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मेरी पहली कुमाऊँ यात्रा, भाग-3 (अंतिम किश्त)

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                                      एडवेंचर भरी मस्ती का रोमाँच              मुनस्यारी से अल्मोड़ा की ओर बापसी - सुबह तड़के छः बजे हम मुनस्यारी से बापस अल्मोड़ा की ओर चल पड़े। जीप टैक्सी थोड़ा लेट होने के कारण हम पैदल ही कुछ दूर तक चलते रहे। रास्ते के दोनों ओर जंगली बांस के झुरमुट बहुत सुंदर लग रहे थे। इनमे से एक वांस की डंडी को काटकर हम निशानी के बतौर साथ ले लिए। क्षेत्रीय लोग इससे कई तरह की टोकरी, किल्टे, घरेलू उपयोग के सामान तैयार करते हैं। इसी से बांसुरी भी तैयार की जाती है। जीप टेक्सी आ चुकी थी। यहाँ से पहाड़ की चोटी तक का रास्ता बहुत ही सुंदर है। रास्ते की हरियाली भरे सुंदर मार्ग का अबलोकन करते रहे। काली मंदिर से ही खलिया टॉप का ट्रेकिंग रास्ता है, जहाँ से चारों ओर का विहंगम नजारा दर्शनीय रहता है, समय के अभाव के कारण इसे अगली यात्रा के लिए छोड़ आए। काला मुनि टॉप के बाद पहाड़ी की दूसरी ओर खतरनाक उतराई भरा रास्ता तय किया। रास्ते में चुने की चट्टानों से होकर रास्ता गुजरा। राह में निर्मल जल से भरा झरता झरना राहगीरों को ताजगी का अहसास बाँट रहा था। घाटी की

मेरी पहली कुमाऊँ यात्रा-भाग 2

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अल्मोड़ा से मुनस्यारी, मदकोट दौलताघट से अल्मोड़ा की ओर – दौलताघट से हम लोक्ल बस से होते हुए अल्मोड़ा की ओर चल दिए। हालांकि हम रानीखेत के विपरीत चल रहे थे, लेकिन मोड़ पर रानीखेत की ओर की हिमध्वल पर्वत श्रृंखलाएं घाटी के पार एक मनोरम नजारा पेश कर रही थी। कोसी नदी के किनारे , चीड़ के जंगलों के बीच हम कुछ ही मिनटों में अल्मोड़ा पहुँचे। यहाँ से जीप टेक्सी में मुनस्यारी के लिए चल पड़े। रास्ते में चित्तई के गोलू देवता और गायत्री शक्तिपीठ को प्रणाम करते हुए आगे बढ़े। गोलू देवता यहाँ के लोकप्रिय स्थानीय देवता हैं। आगे रास्ते में चीड़ के जंगल बहुतायत में मिले। हालांकि दृश्यावली सुंदर थी , लेकिन ये सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं थे। क्योंकि जितना अल्पज्ञान हमें है , उसके अनुसार , चीड़ के बन पहाडों में आग का प्रमुख कारण हैं। इनसे बिरोजा का लाभ जरुर मिलता है , लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये आदर्श नहीं हैं। फिर ये पानी का बहुत अवशोषण करते हैं। एक बिरोजा के लाभ के लिए पूरे पहाड़ों को चीड़ के जंगलों से पाटना कौन सी दूरदर्शिता का काम है , यह हमारी समझ से परे रहा। ची