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सार सवक वर्ष 2015 का, 2016 का सृजन पैगाम

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मत खोना आपा अपना, बना रहे आपसी प्यार-सहकार वीत चला वर्ष 2015, 2016 का हो चला आगाज, मिटा दें गिले-शिक्बे पुराने, आओ करें कुछ सार्थक संवाद। काम बने या बिगड़े या हो कितना ही दबाव, मत खोना आपा अपना, बना रहे आपसी प्यार-सद्भाव, माना यह काम  सरल नहीं , राह कठिन, थोड़ी अनजान, वर्ष 2016 की कौरी पुस्तक, आओ लिखें कुछ नया इतिहास। रिश्तों में है विश्वास अगर , तो समझो सारा जग आबाद, नहीं तो फिर क्या अकेली बुलंदी, शिखर पर भी इंसान परेशान, काम तो बिगड़े बन जाएंगे, नहीं लौटे खोया विश्वास-सद्भाव, मत खोना आपा अपना, बना रहे आपसी प्यार-सहकार। इतनी भी क्या तैश तुनकमिजाजी,  ठीक नहीं उन्मादी व्यवहार, कैसे होगा आरोहण शिखर का, नहीं जिसमें थोड़ा सा धीरज-विश्वास, बिन शांति-संतुलन कैसा सृजन, अंतर में जब मचा हाहाकार, समत्व रहा सदा आधार सृजन का, रहें शिव संकल्प के संग तैयार।   नहीं संकल्प भर से होगा काम पूरा , चुस्त-दुरुस्त करना होगा चिंतन-व्यवहार, प्रपंच (परचर्चा-परनिंदा) से रहना होगा दूर सदा , दृष्टि लक्ष्य-आदर्श पर , और ह्दय थोड़ा उदार। नेगेटिविटी विेलेन जिंदग