नग्गर गाँव –
नग्गर कुल्लू घाटी का एक प्रमुख पहाड़ी कस्बा है, जिसकी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक,
आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। कुल्लू-मनाली घाटी के ठीक बीच ब्यास नदी के
बाएं तट पर बसा यह मनोरम स्थल प्रकृति प्रेमी, संस्कृति विशारदों एवं अध्यात्म
प्रेमियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके अपने विशिष्ट कारण हैं। एक तो यह
समुद्रतल से लगभग 6700 फीट ऊँचाई पर बसा होने के कारण हिमालयन टच वाली शीतल आबोहवा
लिए हुए है। जहाँ सर्दियों में एक से दो फीट बर्फ गिरती है, तो वहीं गर्मी में भी
यहाँ का मौसम खुशनुमा रहता है।
नग्गर के विशेष आकर्षण –
देवदार के घने जंगलों की गोद
में बसा नग्गर कभी कुल्लू राजा की राजधानी (राजा विशुद्धपालल द्वारा स्थापित) हुआ
करता था। आज भी राजा का महल नग्गर पैलेस (आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व निर्मित) के
नाम से एक हेरिटज होटल में तवदील है, जहाँ पर्यटक कुल्लवी संस्कृति का विहंगम
दर्शन कर सकते हैं। कैसल में ही जगती पोट (एक चौकोर पत्थर की कई इंच मोटी शिला) है, जो देव-किवदंतियों के अनुसार मधुमक्खी का रुप
लिए देवताओं के संयुक्त पुरुषार्थ द्वारा बशिष्ठ गांव के समीप जोगनी फॉल से उठाकर लाई गई थी। यह एक पवित्र स्थल
है, जहाँ विशिष्ट अवसरों पर घाटी के देवताओं का समागम होता है।
कैसल के उस पार सुंदर
नक्काशी लिए भगवान नृसिंह का मंदिर है। थोड़ी दूरी पर आगे त्रिपुरासुन्दरी का पैगोड़ा
शैली में बना सुंदर मंदिर है, जहाँ का वार्षिक शाड़ी मेला प्रख्यात है। कैसल से ही
2 किमी खड़ी चढ़ाई पर ठाऊआ का प्रसिद्ध भगवान कृष्ण मंदिर है, जो अपने वास्तुशिल्प और पुरातनता के लिए मशहूर है,
जिसके साथ कई रोचक किवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं।
कैसल से ही 2 किमी आगे मोटर
मार्ग पर रोरिक गैलरी और म्यूजियम मौजूद हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
रखते हैं। रुसी लेखक, विचारक, यायावर, पेंटर, गुह्यवादी निकोलाई रोरिक की यह अंतिम
20 वर्षों की कर्मस्थली एवं तपःस्थली रही है। देवदार के घने बनों के बीच लगभग 200
एकड़ में फैला इसका परिसर गहन शाँति लिए हुए है, जहाँ आज भी संत-ऋषि रोरिक की सूक्ष्म
चेतना की अनूभुति की जा सकती है।
इनके चित्रों की दुर्लभ प्रदर्शनी भवन में लगी
हुई है। ऊपर हिमालयन संग्राहलय में इनकी संग्रहित तमाम तरह की मूर्तियां,
पुरातात्विक महत्व की सामग्रियाँ प्रदर्शित हैं। नीचे एकांत में निकोलाई रोरिक की
समाधी दर्शनीय है। इस स्थल से नग्गर-कुल्लु घाटी का विहंगम दृश्य देखते ही बनता
है। कुछ पल प्रकृति की नीरव गोद में विताने के इच्छुक एकांतप्रेमियों के लिए यह एक
आदर्श स्थल है। रुसी पर्यटकों के लिए यह स्थान एक तीर्थस्थल से कम नहीं है।
घाटी का फल-सब्जी उत्पादन –
यह घाटी सेब के बागों के लिए
प्रख्यात है। घाटी में ढलानदार खेतों में धान की खेती प्रचलित पेशा रहा है, जो अब
क्रमशः सब्जी उत्पादन और सेब के बगानों से भरता जा रहा है, जिसका अपना अर्थशास्त्र
है। इस क्षेत्र में प्रख्यात जाटू का भूरा चाबल और राजमाह दाल जैसी पारम्परिक
फसलें इस परिवर्तन के चलते अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं, जो कि चिंता का विषय
है। सामने पहाड़ों को लगभग वर्षभर बर्फ की सफेट मोटी चादर ओढ़े हिमालयन की धौलाधार
श्रृंखलाओं को देखा जा सकता है।
