शनिवार, 6 अप्रैल 2024

दैनिक जीवन में अध्यात्म, भाग-1

                                                       अध्यात्म - अर्थ, आवश्यकता एवं महत्व 

                                                 अध्यात्म क्या है? – अर्थ एवं परिभाषा

अध्यात्म की आवश्यकता – मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक

अध्यात्म का महत्व – वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, वैश्विक

अध्यात्म क्या है? -

अध्यात्म एक बहुत व्यापक शब्द है, जिसको परिभाषित करना सरल नहीं। व्यक्ति की सोचमनःस्थिति एवं चेतना की अवस्था के अनुरुप इसके कई मायने हो सकते हैं। शाब्दिक रुप में अध्यात्म्, अधिः एवं आत्मन् शब्दों से मिलकर बना हुआ हैजिसका अर्थ हुआ आत्मा की ओर मुड़ना एवं इसका अध्ययन। श्रीमद्भगवद्गीता में स्वभावो अध्यात्म उच्यते अर्थात अध्यात्म को स्वभाव के रुप में परिभाषित किया गया है। अब स्व की धारणा व्यक्ति की चेतना की अवस्था पर निर्भर करती हैजिसका चरम है आत्मभाव। अध्यात्म के अंग्रेजी पर्याय स्प्रिचुअलिटी में SPIRIT शब्द व्यक्तित्व की पावन व अनश्वर सत्ता का द्योतक है। इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स के अनुसारअध्यात्म व्यक्ति का गहनतम केन्द्र और परमसत्य का अनुभव है। (The deepest center of the person and experience of the ultimate reality)

इस तरह अध्यात्म को अपने स्व काअपने अस्तित्व का अनुभव एवं इसका अध्ययन कह सकते हैंजिसके दायरे में अपना समग्र व्यक्तित्व एवं जीवन आता है। हालाँकि व्यक्तित्व का अध्ययन तो मनोविज्ञान भी करता हैलेकिन इसका दायरा व्यवहार के साथ चेतन और अचेतन मन तक सीमित है। युगऋषि आचार्य पं.श्री रामशर्मा के शब्दों में अध्यात्म विशुद्ध रुप से मनःशास्त्र हैउच्चतर मनोविज्ञान (higher psychology) है। इसके चेतनअचेतन और अतिचेतन तीन स्तर आते हैं। व्यवहार और बुद्धि सचेतन हैं। आदतें अचेतन और उत्कृष्टताआदर्शवादितादिव्यता अतिचेतनता के प्रतीक हैं।  आचार्यजी के अनुसार, व्यवहारिक रुप में अध्यात्म का अर्थ ईश्वर के प्रति विश्वासश्रेष्ठताआदर्शों की पराकाष्ठा है।

 स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में, मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह अपने वास्तविक रुप में आत्म-तत्व है। वस्तुतः स्वामी विवेकानन्द धर्म के सार रुप में अध्यात्म की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि एक विज्ञान के रुप में स्वयं का अध्ययन, अनुसंधान मानवीय मन के लिए संभावित सबसे महान एवं स्वस्थ कसरत है। अनन्त की खोजअनन्त को सानन्त बनाने का संघर्षइंद्रियों की सीमाओं के पार जाने का प्रयास, जड़ पदार्थ पर चेतन आत्मतत्व की विजय और व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रकृति का प्राकट्यदिन और रात अनन्त को जीवन का अंग बनाने की अंतहीन चेष्टायह संघर्ष स्वयं में सबसे गौरवमयी एवं अनुपम संघर्ष है।

स्वामीजी के शब्दों में अध्यात्म एक पावन सत्ता हैजो व्यक्ति को जीवन के गहनतम तत्व से संपर्क में लाता है और आत्यांतिक सत्य से जोड़ता है। यह जीवन के सर्वोच्च आदर्श की खोज है। यह मनुष्य में अंतर्निहित दिव्यता का प्रकटीकरण एवं अभिव्यक्ति है। यह पुस्तकोंकर्मकाण्डों या बौद्धिक बहस का विषय नहींयह तो वह स्वयं होना व बनना है, प्रत्यक्ष अनुभूति करना हैन कि विश्वास मात्र। यह स्व की आत्मतत्व के रुप में अनुभूति है। वास्तविक धर्म(अध्यात्म) की शुरुआत वहाँ से होती हैजहाँ से इस तुच्छ संसार का समाप्न होता है। इस तरह स्वामी विवेकानन्द के शब्दों मेंहर आत्मा मूलतः दिव्य है। लक्ष्य आंतरिक एवं वाह्य प्रकृति पर काबू पाते हुए इस दिव्यता को अभिव्यक्त करना है। वे कहते हैं कि इसे कर्म द्वारा करो या पूजा द्वारा या मानसिक निग्रह द्वारा या दर्शन द्वाराइनमें से किसी एक विधि द्वारा या सबको मिलाकर और सारी सीमाओं के पार मुक्त हो जाओ। यही धर्म का सार है, अध्यात्म तत्व है। सिद्धान्त या रीतियाँ या कर्मकाण्ड या पुस्तकें या मंदिर या अन्य प्रतीक तो मात्र इसके बाहरी विस्तार भर हैं।

स्वामी विवेकानन्द के गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि इस संसार में आए हो तो पहला कर्तव्य ईश्वरीय अनुभूति है, अध्यात्म लाभ है, बाकि सब चीजें खुद व खुद जुड़ती जाएंगी। अध्यात्म का मूल उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में शांति लाना है। मरने के बाद नहींइसी जीवन में प्रसन्नता व शांति को प्राप्त करना है। महर्षि अरविंद के शब्दों में  मनुष्य अपनी उच्चतमविशालतम और पूर्णतम सत्ता को पाने का प्रयत्न करता है और जिस क्षण वह उसके साथ जरा भी सम्पर्क प्राप्त कर लेता है उसके अन्दर की वह सत्ता विश्वगत भव्यशुभ एवं सौन्दर्य़ की किसी महान् आत्मा और सत्ता के साथ एकाकार होते दिखाई देती है। इस आत्मा एवं सत्ता को ही हम भगवान का नाम देते हैं।

इस तरह अध्यात्म को किसी एक परिभाषा में बाँधना कठिन है। इसको उतने ही विविध रुपों में परिभाषित एवं प्रतिपादित किया जा सकता हैजितना की जीवन की विविधता है। यदि मूल्यों की दृष्टि से विचार करना होतो अध्यात्म चेतना के परिष्कार का विज्ञान विधान है। कोई भी विधि जिससे मानवीय व्यक्तित्व गरिमापूर्ण बनेउसके चिंतनचरित्र एवं व्यवहार का परिमार्जन होउसमें पवित्रतासंयमसहिष्णुता, उदारतासेवा जैसे सद्गुणों का विकास होवह अध्यात्म है।

एक गुह्यवादी की भाषा में, अध्यात्म अपनी खोज में निकल पड़े मुसाफिर की राह एवं मंजिल है। जब लक्ष्य अपनी चेतना का स्रोत समझ आ जाए तो अपने उत्स, केंद्र की यात्रा है अध्यात्म। थोड़ा एडवेंचर के भाव से कहें तो यह अपनी चेतना के शिखर का आरोहण है। अध्यात्म स्वयं को समग्र रुप से जानने की प्रक्रिया है। विज्ञजनों की बात मानें तो यह जीवन पहेली की मास्टर-की (Master key) है। आश्चर्य़ नहीं कि सभी विचारकों-दार्शनिकों-मनीषियों ने चाहे वे पूर्व के रहे हों या पश्चिम केजीवन के निचोड़ रुप में एक ही बात कही – आत्मानम् विद् (स्वयं को जानो)नो दाईसेल्फ (Know thyself), अर्थात पहलेस्वयं को जानोअपने वास्तविक स्वरुप को पहचानो। और यह स्वयं को जाननासमस्त ज्ञान का आधार है।

