सृजनात्मक लेखन की प्राथमिक पाठशाला के रुप में
डायरी लेखन क्या? - डायरी लेखन सृजन की एक ऐसी विधा है, जिसकी शुरुआत तो अपने रोजर्मरा के जीवन के हिसाब-किताब के साथ होती है, लेकिन क्रमशः जब यह गहराई पकड़ती जाती है तो यह दैनिक जीवन के उताड़-चड़ाव के साथ मन में उठ रहे विचार-भावों की भी साक्षी बनती है। इसके साथ दिन भर के कुछ खास अनुभव, नए लोगों से हुई यादगार मुलाकातें, जीवन की कशमकश के साथ घट रहे संघर्ष, चुनौतियाँ व साथ में मिल रहे सबक इसके साथ सहज रुप में जुड़ते रहते हैं।
डायरी लेखन की सृजनात्मक विधा -
इस सबके साथ डायरी एक स्व-मूल्याँकन की विधा के रुप में व्यक्ति की सहचर बनती है, जिसके साथ जीवन के लक्ष्य एवं आदर्श और स्पष्ट होते जाते हैं। अपने व्यक्तित्व का पैटर्न इसके प्रकाश में शीसे की तरह साफ हो चलता है। मन की विभिन्न परतों के साथ, जीवन का स्वरुप और दूसरों का व्यवहार – सब मिलकर जीवन के प्रति एक गहरी अंतर्दृष्टि का विकास करते हैं और साथ में वजूद की गहरी समझ के साथ उभरता है एक मौलिक जीवन दर्शन, जो नियमित रुप में कुछ लाईन से लेकर पैरा तक लिखते-लिखते लेखन शैली का अवदान भी दे जाता है। पता ही नहीं चलता कि डायरी लेखन करते-करते व्यक्ति कब मौलिक विचारक और सृजनात्मक लेखन की राह पर चल पड़ा।
डायरी लेखन का क्रिएटिव एडवेंचर -
अतः जो भी जीवन के प्रति थोड़ा सा भी गंभीर हैं, इसे समग्रता में जीना चाहते हैं, इसे गहरे में एक्सप्लाओर करना चाहते हैं, एक सार्थकता भरा जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें डायरी लेखन को जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लेना चाहिए। यदि इसके साथ थोडा सा स्वाध्याय, चिंतन-मनन व ध्यान का पुट भी जुड़ जाए, तो फिर यह सोने पर सुहागे का काम करता है। और यह नियमित रुप में डायरी लेखन करते-करते सहज ही सम्पन्न हो भी जाता है। ऐसे में डायरी लेखन के साथ जीवन का गहनता से अध्ययन, अन्वेषण एवं अभिव्यक्ति का क्रम शुरु हो जाता है और यह विधा क्रिएटिव एडवेंचर के रुप में व्यक्ति को सृजन की एक रोमाँचक यात्रा पर ले जाती है।
आत्म-अन्वेषण की विधा के रुप में -
ऐसे में डायरी लेखन एक तरह की सृजनात्मक साधना का रुप लेती है। जिसकी शुरुआत सुबह उठते ही होती है, जब आप दिन भर के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर लिखते हैं। दिन भर इन पर सजग निगाह रखते हैं और रात को सोने से पहले इनका लेखा-जोखा करते हैं, आत्म-मूल्याँकन करते हैं। अपनी दिनचर्या के हर पक्ष (आहार, विहार, विचार, व्यवहार) और अपने पारिवारिक, पैशेवर व सामाजिक जीवन का सम्यक मूल्याँकन करते हैं। कम्रशः व्यक्तित्व के चेतन पक्ष के साथ इसकी अवचेतन व अचेतन गहराईयों में भी डायरी लेखन का प्रवेश हो जाता है तथा अपने चरम पर आत्मक्षेत्र के पुण्य प्रदेश में भी इसकी पहुँच हो जाती है।
आत्म-उत्कर्ष की पाथेय के रुप में -
इस सबके साथ व्यक्तित्व के रुपाँतरण की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। प्रतिदिन अपनी आदतों व अपने संस्कारों की गहराईयों में जीवन की गुत्थी, व्यक्तित्व की जलिटला व अस्तित्व की पहेली को समझते-समझते इनके समाधान भी सूझते जाते हैं। इस आत्मचिंतन, मनन व स्वाध्याय की प्रक्रिया के साथ डायरी लेखन एक आध्यात्मिक प्रयोग बन जाता है व व्यक्ति जीवन के नित नूतन अनुभवों के साथ जीवन जीने की कला के उत्तरोत्तर सोपानों को पार करता हुआ आत्म-उत्कर्ष की राह पर बढ़ चलता है।