बिजली महादेव की ओर बढ़ता नग्गर-जाणा मार्ग –
नग्गर से बिजली महादेव तक वन
विभाग द्वारा घने जंगलों के बीच सड़क मार्ग बनाया गया है, जो जाणा तक पक्का है और
आगे कच्चा। मार्ग प्राकृतिक सौंदर्य़ से भरा एक अद्वितीय रुट है, जिसका लुत्फ कुछ
साहसिक पर्यटक उठाते हैं। देवदार के घने जंगलों के बीच से गुजरते इस मार्ग की
सुंदरता, इसके बीच यात्रा का रोमाँच शब्दों में वर्णन करना कठिन है। जैसे ही नगर
से जाणा की ओर अपने वाहन में बढ़ते हैं, रास्ते में दोनों और देवदार के गगनचुम्बी वृक्ष
जैसे यात्रियों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। टेढे-मेढ़े बलखाते मार्ग से बढ़ता
सफर बीच-बीच में हिम झरनों, पहाड़ी नालों के बीच यात्रा के रोमाँच को और बढ़ा देता
है। कुछ ही मिनटों में खुली घाटी के दर्शन होते हैं, जिसके ऊपरी छोर पर है नशाला
घाटी।
नशाला घाटी-
अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण
इस घाटी को मिनी स्विटजरलैंड की संज्ञा भी दी जाती है। घाटी में सीढ़ीदार खेतों
में सब्जियों की खेती, सेब के बागान, धान के रोपे एक दिलकश नजारा पेश करते हैं।
साथ ही अगर महीना सावन का हो तो घाटी में ऊपर नीचे तैरते बादलों के फाहे कब यात्री
को अपने आगोश में ले लें, पता ही नहीं चलता। लेकिन इनका शीतल स्पर्श इनके आलिंग्न
का अहसास दे जाता है। नशाला गाँव में ही सड़क के ऊपर माँ चामुण्डा का सुंदर एवं
भव्य मंदिर है। गगनचुम्बी देवदार वृक्षों के बीच मंदिर में बिताए कुछ पल आस्थावान
यात्रियों के लिए यागदार पल साबित होते हैं।
यहाँ से आगे का पड़ाव निर्मल
जल के झरनों-नालों से होता हुआ आगे बढ़ता है। रास्ते का विशेष आकर्षण रहते हैं फल
से लदे हुए सेब के बागान, जो क्रमश बढ़ती ऊँचाई के बीच यात्रियों का स्वागत करते
हैं। यह नजारा विशेष रुप में जुलाई-अगस्त से सितम्बर-अक्टूबर तक दर्शनीय रहता है,
जब यहाँ फलों का सीजन अपने पूरे शबाब पर होता है।
घाटी के बीच में ब्यास नदी एक
सफेद धारा के रुप में अपना परिचय देती है। यहाँ से ब्यास नदी के पार कटराईं
पतलीकुहल शहरों के दर्शन और उत्तर में सुदूर मनाली घाटी के दर्शन एक अलग ही नजारा
पेश करते हैं। गगनचुम्बी पर्वत शिखरों को ढ़के व इनके आर-पार उड़ान भरते अवारा
बादलों की अठखेलियों का नजारा चित्त को रामाँचित करता है। रास्ते में देवदार
वृक्षों की छाँव तले खुले में वृहद स्तर पर शहद उत्पादन को देखा जा सकता है। आधे घंटे
बाद देवदार के जंगलों व फलों के बगानों के बीच सफर जाणा गाँव पहुँचता है, जो यहाँ
का एक जाना-माना हुआ गाँव है। यहाँ पर्यटक गर्मी में भी ठंडक का खासा अहसास पाते
हैं।
जाणा गाँव से 2 किमी आगे आता
है जाणा फाल, जिसे एक स्थानीय गांववासी ने विकसित किया है। इस मानव निर्मित झरने
के साथ इनका ढाबा है, जिसकी खासियत है बहुत ही बाजिब दाम में स्थानीय-पारम्परिक
प्राकृतिक व्यंजनों से भरी लजीज डिश, जिसमें जाटू के चावल, राजमाह की दाल, लिंगड़ी
की सब्जी, देसी घी, सिड्डू, मक्के की रोटी, लोकल आर्गेनिक जड़ी-बूटियों की
चटनी-अचार जैसे पौष्टिक एवं स्वादिष्ट व्यंजन शुमार रहते हैं।
एक ओर जहाँ देवदार
के साथ आसमान को चूमते रई-तोस जैसे हिमालयन वृक्षों की हरियाली दिलो-दिमाग को
सुकून देती है, साथ ही निर्मल जल व इसकी जलराशि की कल-कल ध्वनि, प्रकृति के अनहद
नाद में मन के लय की अनुभूति देती है। यहाँ बिताए कुछ पल राहगीरों के लिए एक
चिरस्मरणीय अनुभव सावित होते हैं, जिसका कोई दाम नहीं लगाया जा सकता। (...जारी)