वस्तुतः अध्यात्म स्वयं से वृहतर एवं विराट सत्ता (ईश्वरब्रह्मविराट ब्रह्माण्ड-सृष्टिशाश्वत नियमपरमसत्य) से जुड़ने की प्रक्रिया है और जीवन में सार्थकता की खोज है। यह एक तरह का सार्वभौम अनुभव हैजो हम सबको किसी न किसी स्तर पर स्पर्श करता है। इस तरह अध्यात्म जीवन में एक गहरे अर्थ की खोज है। जब हम आध्यात्मिक रुप में सबल होते हैंतो न केवल उच्चतर सत्य या सत्ता से बेहतर जुड़ाव अनुभव करते हैंबल्कि अपने परिवेश एवं चारों ओर से भी जुड़े होते हैं।

 इस तरह अध्यात्म आत्मानुसंधान का पथ हैएक अंतर्यात्रा है। अध्यात्म उस आस्था का नाम है जो जीवन का केंद्र अपने अंदर मानती है और जीवन की हर समस्या का समाधान अपने अस्तित्व के केंद्र में खोजते का प्रयास करती है तथा अंदर-बाहर के सामंजस्य के साथ अपने परम लक्ष्य की ओर बढ़ती है।

अध्यात्म की आवश्यकता -

मनोवैज्ञानिक मैस्लोव के अनुसारअध्यात्म व्यक्ति की उच्चतर आवश्यकता (मेटा नीड) है। जब व्यक्ति की शारीरिकभौतिकपारिवारिक, सामाजिक जरुरतें पूरी हो जाती हैंतो उसकी आध्यात्मिक जरुरत शुरु होती है। अर्थात् भौतिक उपलब्धियों के बावजूद जो खालीस्थान या शून्यता रहती हैजो अधूरापन कचोटता हैजो अशांति बेचैन करती हैअध्यात्म उसको भरता हैउसका उपचार करता हैउसको पूर्णता देता है। और ऐसा हो भी क्यों नहींआखिर सत्यज्ञान और आनन्द स्वरुप आत्म-सत्ता ही तो उसका वास्तविक स्वरुप है।

Hierrachy of Needs

 यदि बात भौतिक बुलन्दी की ही करें जो चारों ओर एक नजर डालने पर स्पष्ट हो जाता है कि अध्यात्म कालजयी सफलता का आधार है। हम अपने क्षेत्र के चुड़ाँत सफल व्यक्ति ही क्यों न बन जाएंयदि इनके साथ भी हमारी आंतरिक शाँतिस्थिरतासंतुलन बरकरार है तो मानकर चल सकते हैं कि हम अध्यात्म तत्व में जी रहे हैं। अन्यथा इन बैसाखियों के हटते हीसेवानिवृत होते ही जीवन नीरसबोझिल एवं सूनेपन से आक्रांत हो जाता है। स्पष्टतयः अध्यात्म के अभाव में जीवन की सफलतासारी बुलंदियाँ अधूरी ही रह जाती हैं।

 यहीं से अध्यात्म का महत्व स्पष्ट हो जाता है और इसका एक नया अर्थ पैदा होता है। अध्यात्म एक आंतरिक तत्व हैआत्मिक संपदा हैजो हमें सुखशांतिशक्तिआनन्द का आधार अपने अंदर से ही उपलब्ध कराता है। बाहरी अबलम्बन के हटनेछूटनेटूटने के बावजूद हमारी आंतरिक स्थिरता एवं संतुलन का स्रोत बना रहता है और तमाम अभाव-विषमताओं के बीच भी व्यक्ति अपनी मस्ती एवं आनन्द के साथ जीने में सक्षम होता है। अर्थात् अध्यात्म अंतहीन सृजन का आधार हैआगार हैजिसमें जीवन की हर परिस्थितिहर मनःस्थिति सृजन की संभावनाओं से युक्त रहती है।

 अध्यात्म हमारा वास्तविक स्वभाव, अकारण आनन्द की अवस्था है। मन की शांत, स्थिर, एकाग्र एवं प्रसन्न अवस्था का नाम है। जिन क्षणों में हम इस अवस्था में होते हैं, जाने-अनजाने में हम अध्यात्म तत्व में जी रहे होते। इस अवस्था को सचेतन रुप से प्राप्त करने तथा इसको बनाए रखने का विज्ञान विधान अध्यात्म है। भारतीय परम्परा में योग साधना के विविध तौर-तरीके इसी के लिए ऋषिओं द्वारा खोजे गएजैसे - कर्म योगभक्ति योगज्ञानयोग, राजयोगमंत्रयोगतंत्रयोगहठयोग, नाद योग आदि।

अध्यात्म की आवश्कता कब अनुभव 

 जब सबकुछ अनुकूल होता हैतो प्रायः अध्यात्म की आवश्यकता अनुभव नहीं होतीउन पलों में व्यक्ति अध्यात्म तत्व को भूला बैठा होता है। कहावत प्रसिद्ध है कि दुःख में सुमिरन सब करेसुख में करे न कोएजो सुख में सुमिरन करेतो दुख काहे को होए। (बाबा कबीर)

जीवन के गहरे दुःखझटकेसंघातिक प्रहार, असह्य वियोग-विछोहगहन विषाद आदि के बाद व्यक्ति में अध्यात्म के प्रति भाव जागता है। जैसे  कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन। वहाँ भगवान श्रीकृष्ण के सान्निध्य में विषाद के गर्भ से योग का जन्म होता है। प्रायः किसी प्रियजन के विछोह होने पर शमशान से होकर आने पर शमशान वैराग्य हावी रहता हैसंसार की निस्सारतः अनुभव होती है और व्यक्ति अध्यात्म की ओर उन्मुख होता है। हालाँकि यह बात दूसरी है कि यह भाव कितनी देर व्यक्ति के अंदर बना रहता है। 

सुख-भोग से मोहभंग की स्थिति में भी विरक्ति की स्थिति आती है और व्यक्ति सच्चे आनन्द एवं शांति की तलाश में अध्यात्म पथ का पथिक बन जाता है। जैसे – भगवान बुद्धमहावीरराजा भर्तृहरि आदि। सहज जिज्ञासाप्रायः पूर्वजन्म के कारणजीवन के परमसत्य की खोज का भाव जगे रहता है। जैसे आदि शंकराचार्यस्वामी विवेकानन्दआचार्य श्रीराम शर्मा आदिजहाँ बचपन से ही ईश्वर और जीवन के परमसत्य की खोज चलती रही। गीता में आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी के रुप में अध्यात्म की ओर उन्मुख व्यक्तियों की बात कही गई है।

अध्यात्म का महत्व -

अध्यात्म के अर्थ एवं आवश्यकता की चर्चा के साथ यह स्पष्ट हो जाता है कि अस्तित्व का केंद्रीय तत्व होने के कारण जीवन के हर क्षेत्र में इसका महत्व है। संक्षेप में बिंदुवार इनका वर्णन आगे किया जा रहा है -

·        जीवन की समग्र समझ - जितना हम स्वयं को जानने लगते हैंउतना ही हमारी मानव प्रकृति की समझ बढ़ती है। व्यक्तित्व की समग्र समझ के साथ जीवन की जटिलताओं का निपटारा उतनी ही गहनता एवं प्रभावी ढंग से संभव बनता है।

·        देह-मन से परे आत्म तत्वदिव्य तत्व के रुप में व्यक्तित्व की अनश्वर सत्ता की समझ आती है जीवन के चेतनअचेतन के पार इसके अतिचेतन स्वरुप का बोध होता है।

 ·        एकतरफा भौतिक विकास का संतुलक  अध्यात्म एकतरफे भौतिक विकास को संतुलन देता है। आज की भौतिक प्रगति की अँधी दौड़ से उपजी विषमता व असंतुलन का परिणाम आत्मघाती-सर्वनाशी संकट हैजिसका जड़ मूल से समाधान अध्यात्म में निहित है।

·        सांसारिक उपलब्धियों के साथ आंतरिक शांति-संतुलन का आधार तैयार होता है। गृहस्थ और समाज-संसार में रहते हुए भी अध्यात्म को कैसे धारण किया जा सकता हैमार्ग प्रशस्त होता हैजिसको युगऋषि आचार्य़ श्रीरामशर्मा ने व्यवहारिक अध्यात्म का नाम दिया।