कुछ मूर्धन्य लेखकों-विचारकों-मनीषियों के मत में –
प्रख्यात लेखक वाल्टेयर कहा करते थे, जिसे मौलिक लेखक-विचारक बनना हो, उसको नियमित रुप में डायरी लेखन करना चाहिए। इससे न केवल विचारों का विकास होता है, बल्कि भाषा भी उत्तरोत्तर परिमार्जित तथा सुललित होती जाती है। मूर्धन्य वैज्ञानिक आइंस्टाइन डायरी लेखन को अपना सबसे विश्वस्त मित्र व एकान्त के पलों का सहयोगी मानते थे। भूदान के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे, नियमित डायरी लेखन करते थे व इसके चार चरण बताते थे – आत्मनिरिक्षण, आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार एवं आत्म जागरण।
डायरी लेखन के लाभ अनगिन हैं, जो क्रमिक रुप में जीवन का हिस्सा बनते जाते हैं। मोटे तौर पर सार रुप में डायरी लेखन के लाभ को निम्न बिंदुओं में समेटा जा सकता है -
1. अपने व्यक्तित्व का आयना,
2. स्व-मूल्याँकन की एक प्रभावशाली विधा,
3. जीवन के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि का विकास,
4. मानव प्रकृति की समझ देने वाली शिक्षिका,
5. मानसिक चिकित्सा की विधा के रुप में,
6. सृजनात्मक लेखन की प्राथमिक पाठशाला,
7. लेखन की मौलिक शैली का विकसित होना,
8. एक मेमोरी बैंक व एक प्रेरक शक्ति के रुप में,
9. जीवन जीने की कला की प्रशिक्षिका के रुप में,
10. एक सच्चे मित्र, हितैषी व मार्गदर्शिका की भूमिका में,
11. आत्म परिष्कार एवं विकास की एक विधा के साथ एक आत्मिक सहचर के रुप में,
12. यदि किसी विधा में नियमित डायरी लेखन करते रहा जाए, तो उस श्रेणी में उत्कृष्ट साहित्य का सृजन।
आगे दिए जा रहे कुछ उदाहरणों के साथ इसके महत्व को समझा जा सकता है।
रामकृष्ण परमहंस के सतसंग के दौरान उनके शिष्य मास्टर महाशय की डायरी, रामकृष्ण वचनामृत जैसे कालजयी आध्यात्मिक साहित्य का आधार बनती है। ऐसे ही नेहरुजी की जेल डायरी से, डिस्कवरी ऑफ इंडिया जैसे बेजोड़ ग्रंथ की रचना होती है। गांधीजी के शिष्य महादेव भाई की डायरी में इनके जीवन के मार्मिक क्षणों व तत्कालीन घटनाक्रमों पर महत्वपूर्ण प्रकाश मिलता है। घुमक्कड़ शिरोमणि राहुल सांकृत्यायनजी की यात्रा के दौरान का नियमित डायरी लेखन उनके यात्रा लेखन से जुड़े अनुपम साहित्य का आधार बनता है। आचार्य प.श्रीराम शर्मा की हिमालय यात्रा के दौरान की डायरी, सुनसान के सहचर जैसे कालजयी यात्रा साहित्य का आधार बनती है। हेनरी डेविड थोरो की क्लासिक रचना वाल्डेन एक सरोवर के तट पर बिताए पलों के अनुभवों का लेखा-जोखा ही तो थी। ऐसे ही अनगिन उदाहरणों को खोजा जा सकता है, जहाँ डायरी लेखन उत्कृष्ट साहित्य सृजन की सामग्री बनती है।
डायरी लेखन के इन फायदों को थोड़ा विस्तार से चाहें तो आप दूसरी ब्लॉग पोस्ट - डायरी लेखन के लाभ, में पढ़ सकते हैं।
डायरी लेखन की शुरूआत हो सकती है कुछ ऐसे -
डायरी लेखन की कोई एक निश्चित शैली नहीं हो सकती, इसे कई ढंग व रुपों में लिखा जा सकता है। यहाँ आत्म-सुधार, जीवन निर्माण एवं सृजनात्मक लेखन (creative writing) की पृष्ठभूमि में डायरी लेखन पर प्रकाश डाला जा रहा है।
