संदेश

सुरकुंडा देवी लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यात्रा वृतांत-सुरकुंडा देवी का वह यादगार सफर, भाग3

चित्र
गढ़वाल हिमालय के सबसे ऊँचे शक्तिपीठ के दिव्य प्राँगण में कद्दुखाल से सुरकुंडा देवी तक 3 किमी का ट्रेकिंग मार्ग है, जहाँ हमें 8000 फीट से लगभग 10000 फीट ऊँचाई तक का आरोहण करना था। पूरा रास्ता पक्का , पर्याप्त चौड़ा और सीढ़ीदार है , प्रायः हल्की चढ़ाई लिए समतल , लेकिन बीच-बीच में खड़ी चढ़ाई भी है। जो चल नहीं सकते , उनके लिए घोड़े-खच्चरों की भी व्यवस्था है , लेकिन हमारे दल में कोई ऐसा नहीं था जिसे इनकी जरुरत पड़ती। पहाड़ को चढ़ने का सबका उत्साह और जोश देखते ही बन रहा था। अगले ही कुछ मिनटों में दल का बड़ा हिस्सा दृष्टि से औझल हो चुका था , कुछ ही पथिक साथ में बचे थे। लगभग आधा पौन घंटे की चढ़ाई के बाद दम फूल रहा था , सो यहाँ एक बड़े से बुराँश पेड़ की छाया तले रेलिंग के सहारे खड़े हो गए , कुछ दम लिए , जल के दो घूंट से सूखे गले को तर किए और फिर आगे चल दिए। इन विशिष्ट पलों को यादगार के रुप में कैमरे में केप्चर किए। इस रास्ते की खासियत ये बुराँश के पेड़ भी हैं, जो पर्याप्त मात्रा में लगे हैं। गुच्छों में लगी लम्बी हरि पत्तियाँ इनकी पहचान है। अप्रैल-मई माह

यात्रा वृतांत - सुरकुंडा देवी का यादगर सफर, भाग-2

चित्र
गढ़वाल हिमालय की सबसे मनोरम राहों में एक हिमालय के आलौकिक वैभव की पहली झलक चम्बा को पार करते ही हम आराकोट स्थान पर पहुंचे, जहाँ से हिमाच्छादित हिमालय की ध्वल श्रृंखलाओं के प्रत्यक्ष दर्शन करते ही काफिले के हर सदस्य के मुंह से आह-वाह के स्वर निकल रहे थे। चलती बस से सभी इसको मंत्र मुग्ध भाव से निहार रहे थे। थोड़ी ही देर में हिमालय की ध्वल पर्वत श्रृंखलाएं दृष्टि से औझल हो चुकी थी। अब हम पहाड़ी के वायीं ओर से आगे बढ़ रहे थे। ऐसे में नीचे दक्षिण में देहरादून की ओर की पहाड़ियों व घाटियों के दर्शन हो रहे थे। यहाँ सीढ़ीनुमा खेत प्रचुर मात्रा में दिखे, जो देखने में बहुत सुंदर लग रहे थे। पहाड़ी यात्रा के दौरान ये खेत निश्चित रुप में पथिकों का ध्यान आकर्षित करते हैं और सफर का एक सुखद अहसास रहते हैं। रास्ते में हम चुपडियाल नामक हिल स्टेशन को पार करते हुए आगे बढ़े। सड़क के साथ सटे सीढ़ीदार खेतों में सरसों, पालक, राई, मटर, गोभी आदि की सब्जियों को प्रचुर मात्रा में उगे देखा। लगा यह क्षेत्र कैश क्रॉप्स के मामले में जागरुक है। और कहीं-कहीं सेब के पेड़ भी दिखना शुरु हो चुके थे। प