 ·        अपने भाग्य विधाता होने का भाव  अध्यात्म जीवन की समग्र समझ देता है। व्यक्तित्व की सूक्ष्म जटिलताओं से रुबरु कराता है, जीवन की समस्याओं  चुनौतियों का समाधान अपने अंदर खोजता है तथा इन पर नियंत्रण का कौशल सिखाता है और क्रमशः खुद पर न्यूनतम नियंत्रण एवं शासन का मार्ग प्रशस्त करता है कि हम अपने भाग्य के विधाता आप हैं।

 ·        द्वन्दों से पार जाने की शक्ति व सूझ  अध्यात्म जीवन की अनिश्चितता के बीच एक निश्चिंतता का भाव देता है। जीवन में सुख-दुखमान-अपमानलाभ-हानि जैसे द्वन्दों के बीच सम रहने और विषमताओं को पार करने की सूझ एवं शक्ति देता है। जीवन के तनावअवसाद और विषाद से उबरने की क्षमता देता है। अध्यात्म घोर निराशा के बीच भी आशा का संचार करता है।

 ·        खुद से रुबरु करविराट से जोड़े  खुद को जानने की प्रक्रिया से शुरु अध्यात्म व्यक्ति को अंतर्रात्मा से जोड़ता है और एक जाग्रत विवेक तथा संवेदी ह्दय के साथ व्यक्ति परिवारसमाज एवं विश्व से जुड़ता है और विराट का एक संवेदी घटक बनकर जीता है।

·        व्यक्ति स्वयं को जितना जानता है, जितने गहरे उतरता हैउतना ही विराट से जुड़ता जाता है।

 ·        विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता का आधार  अध्यात्म विवेक को जाग्रत करता हैजो सहज स्फूर्त नैतिकता एवं आत्म-अनुशासन को संभव बनाता है और व्यक्ति जीवन मूल्यों के स्रोत से जुड़ता है।

·        अध्यात्म क्रमिक रुप से व्यक्तित्व के बिखराव को रोकता है, पर्सनल इंटिग्रेशन को अंजाम देता है। व्यक्ति में सद्गुणों का विकास होता है, चरित्र का गठन होता है तथा व्यक्तित्व में एक विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता जन्म लेती है।

    ·        व्यक्तित्व की चरम संभावनाओं को साकार करे – मानसिक स्थिरता, एकाग्रता के साथ प्रतिभा (creativityका प्रस्फुटन होता है।

·        अंतर्निहित दिव्य क्षमताओं एवं शक्तियों के जागरण-विकास के साथ व्यक्तित्व की चरम सम्भावनाएं क्रमिक रुप में साकार होती हैं। आज हम जिन महापुरुषोंमहामानवों एवं देव मानवों को आदर्श के रुप में देखते हैंवे किसी न किसी रुप में इसी विकास का परिणाम थे।

     अन्य महत्व 

      जीवन में एक अर्थ, सार्थकता एवं परिपूर्णता का बोध दे।

      समग्र जीवन दृष्टि के साथ मानव प्रकृति की गहरी समझ देजो व्यक्ति को व्यवहार कुशलता का अवदान दे।

      गहन अंतर्दृष्टि एवं अपनी जिम्मेदारी का भाव विकसित होता है। अपने स्वधर्म का बोध होता हैऔर कर्तव्य परायण जीवन सुनिश्चित होता है।

      जीवन के प्रति एक सकारात्मक एवं आशावादी रुख पनपता है।

     पारिवारिक में संस्कार का वीजोरोपण होता है और युगऋषि के शब्दों में परिवार नर-रत्नों की खदान बनते हैं।

      समाज में पावन भावों एवं सकारात्मक विचारों का संचार होता है। वर्तमान वैचारिक प्रदूषण भरे इस युग में इसका महत्व समझा जा सकता है।

      विश्व शांति एवं सौहार्द्रय का ठोस आधार होता है। धर्मोंसंस्कृतियों एवं राष्ट्रों के आपसी टकराहट भरे युग में आंतर्सांस्कृतिक संचार का एक संवाद सेतु तैयार होता है।

 जरा सोचेंविचारें! !

 यदि आप पूरे लेख से गुजर गए हैंतो थोड़ा आत्म-निरीक्षण करते हुए विचार करें -

      आपके लिए अध्यात्म क्या अर्थ रखता है?

      आप अध्यात्म को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?

      अध्यात्म की आवश्यकता आप कब अनुभव करते हैं?

      नित्य अपने आत्मिक विकास के लिए कितना समय देते हैं?

      आध्यात्मिक विकास के लिए आपका न्यूनतम कार्यक्रम क्या है?

      जीवन में अध्यात्म  हो तोक्या होगा?


सोमवार, 25 मार्च 2024

सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन के व्यवहारिक सुत्र, भाग-3

 

नोट्स बनाने व अधिक अंक प्राप्त करने के सुत्र

पढ़ाई में नोट्स बनाने के सुत्र -  नोट्स की शुरुआत को क्लास से ही शुरु हो जाती है, जो शिक्षक द्वारा पढ़ाया गया, उसके मुख्य बिंदुओं (की-प्वाइंट्स) को शीर्षक, उप-शीर्षक के रुप में तथा साथ में दिए गए उदाहरणों, आंकड़ों व तथ्यों के रुप में नोट करते गए। यदि विद्यार्थी पहले से विषय पर पढ़ कर आए हों, कुछ होमवर्क करके आए हों, तो क्लास को समझना और आसान हो जाता है और नोट्स भी क्वालिटी के उतार सकते हो।

शाम को फिर लाइब्रेरी में या कमरे की किताबों या फिर इंटरनेट पर क्लास में पढ़ाए नोट्स को पुष्ट किया जा सकता है, पढ़ाई गई परिभाषाओं, तथ्यों, आंकड़ों, उदाहरणों को नए संदर्भों के साथ सजाया जा सकता है। अगले दिन प्रातः इनको रिवीजन करना और जो कुछ समझ नहीं आया है, शिक्षक से पूछकर अपने संशय को स्पष्ट किया जा सकता है।

साथ ही नित्य अखबार, पत्रिकाओं को पढ़ने के साथ या फिर इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोतों से विषय के समसामयिक विकास से अपडेट रहते हुए नोट्स को अपडेट किया जा सकता है। यदि यह क्रम जारी रहता है, तो कुछ माह बाद परीक्षा में नवीनतम तथ्यों व आंकड़ों के साथ आपका उत्तर दूसरों से दो कदम आगे होगा व परीक्षक को निश्चित ही अधिक अंक देने के लिए प्रेरित करेगा।

नोट्स को आसानी से याद करने के लिए कुछ कार्ड में शीर्षकों, उप-शीर्षकों, तिथियों, सुत्रों, नाम, चार्ट व इंफोग्राफिक्स आदि को सजाया जा सकता है औऱ इन्हें पॉकेट में रखकर, जब चाहें रास्ते में चलते-फिरते, सफर के दौरान या कहीं भी खाली समय में खोल कर रिवाइज किया जा सकता है। मेमोरी बैंक के रुप में ये कार्ड आपके सच्चे हितैषी सावित होते हैं, जो परीक्षा की तैयारी को बहुत आसान बना देते हैं।

नित्य समय-सारिणी बनाकर पढ़ने की आदत डाली जाए, तो सभी विषय कवर हो जाते हैं, यदि कुछ रोज छूट भी जाते हों, तो उन्हें सप्ताह अंत में या छुट्टियों में कवर किया जा सकता है। एक सिंसीयर स्टुडेंट के लिए छुट्टियाँ मौज-मस्ती या मटरगस्ती का समय नहीं होतीं, बल्कि अपने छूटे कार्यों व असाइन्मेंट्स को पूरा करने का स्वर्णिम अवसर होती हैं, जिसे वे किसी भी हालात में जाया नहीं होने देते। और सही मायने में छुट्टियों का आनन्द लेते हैं।

इसका फल परीक्षा की तिथि घोषित होने पर होता है, जब लापरवाह विद्यार्थियों के हाथ-पैर फूल रहे होते हैं व तनाव के शिकार देखे जाते हैं, जबकि समझदार औऱ जिम्मेदार विद्यार्थी इन परीक्षा के लिए पहले से ही तैयार होते हैं और हंसत्-खेलता परीक्षा का साहस के साथ सामना करते हैं तथा शांत, स्थिर औ आत्म-विश्वासपूर्ण मनःस्थिति के साथ परीक्षा में बैठते हैं।

