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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

य़ात्रा वृतांत - सुरकुंडा देवी का वह यादगर सफर, भाग-1

गढ़वाल हिमालय की गोद में सफर का रोमाँच
 

जनरल इलेक्टिव के पाठ्यक्रम में यात्रा वृताँत के तहत विद्यार्थियों के साथ जिस तरह से अचानक शैक्षणिक भ्रमण का प्लान बना, लगा कि जैसे माता का बुलावा आ गया। 28 अक्टूबर की सुबह 25 छात्र-छात्राओं और शिक्षकों का दल देवसंस्कृति विवि से प्रातः 8:20 बजे रवाना हुआ। इस टूर के प्रति सबकी उत्सुकता एवं उत्साह का भाव चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था। टूर की विशेषता थी ऋषिकेश-चम्बा से होकर सुरकुंडा की यात्रा, जिसे हम पहली बार कर रहे थे। अतः एक नए मार्ग पर यात्रा के रोमाँच व जिज्ञासा भरे उत्साह के साथ सफर शुरु होता है। काफिले के सभी सदस्य इस रुट पर पहली बार सफर कर रहे थे और संभवतः अधिकाँश तो पहली बार पहाड़ों की यात्रा कर रहे थे, वह भी हिमालय की गोद में।
लगभग आधा घंटे में हम ऋषिकेश पहुंच चुके थे, इसके पुल को पार करते ही सामने खड़े, आसमान की ऊँचाईयों को छूते गढ़वाल हिमालय के उत्तुंग शिखर जैसे हाथ पसारकर हमारा स्वागत कर रहे थे। इनके सबसे ऊंचे शिखर पर माता कुंजा देवी का शक्तिपीठ स्थित है, जिसके दूरदर्शन ऋषिकेश से सहज रुप में किए जा सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गढ़वाल के तीन शिखरों पर तीन प्रमुख शक्तिपीठ स्थापित हैं, जिन्हें दिव्य शक्ति त्रिकोण भी कह सकते हैं। जो हैं क्रमशः कुंजादेवी, चंद्रबदनी और सुरकुंडा। आज का हमारा सफर कुंजादेवी के चरणों से होकर सुरकुंडा देवी तक का था।

ऋषिकेश पुल को पार करते ही प्राचीन काली मंदिर से होकर वाईं ओर का रास्ता नरेंद्रनगर-चम्बा की ओर मुड़ता है, जबकि दाईं ओर का रास्ता देवप्रयाग के लिए जाता है। यहीं से चढ़ाई भी शुरु हो जाती है। पूरा मार्ग हरे-भरे वृक्षों से घिरा है, जिनको निहारते हुए प्रकृति की गोद में सफर का एक अलग ही आनन्द रहता है। बीच-बीच में टेकोमा के पीले फूलों से लदी झाड़ियों को देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। जैसे-जैसे बस पहाड़ों का आरोहण कर रही थी, नीचे घाटी का दृश्य क्रमशः निखर रहा था। एक प्वाइंट पर आकर ऋषिकेश का विहंगम दृश्य देखते ही बन रहा था। 

सफर के इन खुबसूरत नजारों के साथ सफर का रफ-टफ दौर भी शुरु हो चुका था।  ऑल वेदर रोड़ का कार्य निर्माणाधीन होने के चलते शुरुआती सफर हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ा, जो अगले लगभग दो घंटे तक हमारा साथ छोड़ने वाला नहीं था। बरसात में पहाड़ियों को काटकर बही मिट्टी ड्राइविंग रुट को चुनौतीपूर्ण बना चुकी थी। हालाँकि ड्राइवर पहाडी रास्तों से परिचित था और अपने पूरे ड्राइविंग कौशल के साथ सफर को आरामदायक बनाने की कोशिश कर रहा था। संयोग से हमारी बस के सारथी गंगोत्री क्षेत्र के थे व इनका सहयोगपूर्ण रवैया व शांत स्वभाव हमारे सफर का एक सुखद अहसास रहा।
ठीक एक घंटे बाद 9:20 पर हम नरेंद्रनगर कस्बे से गुजर रहे थे। मालूम हो कि यह गढ़वाल के राजा का निवास स्थान रहा है, जिनका पुश्तैनी महल आज फाइव स्टार होटल आनन्दा रिजॉर्ट के रुप में यहाँ कुछ दूरी पर विराजमान है। देश की फिल्मी एवं उद्योगजगत की हस्तियों व राजनेताओं का यह छुट्टियां बिताने की लोकप्रिय ठिकाना रहता है। इसी वर्ष विराट-अनुष्का, अमिताभ बच्चन परिवार, अंंवानी परिवार आदि यहाँ पधार चुके हैं।
थोड़ी ही देर में हम कुंजापूरी माता के चरणों से गुजर रहे थे। नेशनल हाईवे-94 से महज 3 किमी की दूरी पर, शिखर पर भगवती का सुंदर मंदिर विराजमान है। अभी समय अभाव के कारण हम माथा नवाते हुए सफर पर आगे बढ़े। बापसी में यदि शाम न हुई तो इसका दर्शन करेंगे, यह तय हुआ। 

