैं सीधे इनके वर्चस्व को चुनौती,

तिनका-2 जोड़ खड़ा मायावी महल, सत्य की एक चिंगारी से हो सकता है भस्म तत्क्षण।

 

अंधकार की इन शक्तियों का निकटतम संवाहक है बिगड़ैल मन अपना,

छिपे पड़े हैं, जिसके चित्त में महारिपु वासना-त्रिष्णा-अहंता, राग-द्वेष के अनगिन,

ये भी कहाँ बदलने के लिए हैं तैयार, आलस-प्रमाद में पड़े उनींदे, कम्फर्ट जोन के आदी।

 

इन्हीं से है समर पहला, बाहर के धर्मयुद्ध का मार्ग तभी खुलेगा,

इसलिए कठिन विकट मार्ग सत्य संधान का, धर्म स्थापना का,

स्वयं से है युद्ध जहाँ पहला, पहले साधना समर में उतरना होगा।

 

फिर अधर्म-अन्याय के विरुद्ध, सत्य-धर्म-औचित्य की दूधारी तलबार लेकर,

काल के तेवर को समझते हुए, महाकाल की इच्छा का अनुगमन करना होगा।

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

श्रेय का अधिकार तो सब चाहते हैं

 

कीमत चुकाने के लिए कितने हैं तैयार


आगे तो सब बढ़ना चाहते हैं मंजिल तक,

लेकिन पिछली खाई पाटने को कितने हैं तैयार।1

सफलता का सेहरा पहन सब चाहते हैं सजना संवरना,

अनवरत असफलता का दंश झेलने को कितने हैं तैयार।2

कंगूरे का क्लश तो हर कोई चाहता है बनना,

लेकिन गुमनामी में गलने को कितने हैं तैयार।3


श्रेय का तो हर कोई चाहता है अधिकारी बनना,

लेकिन पूरी कीमत चुकाने को कौन है तैयार।4

सिंहासन की चाहत भी रखता है हर कोई,

काँटे का ताज पहनने को कौन है तैयार।5

प्रकाश की चाहत भी है सभी के उर में,

लेकिन अंधकार से भिड़ने को कौन है तैयार।6


गुरुत्ता का श्रेय भी सभी चाहते हैं सहजता से,

शिष्यत्व की तपन में गलने को कितने तैयार।7

अमृत की चाह भी सब रखते हैं एक डुबकी में,

लेकिन विषपान के लिए कितने हैं तैयार।8

शिखर की चाहत तो हर कोई रखता है दिल में,

लेकिन पर्वत के आरोहण के लिए कितने हैं तैयार।9


मन का सुकून भी हर कोई चाहता है जीवन में,

लेकिन शांति के पथ पर चलने को कितने हैं तैयार।10

धर्म-अध्यात्म की अनुभूति भी हर इंसान चाहता है जेहन में,

लेकिन इँसानियत की नेक राह पर चलने को कितने सचेष्ट-तैयार।11

 संत सुधारक नायक का श्रेय भी सभी चाहते हैं सपने में,

आदर्श की खातिर शहीद होने के लिए कितने हैं तैयार।।12


मंगलवार, 31 जनवरी 2023

हे प्रभु कैसी ये तेरी लीला-माया, कैसा ये तेरा विचित्र विधान

 

जीवन – मृत्यु का शाश्वत चक्र, वियोग विछोह और गहन संताप

हे प्रभु कैसी ये तेरी लीला-माया, कैसा ये तेरा विचित्र विधान,

प्रश्नों के अंबार हैं जेहन में, कितनों के उत्तर हैं शेष,

लेकिन मिलकर रहेगा समाधान, है ये पूर्ण विश्वास ।0


आज कोई बिलखता हुआ छोड़ गया हमें,

लेकिन इसमें उसका क्या दोष,

उसे भी तो नहीं था इसका अंदेशा,

कुछ समझ नहीं आया प्रभु तेरा ये खेल 1

 

ऐसे ही हम भी तो छोड़ गए होंगे बिलखता कभी किन्हीं को,

आज हमें कुछ भी याद तक नहीं,

नया अध्याय जी रहे जीवन का अपनों के संग,

पिछले बिछुड़े हुए अपनों का कोई भान तक नहीं ।2

 

ऐसे में कितना विचित्र ये चक्र सृष्टि का, जीवन का,

कहीं जन्म हो रहा, घर हो रहे आबाद,

तो कहीं मरण के साथ, बसे घरोंदे हो रहे बर्वाद,

कहना मुश्किल इच्छा प्रभु तेरी, लीला तेरी तू ही जाने ।3

 