अच्छे अंक के लिए कॉपी लेखन के सुत्र -   

कहने की आवश्यकता नहीं कि परीक्षा हाल में परीक्षा से पहले अपने ईष्ट-भगवान का सुमरन, भाव निवेदन व प्रार्थना पहला स्वाभाविक कृत्य रहता है। प्रश्न पत्र आने पर सबसे पहले प्रश्नों को समझें, ऊपर दिए नोट्स में देखें कि कुल कितने प्रश्न उत्तरित करने हैं। कई बार प्रश्न पैटर्न बदलने पर छात्र-छात्राएं पुराने ही ढर्रे पर बिना नोट्स देखे उत्तर देना शुरु करते हैं और पूछे गई संख्या से कम या अधिक उत्तर दे बैठते हैं। इस कारण वे इस लापरवाही का फल भुगतने के लिए विवश होते हैं। ऐसे में परीक्षक चाहते हुए भी कुछ सहयोग नहीं कर सकते।

प्रश्न अति लघुउत्तरीय हैं या लघु उत्तरीय या दीर्घ उत्तरीय, उसी हिसाब से उत्तर दें। शब्दों की सीमा का भी ध्यान रखें। उसी हिसाब से उत्तर छोटा या बड़ा रखें। कुछ विद्यार्थी छोटे प्रश्नों को ही बड़ा प्रश्न मानकर उत्तर देना शुरु करते हैं, और बढ़े प्रश्न आने तक समय अभाव का शिकार होते हैं और आते हुए भी अधिक लिखने की स्थिति में नहीं होते। समय का यह प्रबन्धन परीक्षा में एक महत्वपूर्ण कारक रहता है, जिसे नजरंदाज करना भारी पड़ता है।

प्रश्नों के उत्तर की सिकुएंस को क्रमवार पूरा कर सकते हैं औऱ यदि रणनीति पहले सरल प्रश्नों को पूरा करने की हो, तो फिर उनके खण्ड व प्रश्न संख्या को स्पष्ट रुप से लिखें, अन्यथा परीक्षक को प्रश्नों का क्रम खोजने में समय बर्वाद होता है, क्योंकि उसके पास सीमित समय होता है और उस पर कई कॉपिंयों की जाँच का दबाव रहता है। अतः इग्जामिनर फ्रेंडली कॉपी कुछ अधिक अंक की हकदार बनती है।

इसी क्रम में जहाँ प्रश्न का उत्तर खत्म होता हो, वहीं अंत होने की लाईन या क्रास मार्क खेंचे व अगले प्रश्न को उचित खण्ड व प्रश्न संख्या के साथ शुरु करें। नया प्रश्न अगले पृष्ठ में भी शुरु किया जा सकता है। साथ ही उत्तर में हेडिंग व सव-हेडिंग्ज को स्केच पेन या अलग रंग से दर्शाएं, जिससे परीक्षक को उत्तर समझने में आसानी हो। बिना हेडिंग्ज के प्लेन पैरा में दिए गिए उत्तर से बदतर कॉपी दूसरी नहीं हो सकती और यदि हेंड राइटिंग भी अपठनीय हो तो फिर परीक्षक से अधिक अंक की आशा नहीं की जा सकती। अतः सुलेख बनाकर लिखने की आदत डालें।

प्रश्न में प्रारम्भ में भूमिका, अंत में निष्कर्ष तथा बीच में प्रश्न के अनुरुप भिन्न-भिन्न हेंडिग डालते हुए दीर्घ उत्तर को विस्तार से लिखा जा सकता है। प्रश्न में यदि परिभाषा, विभिन्न प्रकार, लाभ-हानि व सामयिक प्रासांगिकता आदि पूछे गए हों, तो उत्तर की बॉडी में इन हेडिंग्ज के साथ उत्तर स्पष्ट होने चाहिए। अतः प्रश्न को अच्छी तरह से पढ़ना आवश्यक है। मात्र याद किया हुआ उत्तर देने से अधिक अंक की आशा नहीं की जा सकती। प्रश्न के अनुरुप उपयुक्त उत्तर की क्रिएटिविटी ही अधिक अंक की हकदार होती है। यह तभी संभव होता जब विषय का कांसेप्ट क्लीयर होता है तथा उपरोक्त तरीके में बताए गए ढंग से नोट्स तैयार किए जाते हैं तथा विषय की समझ शिक्षक व सहपाठियों के साथ चर्चा करके विकसित की गई हो। मात्र रटकर दिए गए उत्तरों के भरोसे अधिक दूर तक एक सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन की आशा नहीं की जा सकती।

उत्तर में यथास्थान चार्ट, चित्र, इंफोग्राफिक्स आदि का उपयोग किया जा सकता है। महत्वपूर्ण तथ्यों, परिभाषाओं, संदर्भों, आंकड़ों आदि को अलग रंग से स्केच पेन से हाइलाइट किया जा सकता है, जिससे वे सहज ही परीक्षक की नजर से गुजर सकें। क्योंकि परीक्षक के पास कई कॉपियों को समय सीमा में चैक करने का दबाव रहता है, उससे उत्तर की हर लाइन पढ़ने की आशा नहीं की जा सकती, ऐसी आशा बेमानी ही होगी। अतः परीक्षक फ्रेंडली उत्तर देने का प्रयास करें।

कोई भी प्रश्न खाली न छोड़ें। यदि आपकी अधिकाँश कॉपी बेहतरीन ढंग से कवर हुई है, तो परीक्षक पर विद्यार्थी अपनी छाप छोड़ने में सफल होता है, ऐसे में वह भी उसे अधिकतम अंक देना चाहेगा, लेकिन यदि विद्यार्थी प्रश्न ही छोड़ देता है, तो परीक्षक कोई मदद नहीं कर सकता। अतः समय का प्रबन्धन ऐसा करें कि कोई भी प्रश्न न छूटे। यदि प्रश्न का सटीक उत्तर न भी आता हो तो भी अपनी कॉमन सेंस के आधार पर कुछ उत्तर देने का प्रय़ास करें और छात्रों के हितचिंतक सद्भावना अर्जित परीक्षक को कुछ ग्रेस मार्कस देने की गुंजाइश छोड़ें।

कॉपी पूरा होने पर एक बार रिवाइज अवश्य करें। कहीं कुछ चीजें छूट गई हों, तो इनको जोड़ा जा सकता है। छूटी गई हेडिंग, सव-हेडिंग्ज, मुख्य तथ्यों व आंकड़ों को हाइलाइट किया जा सकता है। औऱ यदि एस्ट्रा कॉपीज ली गईं हों तो ध्यान रखें कि सब धागे या स्टेप्लर से सहीं ढंग से नत्थी हो गई हैं अन्यथा छूटने पर भारी खामियाजा भुगतने की नौवत आ सकती है, जो जल्दवाजी व लापरवाही के चलते यदा-कदा होती रहती है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि जिस भाषा में उत्तर दे रहे हैं, उसकी व्याकरण ठीक हो, शब्द सरल हों, वाक्य छोटे हों और छोटे-छोटे पैरा में उत्तर हों। यदि इन सर्वसामान्य अनुभूत सुत्रों का पालने करते हैं, तो परीक्षा में बेहतरीन अंकों की आशा कर सकते हैं। आने वाली परीक्षा के लिए इस हिसाब से तैयारी करें व इन सुत्रों के चमत्कारिक प्रभावों को स्वयं अनुभव करें।

यदि कोई प्रश्न हो तो आप कमेंट-बॉक्स में पूछ सकते हैं। कोई सुझाव हो तो उसे भी नीचे दे सकते हैं।  

 

 

 

रविवार, 24 मार्च 2024

एक सफल सार्थक विद्यार्थी जीवन के व्यवहारिक सुत्र-2

 

एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने के व्यवहारिक सुत्र

एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति विद्यार्थी जीवन के आधारभूत घटक हैं। नए ज्ञान के अर्जन व इसे याद रखने के फलस्वरुप ही एक विद्यार्थी जीवन सफल होता है और सार्थकता की ओर बढ़ता है। और दोनों का आपस में अभिन्न सम्बन्ध है। यदि मन की एकाग्रता अच्छी है, तो विषय गहरे अंकित हो जाता है और उसको याद करना सरल हो जाता है।

और इन दोनों का सम्बन्ध रुचि से है। यदि हमारी किसी विषय में रुचि है तो मन सहज रुप से एकाग्र हो जाता है और उससे जुड़े तथ्य व आंकड़े आदि आसानी से याद हो जाते हैं। एक क्रिकेट प्रेमी विद्यार्थी अपने प्रिय खिलाड़ी के सारे रिकॉर्ड उंगली पर याद रखता है औऱ घंटों उसे खेलते हुए देख सकता है, कभी बोअर नहीं होता। लेकिन यदि उसे इतिहास की तिथियों को या गणित के सुत्रों को याद करने को कहें, तो उसे मुश्किल पड़ता है। कारण रुचि की अभाव रहता है।

अतः यहाँ अविभावकों और माता-पिता का भी कर्तव्य बनता है कि बच्चों पर अपनी रुचि, महत्वकाँक्षा को न थोंपें। उन्हें अपनी रुचि के अनुसार विषय को चुनने की आजादी दें। अपनी अधूरी इच्छाओं, कामनाओं, महत्वाकाँक्षाओं का बोझ बच्चों पर लादने पर वे विषय को तो ले लेते हैं, लेकिन आगे उनके लिए बोझ बनना शुरु हो जाता है। रुचि के अभाव में मन एकाग्र नहीं होता, कुछ समझ नहीं आता, कुछ याद नहीं रहता और एक बोझिल जीवन जीने के लिए अभिशप्त होते हैं। जो जीवन में बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है।

नई शिक्षा नीति में इस समस्या के निदान का प्रय़ास किया गया है, जहाँ बच्चे अपनी रुचि के अनुरुप विषयों का चयन कर सकते हैं। और यदि विद्यार्थी जीवन में वाइ चान्स भी किसी विषय में प्रवेश हो गया हो तो चिंता की जरुरत नहीं, चान्स से भी चुआइस को खोजा जा सकता है। हर विषय में इतनी शाखाएं रहती हैं कि विद्यार्थी थोड़ा बड़ों के मार्गदर्शन व थोड़ा होमवर्क करके अपनी रुचि का विषय खोज सकता है।

रुचि के साथ पढ़े गए विषय की जीवन में उपयोगिता को समझें। शिक्षकों का भी कर्तव्य बनता है कि उसका प्रेक्टिकल हिस्सा भी कराएं, ताकि टॉपिक बच्चों के मस्तिष्क में, समझ में गहरे अंकित हो जाए। और यदि किसी कारण विषय में रुचि न हो, तो उसके महत्व, उपयोगिता एवं लाभ को समझते हुए रुचि पैदा की जा सकती है।

एकाग्रता एवं स्मृति का मुख्य आधार रहता है शांत, स्थिर और प्रसन्न चित् की अवस्था। अतः ऐसे आहार, विहार, विचार एवं व्यवहार से बचें जो चित्त को अशाँत, उत्तेजित एवं दुःखी-उदास करते हों। कुल मिलाकर एक अनुशासित जीवन शैली को अपनाने की आवश्यकता रहती है। इस संदर्भ में मोबाइल से सावधान रहें, जिसका उपयोग अनुशासित न होने पर यह विद्यार्थी के अधिकाँश समय, ऊर्जा और एकाग्रता को भंग कर सकता है। अतः मोबाइल के उपयोग में अपने विवेक और इच्छा शक्ति का प्रयोग करें तथा इसकी माया को हावी न होने दें, जिससे नित्य निर्धारित लक्ष्य की स्मृति बनी रहेगी तथा मन भी एकाग्र रहेगा।

कहने की आवश्यकता नहीं कि आहार हल्का रखें, मिताहारी बनें। ठुस-ठुस कर खाने से बचें, ऐसे भोजन से बचें, जो तन-मन को उत्तेजित करता हो। ऐसे ही टॉक्सिक संग-साथ से दूर रहें, जो विचार व भावों को दूषित करते हों, मन के फोक्स को कमजोर करते हों। रात को समय पर बिस्तर पर जाएं, तभी सुबह समय पर उठ सकेंगे। और भरपूर नींद संभव होगी, जो स्मरण शक्ति व एकाग्रता का एक महत्वपूर्ण आधार रहती है। आधी अधूरी नींद में मन उचटा रहता है, एकाग्र नहीं हो पाता, यादाश्त भी बुरी तरह से प्रभावित होती है।

अपने विचारों को भी सकारात्मक बनाए रखें। इसके लिए श्रेष्ठ विचारों में रमण करें। प्रेरक साहित्य का स्वाध्याय करें। इसके साथ स्नान के बाद नित्य कुछ जप-ध्यान व पाठ आदि की न्यूनतन आध्यात्मिक व्यवस्था रखें। प्रातः स्वच्छ वायु में भ्रमण मस्तिष्क को सक्रिय करता है, उपरोक्त दोनों क्षमताओं को सशक्त करता है। इसके साथ रोज कुछ व्यायाम या खेल में भाग लें। आखिर स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन वास करता है।

अपने कार्य स्थल व टेवल को साफ-सुथरा व सुव्यवस्थित रखें। कमरे में पर्याप्त हवा, धूप आदि की व्यवस्था हो। काम करते समय टेवल खाली हो, जो कार्य करना हो, वही सामने रहे। वाकि कार्य क्षेत्र को अपनी रुचि के अनुरुप अनुकूल बनाया जा सकता है।

टाइम टेबल बनाकर पढ़ने से भी पढाई अधिक प्रभावी ढंग से संभव होती है और अधिकाँश विषय कवर हो जाते हैं और एक साथ कई काम करने के मल्टिटास्किंग की समस्या से भी बच जाते हैं, जिसके कारण एकाग्रता और स्मरण शक्ति दोनों प्रभावित होते हैं। निर्धारित समय के बाद कुछ मिनट का ब्रेक ले सकते हैं। बौद्धिक श्रम से थकने पर कुछ शारीरिक श्रम वाले काम निपटा सकते हैं। कमरे में या वाहर प्रकृति में घूम टहल सकते हैं। जल या कुछ हेल्दी ड्रिंक ले सकते हैं।

इसके साथ ब्राह्मी, शंखपुष्पी, बच जैसे मस्तिष्क को पुष्ट करने वाली जड़ी-बुटियों का सेवन किया जा सकता है, जो स्मरण शक्ति व एकाग्रता में सहायक होते हैं। अखरोट व वादाम की गिरियाँ भिगों कर लेने पर टॉनिक का काम करती हैं।

इन सर्वसामान्य सुत्रों का ध्यान रखते हुए, एकाग्र चित्त के साथ पढते हुए, विषय को ह्दयंगम कर सकते हैं, लम्बे समय तक याद रख सकते हैं और परीक्षा में अच्छे अंकों को सुनिश्चित करते हुए एक सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन जी सकते हैं।

रविवार, 3 मार्च 2024

एक सफल-सार्थक विद्यार्थी जीवन के व्यवहारिक सुत्र, भाग-1

विद्यार्थी जीवन के महत्व की समझ

विद्यार्थी जीवन किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वर्ण काल होता है, जिसकी यादें जीवन भर गुदगुदाती रहती हैं, सुखद अहसासों के सागर में डूबने इतराने का कारण रहती हैं। साथ ही यह समय जीवन का निर्णायक दौर भी होता है। यदि सही संगत व मार्गदर्शन मिला तो जीवन संवर जाता है, भविष्य उज्जवल की दिशाधारा तय हो जाती है और यह मानव जीवन धन्य हो जाता है। अन्यथा यदि संग-साथ गलत रहा, सही मार्गदर्शन का अभाव रहा और विद्यार्थी जीवन के प्रति लापरवाही बरती गई तो यही जीवन नरक तुल्य बन जाता है, जिसके दंश से जीवन भर व्यक्ति उबर नहीं पाता। पग-पग पर इसके खामियाजे को भोगने के लिए व्यक्ति विवश-वाध्य महसूस करता है।

