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मेरा गाँव मेरा देश – मौसम वसन्त का, भाग-1

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सर्दी के बाद वसंत की वहार मैदानों में वसन्त का मौसम समाप्त हो चला, आम के बौर अपने चरम पर हैं, लेकिन चारों और पेडों में फूलों का अभाव थोड़ा खटकता है। गंगा तट पर खाली सेमल के विशाल वृक्षों में लाल फूलों को देखकर तसल्ली कर लेते हैं। वसन्त का वह फील नहीं आता, जिनसे बचपन की यादें डूबी हुई हैं, जब घाटी-गाँव में ठण्डी हवा के बीच तमाम पेड़ों की कौंपलें एक-एक कर फूट रही होती और रंग-बिरंगी सतरंगी छटा घाटी के माहौल में एक अद्भुत सौंदर्य एवं मोहकता की सृष्टि कर रही होती। आज इन्हीं यादों के सागर में डुबकी लगाकर बचपन से दूर गंगा तट से उन यादों को ताजा कर रहे हैं, जो वालपन के अनुभव का हिस्सा रही हैं। मालूम हो कि ठण्ड में प्रकृति सुप्तावस्था में रहती है। हाड़कंपाती ठण्ड के बाद जब ऋतु करवट लेती है , तो वसन्त का मौसम दस्तक देता है। इसी के साथ जैसे ठंड़ में अकड़ी-जकड़ी प्रकृति अंगड़ाई लेती है। प्रकृति के हर घटक में एक नई चैतन्यता का संचार होता है। हमारे पहाड़ी गाँव-घाटी में वृक्षों में कौंपलें फूटना शुरु हो जाती, जिनसे एक-एक कर नाना प्रकार के पेड़ों से रंग-बिरंगे फूल खिलने शुरु हो जाते।