पिछले आधे घंटे के मार्ग में, रास्ते में जगह-जगह सड़कों के किनारे रिस रही नमी, पानी के नल्के व प्राकृतिक जल स्रोत हमें रोचक लगे। इसका कारण आप समझ सकते हैं, ऊपर बांज के घने जंगल पहाड़ियों पर लगे हैं, जिनकी जड़ों में पानी को रोकने व छोड़ने की विशेषता के कारण यह संभव हो पा रहा है। बांज के साथ दूसरे हरे-भरे पेड़ भी प्रचुरता में इन जंगलों में लगे हैं। हालांकि, मानवीय हस्तक्षेप के चलते क्रमशः इनका सफाया हो रहा है, जो चिंता का विषय है और आगे चलकर यह इस क्षेत्र में जल संकट का कारण बने, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
कुंजापूरी से आगे का सफर हमारे लिए व्यैक्तिगत रुप से भी विशेष था। क्योंकि कुंजापूरी तक तो हम कईयों वार आ चुके हैं, लेकिन यहाँ के आगे के रुट से हम अनभिज्ञ प्रायः थे। इस रास्ते के नक्शे को क्लीयर करने की चिर जिज्ञासा आज पूरा हो रही थी। सो आज दिन के ऊजाले में होशोहबाश में इस रुट को देखने, समझने, निहारने व अनुभव करने की पूरी तत्परता के साथ आगे बढ़ रहे थे। संयोग से बस की केबिन में सीट मिलने के कारण रास्ते का सांगोपांग दर्शन आज हमारे हिस्से में था। कुंजापुरी से लगभग आधा घंटे बाद हम आगराखाल के पहाड़ी स्टेशन पर थे। यहाँ बस चाय-नाश्ता के लिए रुकी। 
यहाँ के अन्नपूर्णा ढाबे में हम चाय के साथ हल्का नाश्ता लिए। अधिकाँश विद्यार्थी फोटोज व सेल्फीज में ही मश्गूल थे। शायद कुछ तो पहली बार पहाड़ों को इतना नजदीक से देख रहे थे। इनका उत्साह देखते ही बन रहा था। यहाँ 10-15 मिनट्स में फ्रेश होने के बाद काफिला ठीक 1020 पर आगे बढ़ता है। आगे का रास्ता पहाड़ियों की गोद में कुछ उतराई भरा था। आल वेदर रोड़ के निर्माण के चलते बीच-बीच में ट्रेपिक जाम का सामना करना पड़ा। लेकिन सामने गगनचुम्बी पहाड़ों के नजारे मन को सुकून दे रहे थे। रास्ते में चट्टानों को काटकर जिस तरह से सड़कें बनी हैं व बन रही हैं, देखकर लगा कि इंसानी जीवट भी क्या चीज है, उसके लिए क्या असंभव है। वह ठान ले तो क्या नहीं कर सकता।

रास्ते में गाँव-कस्वों को यथासंभव नोट करने की कवायद चलती रही, जिनका बाद में यात्रा वृतांत में प्रयोग कर सकें। अब हम फकोट गाँव से गुजर रहे थे। संभवतः हिमाच्छादित हिमालय की पहली झलक हमें इस मार्ग में मिल चुकी थी। इस राह में भी जल स्रोत्रों की प्रचुरता हमें सुखद अहसास देती रही। यहाँ की विशेषता व अंतर यह दिखा कि यहाँ सड़क के किनारे जल-संचयन के टैंक बने मिले, जिनसे पाईप के माध्यम से आगे गांवों में पानी सप्लाई हो रहा है।