लेकिन बीत गया समय फिर बापिस नहीं आता। एक पश्चाताप के अतिरिक्त हाथ में कुछ नहीं बचता। विद्यार्थी जीवन की लापरवाहियों का दंश व्यक्ति स्वयं ही नहीं झेलता, पूरा परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व तथा मानवता इसको भुगतने के लिए अभिशप्त होती है। दुःखी, हैरान-परेशान, अशांत-क्लांत, बेरोजगार, आशंकित-आतंकित, आत्म-विश्वास से हीन पीढ़ी इसका दुष्परिणाम। जो अपने पतन की पराकाष्ठा में भ्रष्टाचार एवं अपराधों में लिप्त व्यक्तियों-नागरिकों की आत्मघाती पीढ़ी का कारण बन जाती है।

विद्या के अर्जन के लिए समर्पित व्यक्ति, दो प्रयोजन को पूरा करता है – 1. उन क्षमताओं-योगयताओं का अर्जन करता है, उस ज्ञान को प्राप्त करता है, जिससे अपने पैरों पर खड़ा हो सके। अर्थात किसी नौकरी के माध्यम से अपनी रोजगार को सुनिश्चित करता है। यदि नौकरी नहीं मिलती तो अपने कौशल व समझदारी के आधार पर स्वालबम्बी जीवन जीता है। 2. उन जीवन-कौशल की क्षमताओं का विकास करता है, जिनसे जीवन सफलता के साथ सार्थकता की अनुभूति लिए हो। युगऋषि के शब्दों में शिक्षा के साथ विद्या का अर्जन करता है। जीवन जीने की कला को सीखता है।

इसके लिए विद्यार्थी कैरियर गोल के साथ जीवन लक्ष्य की भी समझ को विकसित करता है। जिसमें अपने व परिवार के कल्याण के साथ समाज राष्ट्र एवं विश्व के कल्याण का भी भाव निहित हो। इसके लिए विद्यार्थी निम्न चरणों का चिंतन-मनन करते हुए अपने जीवन में अपना सकता है –

1.      अपनी रुचि, क्षमता एवं योग्यता के अनुरुप कोर्स का चयन, कैरियर गोल का निर्धारण।

2.      कक्षा में नियमितता, जो पढ़ाया गया, उसका घर आकर अध्ययन व नोट्स तैयार करना।

3.      अगले दिन प्रातः रिवीजन, जो समझ न आए, उसको क्लास में शिक्षक से पूछना व स्पष्ट करना।

4.   नित्य पुस्तकालय में कुछ समय बिताना, नोट्स को समृद्ध करना। यदि रोज कुछ छूट जाए तो, सप्ताह अंत व छुट्टियों में उसे पूरा करना।

5.      अपनी पढ़ाई के प्रति ईमानदार, एकनिष्ठ, लक्ष्य केंद्रित, फोक्सड जीवन। अर्जुन की तरह लक्ष्य केंद्रित।

6.      राग-रंग, फैशनवाजी, दुर्व्यसनों से दूर रहना। बिगड़ैल विद्यार्थियों के कुसंग से सावधान, सुरक्षित दूरी।  बुरी संगत से अकेला भला।

7.     अपने विषय से अपडेटिड, नित्य अखबार, मैगजीन व इंटरनेट के माध्यम से विषय की नवीनतम जानकारियों से रुबरु रहना। उसे भी नोट्स में जोड़ते जाना।

8.      अपनी पढ़ाई के साथ, कुछ समय सतसंग, स्वाध्याय व प्रेरक पुस्तकों के लिए भी।

9.      नित्य न्यूनतम जप-ध्यान (उपासना, प्रार्थना, पूजा) आदि का क्रम, प्रातः स्नान के बाद, उसी के साथ स्वाध्याय।

10.   रात को सोने से पहले दिन भर की समीक्षा, एक डायरी में लेखा जोखा।

11.   समय सारिणी बनाकर अध्ययन, जिससे पढ़ाई के हगर विषय कवर हों, साथ ही व्यक्तित्व का समग्र विकास सुनिश्चित हो।

12.   पढ़ाई, खेल-कूद-व्यायाम-शारीरिक श्रम, स्वाध्याय-पूजा-ध्यान, स्वस्थ मनोरंजन।

नित्य आत्म-निरीक्षण, आत्म-समीक्षा, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण।

13.   एक अनुशासित, संयमित जीवन शैली (आहार-विहार-विचार-व्यवहार) का पालन।

14.   संवेदनशील व्यवहार, जरुरतमंदो की सहायता, वाणी का संयम। विनम्र-शालीन व्यवहार।

15.   श्रमशीलता (अथक श्रम), स्वच्छता-सुव्यवस्था, मितव्ययिता (सादा जीवन उच्च विचार), शालीनता, सहकारिता जैसे सद्गुणों का अभ्यास।

16.   ईमानदारी-समझदारी-जिम्मेदारी-बहादुरी जैसे सद्गुणों का अभ्यास

17.   मोबाइल की माया से सावधान। इसके लिए समय निर्धारित। अपनी पढ़ाई में इसका अधिकतम उपयोग। मोटिवेशनल कंटेट।

18.   इसके साथ आएगा जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, आशावादी रुख एव आत्म-विश्वास। साथ ही एक सफल विद्यार्ती जीवन सुनिश्चित होगा, जो सार्थकता की अनुभूति से सरोवार होगा।


सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

जब आया बुलावा माता वैष्णों देवी का, भाग-3,

 

यादगार सवक से भरा सफर बापिसी का

प्रातः जागरण के बाद फ्रेश होते हैं, नीचे स्नान घर के पास ही शिव गुफा बनी है। उसमें दर्शन करते हैं। इसका इतिहास पढ़ते हैं। कल्पना उठती है कि काश ऐसे स्थान पर साधना का मौका मिलता। गुफा की लोकेशन चट्टान के नीचे, नाले के संग एकांत स्थान पर है, जहाँ आस-पास पानी लगातार झर रहा था। एकांतिक ध्यान साधना के लिए आदर्श स्थल प्रतीत हो रहा था।

मौसम में ठंडक के चलते सुबह की चाय ना ना करते 3 बार हो जाती है, वह भी खाली पेट। इसका खामियाजा आगे भुगतने वाला था, जिसका अंदेशा ठंड में नहीं हो पाया था। जिस हॉल में रुके थे, वहाँ से नीचे घाटी का नजारा दर्शनीय था। कुछ यादगार क्लिप्स के साथ यहाँ से चल पड़ते हैं।

कतार में पूरा दल तीन किमी हल्की व खड़ी चढ़ाई के साथ बाबा भैरों के द्वार में लगभग एक घंटे में पहुंचता है। हालाँकि वहाँ पहुंचने की उड़न खटोले से भी व्यवस्था थी, लेकिन इसकी 1-2 किमी लम्बी लाइन देखकर लगा की पैदल ही इसके पहले पहुँच जाएंगे। रास्ते में जहाँ भक्तों की किलोमीटर लम्बी कतारें दर्शन के लिए लगी थी, वहीं दूसरी कतार उड़न खटोले के लिए। हमारा पूरा दल कतार बद्ध होकर धीरे-धीरे हल्की चढ़ाई को पार करता है। बीच में उड़न खटोले बिल्कुल पास से सर के ऊपर से गुजर रहे थे।

इस मार्ग में भी कुछ शॉर्ट कट सीढ़ियों के बने हैं, इनको पार करते हुए आगे बढ़ते हैं। रास्ते में एक-दो स्थान पर कुछ विश्राम करते हैं। कुछ दल के सदस्यों को भूख सताना शुर कर चुकी थी, वे कुछ चुगने के लिए निकालते हैं। पास में बैठे बंदर बीच में कूद पड़ते हैं। पहली वार बंदरों का दर्शन कर रहे सदस्य भय से चीख-पुकार कर ईधर उधर भागते हैं। जबकि ऐसे में बिना डरे, शांत-स्थित व मजबूती से रहो, तो बंदर बॉडी लैंग्वेज समझ कर चुपचाप गुजर जाते हैं। उनकी नजर खाने के समान पर होती है, किसी को काटने या परेशान करने पर नहीं। भयवश ही वे हमला कर सकते हैं। वाकि बंदर घुड़की तो मश्हूर है ही। इनका मनोविज्ञान समझने वाले इनसे शांति से निपट लेते हैं। लेकिन हमारे ग्रुप में नौसिखिए यात्रियों के लिए यह शायद पहला सबक था।  

