मेरा गाँव, मेरा देश – शिखर की गोद में बचपन की शेष यादें

यादें बचपन की, समाधान कल के बचपन की बातें जो कभी सहज क्रम में घटीं थीं, आज वो यादों के रुप में गहन अचेतन में दफन हैं। बचपन के बाद किशोरावस्था, फिर युवा और अब प्रौढ़ावस्था के पार जीवन की ढलती शाम। बचपन के वे गाँव, घर, घाटी, पर्वत और परिजन - सब पीछे छूट चुके हैं, जीवन के अर्थ और मर्म की तलाश में। और इस तलाश को पूर्णता देने वाले नए मायने मिलते हैं दुबारा उसी बचपन में पहुँचकर, बचपन के बालसुलभ भाव-जिज्ञासा-सपनों और अरमानों को जिंदा पाकर, जब कभी संयोग घटित होता है उस अतीत में लौटने का, उसमें झांकने का, उसे जीने का। कुछ ऐसे ही पल या कहें दिन के चंद घंटे मिले इस बार अगस्त माह में, जब अपने भाईयों के संग जन्मभूमि तक पहुँचने का संयोग बना। बचपन अधिकाँश नाना-नानी के घर शिखरों की गोद में बसी घाटी में बसे सेऊबाग गाँव में बीता, लेकिन दादा-दादी का घर पहाड़ के शिखर की गोद में बसे गाहर गाँव में था था, जहाँ पहुँचने के लिए 3-4 किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती थी। इसका सफर बचपन में घंटों लेता था। नाले के पार सयो गाँव आता था। नाला सदावहार था। इसको पार करना स्वयं में एक रोमाँच से कम नहीं