डायरी में वाएं नीचे की ओर दिन भर के घण्टों का विभाजन किया जा सकता है, प्रातः जागरण से लेकर शयन तक को 2-2 घण्टों के अन्तराल में, यथा सबसे उपर 4 फिर नीचे 6, 8,10,12,2,4,6 और अंत में अपने शयन के अनुरुप 8, 10 बजे आदि। इससे इस बीच घटी महत्वपूर्ण घटना, कार्यों, मुलाकातों आदि को लिखा जा सकता है।
दूसरा, डायरी में पन्ने के बीचो-बीच ऊपर की ओर कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर लिखा जा सकता है, एक तरह की टू डू लिस्ट तैयार की जा सकती है। डायरी के बीच के दो पेज आमने-सामने पड़ते हैं, इनके बीच में भी इस सूचि को बनाया जा सकता है, जिससे कि एक ही सूचि से हम दो दिन के कार्यों को एक साथ ट्रैक कर सकें। इन सूचिबद्ध कार्यों को फिर बीच में दिन भर जब चाहें ट्रैक करते हुए महत्वपूर्ण कार्यों को समय पर निपटाते हुए एक कार्यकुशल दिनचर्या को अंजाम दिया जा सकता है।
औसतन दिनचर्या में व्यक्ति परिस्थिति के दबाव या किसी प्रलोभन के वशीभूत अपनी प्राथमिकता के क्रम को भूल जाता है और कार्य की घड़ी समीप आने पर फिर आपातकाल की अफरा-तफरी में हैरान-परेशान व तनावग्रस्त हो जाता है। विद्यार्थी जीवन में परीक्षा के समय तनाव का मुख्य कारण दैनिक रुप में पढ़ाई के प्रति बरती गई यह लापरवाही ही रहती है। डायरी में कार्यों के विभाजन होने से इसमें झाँकते ही अपने गोल का स्मरण हो जाता है और ध्येयनिष्ठ भाव के साथ वह अपने कार्य पर फोक्स रहता है।
इसके लिए फुल पेज डायरी के साथ एक स्लिप पैड़ (पॉकेट डायरी) को अपने साथ रखकर इस कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है, जिसमें दिन भर के कार्य क्रमवार लिखे गए हों। इसमें दिन भर के महत्वपूर्ण विचार, भाव, अनुभव व सबक सार आदि को भी समय-समय पर नोट करते रहा जा सकता है, जिन पर फिर डायरी लिखते हुए रात को स्व-मूल्याँकन के समय एक नजर डाली जा सके।
दिन के विशेष घटनाक्रम, यादगार लम्हें, खट्टे-मीठे अनुभव, अपनी आदतों पर छोटी-बड़ी जीत व जीवन के सबक - सबको कुछ शब्दों, पंक्तियों से लेकर पैरा में लिखा जा सकता है। इस तरह एक सप्ताह आठ-दस पैरा खेल-खेल में तैयार हो जाएंगे। यदि किसी एक ही विषय पर अलग-अलग अनुभवों के साथ माह में पाँच पैरा भी तैयार हो जाते हैं, तो मानकर चलें कि एक पूरे लेख की सामग्री तैयार हो चली। फिर इसको थोड़ा स्वाध्याय के साथ पुष्ट करते हुए एक उम्दा रचना तैयार की जा सकती है।
माना कि नए व्यक्ति (लेखक) के लिए शुरुआत में अपने विचार व भावों को कागज पर उतारना एक कठिन कार्य होता है, लेकिन रोजमर्रा के सशक्त अनुभवों को अपनी डायरी में लिखना कोई कठिन कार्य नहीं। बस संकल्पित होकर कापी-पेन लेकर बैठने की देर भर है। यदि जीवन का एक ध्येय, इसको समग्रता में जीना बन चुका है, आत्म-उत्कर्ष है और सृजनात्मक लेखन के माध्यम से अपने अनुभवों को व्यक्त करना है, तो फिर देर किस बात की। ऊपर दिए सुत्र-संकेतों के आधार पर डायरी लेखन को अपने मौलिक अंदाज में अंजाम देते हुए आप इसके क्रिएटिव एडवेंचर का हिस्सा बन सकते हैं और अपने जीवन में रोमाँच का एक नया रस घोल सकते हैं।