भैरों मंदिर पहुँच कर हम लाइन में लगते हैं, दर्शन करते हैं और नीचे छत को ऊपर के समतल मैदान पर धूप का आनन्द लेते हैं। भौरों मंदिर का अपना इतिहास है। माना जाता है कि जब माता वैष्णु देवी ने भैरों का बध किया था तो उनका सर धड़ से अलग होकर यहाँ पहाड़ी पर गिरा था। माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि जो भी मेरे दर्शन करने आएगा, वह तेरे भी दर्शन करेगा और तभी उसकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगा। इसलिए वैष्णों माता आया हर भक्त यहाँ दर्शन जरुर करता है।

यहाँ से नीचे व चारों ओर का विहंगम दृश्य देखते ही बन रहा था। यहाँ पर फोटो व सेल्फी प्रेमियों का तांता लगा हुआ था। साथ ही यहाँ की खिली हुई धूप भी ठंड से बहुत राहत दे रही थी। कुछ समय यहाँ से नीचे के नजारों का विहंगावलोकन करते हैं, यहाँ से नीचे हेलीपैड का नजारा स्पष्ट था और इसमें उतरते और यहाँ से उड़ान भरे हेलीकॉप्टरों का नजारां एक नया अनुभव दे रहा था।

यहाँ से फिर बापिसी के रास्ते में आगे बढते हैं, जो आगे अधकुमारी की ओर से जाता है। रास्ते में साँझी छत पहला मुख्य पड़ाव था, जहाँ चाय-नाश्ता आदि की व्यवस्था रहती है। इस रास्ते में जंगली मुर्गों के झुंड के दर्शन हुए, जो सड़क के एकदम साथ लगभग 100 मीटर तक सटे जंगल में शौर करते हुए गुजर रहे थे। थोड़ी दूर पर एक बांज के पेड़ पर ध्यानस्थ लंगूर को देख बहुत अच्छा लगा, कि कितनी शान के साथ सारे जहाँ का सुख-सुकून बटोरे, ये लंगूर महाराज अपने साम्राज्य में ध्यानस्थ होकर बैठे हैं।

थोड़ी देर में नीचे उतरते हुए हम सांझी छत पहुंचते हैं। यहाँ समूह फोटो होता है। पीछे से उड़ान भरते हेलीकॉप्टर ठीक हमारे सर से होकर जुगरते प्रतीत हो रहे थे। इसके बाद सरांय बोर्ड की ओऱ से लगाए गए भंडारे में हलुआ, चना और चाय का नाशता करते हैं। यहीं से टीम आगे-पीछे होना शुरु हो गई थी, जो अपने-अपने समूह बनाकर अधकुमारी की ओर दल बढ़ रहे थे।

इसी के साथ हमारी तवीयत बिगड़ना शुरु हो चुकी थी। सुबह खाली पेट तीन बार चाय और दस बजे नाश्ता, यह रुटीन भारी पड़ रहा था। लगा भैरों बाबा के यहाँ सुवह का नाश्ता किए होते तो पेट में बन रहा एसिड शांत होता और यह नौवत नहीं आती। इस रुट पर यात्रा करने वालों को यही सलाह है कि सुबह का नाश्ता स्किप न करें। चाय के साथ कुछ खाने का सामान अवश्य रखें।

कई शोर्टकट सीढ़ियों को पार करते हुए हम अधकुमारी की ओर बढ़ रहे थे। सीधे नीचे उतराई में पैरों पर ठीक-ठाक दवाव पड़ रहा था। कहीं-कहीं सीढ़ियों का सहारा लेकर उतर रहे थे और जहाँ पैर जबाव दे जाते, वहाँ कुछ देर विश्राम करते। बिगड़ती तवीयत के साथ कुछ थकान के साथ हालात वदतर हो रहे थे। अधकुमारी पहुँच चुके थे। यहाँ अन्दर देखने का अधिक समय नहीं था। इसे अगली यात्रा के लिए छोड़कर आते बढ़ते हैं। मान्यता है कि यहीं पर माता वैष्णु देवी ने एक गुफा में रहकर साधना की थी।

आगे की यात्रा हम सीढ़ियों के सहारे पुरा करते हैं। पैर जबाव दे रहे थे। बुजुर्गों व बच्चों के इस राह पर चढ़ते-उतरते देखकर जोश आ रहा था। लेकिन अपनी स्थिति देखते हुए अंतिम दो किमी खच्चर का सहारा लेना पड़ा। यह भी कम झकझोरने वाला अनुभव नहीं था। खच्चर पर बिठाकर मालिक टिकट कटाने जाता है। टीन बाली छत पर बंदरों की उछलकूद से घबराया खच्चर विदक जाता है। लगा हम अब गिरे कि तब। किसी तरह से आकर मालिक संभालता है। चोटिल दुर्घटना होने से टली और लगा हमारा कोई प्रबल प्रारब्ध कट रहा था।

हम खच्चर के सहारे बाणगंगा के किनारे टीन शैड में अड्डे पर उतरते हैं। यहाँ बाकि सहयात्रियों का इंतजार करते हैं। लगा कि वे पीछे से आ रहे होंगे, जबकि वे शॉर्टकट से नीचे उतरकर हमसे आगे पहुंच चुके थे। इस बीच हम अपना विश्लेषण करते रहे। हेमकुण्ड की गलती आज पुनः कर बैठे थे, ऑवर काँफिडेंस में सुबह खान-पान की लापरवाही हुई थी, जो भारी पड़ गई थी।

हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं। आगे से सौरभजी हमें खोजते हुए आ रहे थे। मिलकर बहुत राहत मिलती है। फिर हमलोग ऑटो-टेक्सी से कटरा रेल्वे स्टेशन पर पहुँचते हैं। पहले होटल पहुँची टीम सामान लेकर पहुँच रही थी। यहाँ फ्रेश होकर हेमकुंट एक्सप्रेस ट्रेन में बापिसी का सफर करते हैं। शाम को साढ़े चार बजे चलती है, हरिद्वार सुबह 7 बजे पहुँचा देती है।

माता वैष्णु देवी के इस तीर्थाटन के साथ लगा जैसे दिल के तार इस स्थल से जुड़ चुके हैं, अगली बार और होशोहवास व तैयारी के साथ यहाँ का तीर्थाटन करेंगे। कुछ दिन रुककर यहाँ विचरण करेंगे और पूरा आध्यात्मिक लाभ लेते हुए इस पावन तीर्थ का वास करेंगे।

भाग -1 के लिए पढ़ें, जब आया बुलावा माता वैष्णों देवी का।

यात्रा वृतांत - हमारी पहली वैष्णों देवी यात्रा, भाग-2


बाणगंगा से माता वैष्णों देवी का सफर

मुख्य द्वार से प्रवेश के बाद दो-तीन किमी के बाद बाणगंगा पहला मुख्य पड़ाव है। यहाँ तक बाणगंगा के किनारे पैदल मार्ग पर बने टीनशैड़ के नीचे से सफर आगे बढ़ता है। यहीं पर खच्चर व अन्य यात्रा सेवाएं (बच्चों के लिए पिट्ठू, बुजुर्गों के लिए पालकी आदि) उपलब्ध रहती हैं, जो पैदल चलने में असक्षम लोगों के लिए उचित दाम पर उपलब्ध रहती हैं। रास्ते में ढोल ढमाके के साथ यात्रियों का स्वागत होता है, जो हर एक-आध किमी पर रास्ते में देखने को मिलता है। नाचने के शौकीन यात्रियों को इनके संग थिरकते देखा जा सकता है। जो भी हो यह प्रयोग यात्रा में एक नया रस घोलता है व थकान को कुछ कम तो करता ही है। कुछ दान-दक्षिणा भी श्रद्धालुओं से इन वादकों को मिल जाती है।