ऐसे में क्या अर्थ है इस जीवन का,

जिसमें चाहते हुए भी सदा किसी का साथ नहीं,

बिछुड़ गए जो एक बार इस धरा से,

उन्हें भी तो आगे-पीछे का कुछ अधिक भान नहीं ।4

 

कौन कहाँ गया, अब किस अवस्था में,

काश कोई बतला देता, दिखला देता,

जीवन-मरण की गुत्थी को हमेशा के लिए सुलझा देता,

लेकिन यहाँ तो प्रत्यक्ष ऐसा कोई ईश्वर का विधान नहीं ।5

 

ऐसे में गुरुजनों के समाधान, शास्त्रों के पैगाम,

शोक सागर में डुबतों के लिए जैसे तिनके का सहारा,

संतप्त मन को मिले कुछ सान्तवना, कुछ विश्राम,

स्रष्टा का ये कृपा विधान भी शायद कुछ कम नहीं ।6

 

बाकि तेरी ये सृष्टि, तेरा ये खेल प्रभु तू ही जाने,

यहाँ तो प्रश्नों के लगे हैं अम्बार और बहुतों के हैं शेष समाधान,

लेकिन अन्तर में लिए धैर्य अनन्त, है तुझ पर विश्वास अपार,

किश्तों में मिल रहे उत्तर, आखिर हो कर रहेगा पूर्ण समाधान ।7

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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

जीवन दर्शन - मन की ये विचित्र माया

 

बन द्रष्टा, योगी, वीर साधक


 
                             मन की ये माया

गहन इसका साया

चुंगल में जो फंस गया इसके

तो उसको फिर रव ने ही बचाया ।1।

 

खेल सारा अपने ही कर्मों का

इसी का भूत बने मन का साया

आँखों में तनिक झाँक-देख लो इसको

फिर देख, ये कैसे पीछ हट जाए ।2।

 



मन का बैसे कोई वजूद नहीं अपना

अपने ही विचार कल्पनाओं की ये माया

जिसने सीख लिया थामना इसको

उसी ने जीवन का आनन्द-भेद पाया ।3।

 

वरना ये मन की विचित्र माया,

गहन अकाटय इसका आभासी साया

नहीं लगाम दी इसको अगर,

तो उंगलियों पर फिर इसने नचाया ।4।

 

बन योगी, बन ध्यानी, बन वीर साधक,

देख खेल इस मन का बन द्रष्टा

जी हर पल, हर दिन इसी रोमाँच में

देख फिर इस जगत का खेल-तमाशा ।5।


शनिवार, 25 जनवरी 2020

स्वागत 2020 – निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार



परिवर्तन के ये पल निर्णायक महान
2020 नहीं महज वर्ष नया,
निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार,
तीव्र से तीव्रतम हो चुका काल चक्र परिवर्तन का,
महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया, ऐतिहासिक महान।।
शुरुआती हफ्तों में ही मिल चुके ट्रेलर कई,
न रहें काल के तेवर से अनजान,
सभी कुछ निर्णायक दौर से गुजर रहा,
जड़ता, प्रतिगामिता नहीं अब काल को स्वीकार।।

 न भूलें सत्य, ईमान और विधान ईश्वर का, 
नवयुग की चौखट पर खड़ा इंसान,
देवासुर संग्राम के पेश होंगे लोमहर्षक नजारे,
कुछ रहेगा आधा-अधूरा, होगा सब आर-पार।।


धड़ाशयी होंगे दर्प-दंभ, झूठ के किले मायावी,  
नवसृजन का यह प्रवेश द्वार,
जनता की अदालत में होंगे निर्णय ऐतिहासिक,
 धर्मयुद्ध के युगान्तरीय पल दुर्घर्ष-रोमाँचक-विकराल।।

 अग्नि परीक्षाओं की आएंगी घड़ियाँ अनगिन,
 गुजरेंगे जिनसे हर राष्ट्र, समाज और इंसान,
2020 नहीं महज वर्ष नया,
निर्णायक दशक का यह प्रवेश द्वार।।

 महाकाल के हाथोंं स्वयं कमान युग की,

नवयुग की चौखट पर खड़ा इंसान,
परिवर्तन के ये पल ऐतिहासिक रोमाँचक,
स्वागत के लिए हम कितना हैं तैयार।।

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