प्रबुद्ध शिक्षक, जाग्रत आचार्य

लोकतंत्र के सजग प्रहरी – भविष्य की आस सुनहरी आज हम ऐसे विषम दौर से गुजर रहे हैं, जब लोकतंत्र के सभी स्तम्भ लड़खडा रहे हैं। कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के साथ इनका प्रहरी - चतुर्थ स्तम्भ, प्रेस-मीडिया भी अपनी भूमिका में डगमगाता नजर आ रहा है। ऐसे में, देश के भविष्य को गढ़ने में सक्षम शिक्षा तंत्र से विशेष आशाएं हैं। इसे लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ कहें तो अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि इसके आधार स्तम्भ हैं प्रबुद्ध शिक्षक एवं जाग्रत आचार्य। अपनी प्रखरता एवं गुरुता के बल पर ये विद्यार्थियों में उस संजीवनी का संचार कर सकते हैं, जो उन्हें लोकतंत्र का एक उपयोगी घटक के रुप में अपनी भूमिका निभाने के काबिल बना सके। प्रस्तुत हैं शिक्षक को अपनी गरिमामयी भूमिका में स्थापित करने वाले नौ सुत्र, जो इस दिशा में विचारणीय हैं, वरणीय हैं - 1. अपने विषय का जानकार – शिक्षा का पहला उद्देश्य छात्रों को विषय ज्ञान देना है, उन्हें प्रबुद्ध नागरिक बनाना है, जिससे कि वे स्वावलम्बी एवं कौशलपूर्ण नागरिक बन सकें। इस नाते शिक्षक अपने विषय का जानकार होता है