बाणगंगा के वारे में मान्यता है कि माता वैष्णों ने यहीं पर बाल धोए थे व स्नान किया था। अमूनन हर नैष्ठिक तीर्थयात्री इस पावन नदी में स्नान करके, तरोताजा होकर आगे बढ़ता है। लेकिन सबके लिए यह संभव नहीं होता।

हम पहली बार इस मार्ग पर थे। हमारे मार्गदर्शक रजत-सौरभजी यहाँ पहले आ चुके हैं। हम उनके निर्देशन में आगे बढ़ रहे थे। वे पहले पड़ाव में बाणगंगा के ऊपर सामान्य मार्ग से न होकर सीधे सीढ़ी मार्ग से चढ़ाते हैं। एक ही बार में लगभग 450 से अधिक सीढ़ियाँ। चढ़ते-चढ़ते थोड़ी देर में सांस फूलने लगती है, ऊपर से दिन की धूप सीधे सर पर बरस सही थी, सीमेंटेड सीढ़ियों के रास्ते में छाया की सुविधा न के बरावर थी। आधी चढ़ाई तक चढ़ते-2 फेफड़ों पर जोर बढ़ गया था, लग रहा था कहीं फट न जाएं। इस विकट अनुभव के बीच कुछ पल विश्राम के राहत अवश्य दे रहे थे, वदन पसीने ते तर-वतर हो रहा था, दिल की धड़कने अपने चरम पर थीं। किसी तरह इन सीढ़ियों को पार कर मुख्य मार्ग पर आते हैं।

इस प्रारम्भिक कवायद का लाभ यह रहा कि अब आगे की चढ़ाई हमारे लिए अधिक कठिन प्रतीत नहीं हो रही थी। हालाँकि आगे सीढ़ियों बाले शॉर्टकट के प्रयोग से बचते रहे, और हल्की ढलाने वाले खच्चर मार्ग से ही टीन शेड के नीचे चलते रहे। हालांकि दूसरे दिन बापिसी में इन सीढियों के शॉर्टकट्स का हम सबने भरपूर उपयोग किया

इस राह पर पहला पड़ाव था चरणपादुका। माना जाता है कि यहाँ माता वैष्णु के चरणों के चिन्ह हैं, जहाँ उन्होंने एक पैर पर खड़े होकर तप किया था।

मार्ग में बाँस के झुरमुटों के दर्शन प्रारम्भ हो चुके थे। नीचे घाटी का नजारा भी रोमाँचित कर रहा था। हम क्रमशः ऊंचाइयों की ओर बढ़े रहे थे। छोटी पहाडियां व गाँव नीचे छुटते जा रहे थे।

रास्ते में जहां थक जाते, कुछ पल विश्राम करते, और कुछ भूख-प्यास का अधिक अहसास होता तो पानी पी लेते और कुछ चुग लेते। अधिक प्यास थकान लगने पर पसीने से हो रहे साल्ट की कमी को पूरा करने के लिए नींबूज का सहारा लेते। हम पहली बार नींबूज का स्वाद चख रहे थे व इसके मूरीद हो चुके थे। मूड़ बदलने के लिए चाय का उपयोग एक आध जगह करते हैं। रास्ते में यह डायलॉग सहज ही फूट रहा था कि नींबूज का कोई जबाब नहीं, पानी का कोई विकल्प नहीं और सही समय पर मिली चाय की तृप्ति का भी कोई जबाब नहीं।

अब हम लगभग आधा रास्ता पार कर चुके थे। यहाँ से रास्ता दो हिस्सों में बंटता है। एक अधकुमारी की ओर से होकर जाता है, तो दूसरा हिमकोटी मार्ग की ओर से। हम हिमकोटी का ही चयन करते हैं, क्योंकि यह कम चढ़ाई वाला मार्ग है। अधकुमारी में आगे खड़ी चढ़ाई पड़ती है, जिसे हम बापिसी के लिए रखते हैं।

हिमकोटी से बाहनों की सुविधा भी थी, लेकिन हम पैदल ही चलते हैं। इस रास्ते में लगा पहाड़ों से पत्थरों के गिरने की खतरा अधिक रहता है, सो बीच-बीच में इनको रोकने के विशेष प्रयास किए गए थे। रास्ते में बंदरों के दर्शन भी बहुतायत में शुरु हो गए थे। खाने की बस्तु को देखकर यात्रियों के बीच छीना-झपटी के नजारे भी देखने को मिलते रहे।

आगे एक बेहतरीन रिफ्रेशिंग प्वाइंट पर रुकते हैं, चाय-नाशता करते हैं और बैट्री रिचार्ज कर आगे बढ़ते हैं। यहाँ से हेलिकॉप्टरों का नजारा भी देखने लायक था। नीचे घाटी के खुले आसमां से चिडियों के समान दिखते इन हेलिकॉप्टरों की आवाज पास आने पर और तेज हो जाती और हमारे पास से ऊपर पहाड़ों से होकर पार हो रहे थे। पता चला थोड़ी ही दूरी पर हवाई अड्डा है। हर पांच-दस मिनट में इनके आने-जाने का सिलसिला चल रहा था।

आगे मार्ग में बढ़ते-बढ़ते दोपहर ढल चुकी थी, पश्चिम की ओर सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखने लायक था, जिसे हर यात्री केप्चर कर रहा था। हम भी इसका लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे और कुछ बेहतरीन यादगार तस्वीरें मोबाइल में कैप्चर करते हैं।

हम मंजिल के समीप बढ़ रहे थे और साथ ही शाम का धुंधलका भी छा रहा था और धीरे-धीरे रात का अंधेरा साया अपने पांव पसार रहा था। मंजिल के समीप पहुंचने की खुशी के चलते थकान कम हो गई थी, हालांकि ठंड का अहसास तीखा हो रहा था। लो ये क्या, माता वैष्णो देवी के द्वार महज आधा किमी, इसके भव्य परिसर के दूरदर्शन यहीं से हो रहे थे। झिलमिलाती सफेद रोशनीं से पूरा तीर्थ स्थल जगमगा रहा था।

कुछ ही मिनटों में तीर्थ परिकर में जयकारों के साथ प्रवेश होता है, शुरु में ही लाइन में लगकर प्रसाद, क्लावा आदि खरीदते हैं। रिजर्व किए हॉल में पहुंचकर ऑनलाइन प्रसारित हो रही आरती एवं सतसंग में भाग लेते हैं। आज के सतसंग में हमारे सकल समाधान हो रहे थे। चित्त के गहनतम व जटिल प्रश्नों के एक-एक कर उत्तर मिल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि माता का वुलावा कितने सटीक समय पर आया है। लगा जैसे अंतर्यामी, त्रिकालदर्शी भगवती अपनी संतानों का सदा हित चाहती है, उसका सही समय भी वही जानती हैं। उसके भक्तों, बच्चों के लिए क्या उचित है, उसकी यथासमय व्यवस्था करती है।

इसके उपरान्त रात्रि को ही गुफा दर्शन करते हैं। लाइन में लगते हैं। दर्शन अलौकिक अनुभव रहा। माता का द्वार स्वप्नलोक जैसा लग रहा था। पहाडी की गोद में सुरंग से प्रवेश करते हुए गुफा में स्थित तीन पिंडियों के रुप में माता रानी के विग्रह के दर्शन करते हैं। बापिसी में जलधार के अमृत तुल्य जल का पान करते हैं, जिसके साथ प्यास मिटती है और गहरी तृप्ति का अहसास होता है।

नीचे उतर कर पास की कैंटीन में रात का भोजन करते हैं और फिर अपने हॉल में विश्राम करते हैं। इसके आगे लिए पढ़ें - यादगार सवकों से भरा सफर बापिसी का

चुनींदी पोस्ट

पुस्तक सार - हिमालय की वादियों में

हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय से एक परिचय करवाती पुस्तक यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं, घुमने के शौकीन हैं, शांति, सुकून और एडवेंचर की खोज में हैं ...