आगे हम जाजल क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे, जहाँ रास्ते में हमें पानी का दनदनाता हुआ नाला बहता मिला। थोड़ी ही देर में उस नदी को पार कर रहे थे, जो हमें पहाड़ों में दूर से घाटी के बीचों-बीच बहती दिख रही थी। बाद में पता चला कि यह हेंवल नदी है। इस पर बने पुल को पार करते ही हम एक संकरी सी किंतु सुंदर घाटी में प्रवेश कर चुके थे।

रास्ते में हमें सेलुपानी, आमसेरा, नागनी जैसे पहाड़ी स्टेशन मिले, जहाँ नदी के किनारे धान की खेती दिखी, सरसों के लहलहाते खेत मिले। कुछ-कुछ सब्जियों के उत्पादन के चलन की झलक मिली। इसी रास्ते में जड़धारी गाँव के दर्शन हुए। संभवतः यह इस रुट का सबसे सुंदर प्वाइंट लगा, जहाँ से सुंदर घाटी सामने दूर तक फैली मिली। बीच में इसके ऊर्बर खेत और इनमें लहलहाती खेती, सब सफर को खुशनुमा अहसास दे रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर इस गाँव का नाम पड़ा समझ में आया। यहाँ से चम्बा मात्र 8 किमी है, जो इस मार्ग का एक मुख्य शहर है। और यह शहर पहाड़ी पर बसा हुआ है।
यहाँ तक का रास्ता चढ़ाई भरा रहा, जो काफी सुंदर व रोमाँचक लगा। रास्ते भर दूर हरे-भरे और सुंदर पहाड़ों के सौंदर्य को निहारते हुए यहाँ के टेढ़े मेढ़े रास्ते से सफर आगे बढ़ता रहा। नकदी फसलों से कुछ-कुछ प्रयोग रास्ते के खेतों में दिखे। 
रास्ते में ही चम्बा शहर का विहंगम नजारा सामने प्रकट हुआ, थोड़ी ही देर में हम शहर में प्रवेश कर चुके थे। चम्बा शहर के बीचों-बीच चौराहे से दाईं ओर का रास्ता टिहरी शहर की ओर जाता है तथा वांयां सुरकुंडा-मसूरी की ओर। इसकी तंग और भीड़भरी गलियों को पार करते हुए हम सुरकुंडा की ओर बढ़ रहे थे।

रास्ते में अराकोट स्थान से हमें चलती बस से विराट हिमालय श्रृंखला की पहली झलक मिली। निसंदेह हिमाच्छादित हिमालय के दर्शन सभी के लिए एक आलौकिक अनुभव था। जिस गंगा की गोद, हिमालय की छाया का ध्यान देसंविवि में नित्य होता रहता है, उसकी प्रत्यक्ष झलक निसंदेह रुप में ध्यान की गहराईयों में उतरने का अनुभव दे रही थी। आगे राह में बाँज और देवदार के वृक्षों के दर्शन हिमालय की ऊँचाईयों में प्रवेश का गाढ़ा अहसास दिला रहे थे, जहाँ बर्फवारी सर्दी के मौसम का नित्य सच रहता है। चलती बस में ठंडी हवा के साथ हिमालयन टच के तीखे किंतु सुखद झौंके हमें हिमालय की वादियों में अपनी मंजिल के समीप होने सुखद अहसास दिला रहे थे। (जारी,.......शेष अगली पोस्ट में - गढ़वाल हिमालय की सबसे मनोरम राहों में एक (चम्बा से कद्दुखाल, सुरकुण्डा))
 

मंगलवार, 9 मई 2017

यात्रा वृतांत - कुंजापुरी शक्तिपीठ





कुंजापुरी से नीरझरना, ट्रेकिंग एडवेंचर



कुंजापुरी ऋषिकेश क्षेत्र का एक कम प्रचलित किंतु स्वयं में एक अद्वितीय एवं दर्शनीय तीर्थ स्थल है। शक्ति उपासकों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है क्योंकि कुंजापुरी पहाडी के शिखर पर बसा यह शक्तिपीठ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 52 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ माता सती का छाती वाला हिस्सा गिरा था। कुंजा पहाडी के शिखर पर बसे इस तीर्थ का एकांत-शांत वातावरण, प्रकृति की गोद में शांति को तलाशते पथिकों के लिए एक आदर्श स्थान है। 



राह का प्राकृतिक सौंदर्य़ – 
यह स्थान ऋषिकेश से महज 25 किमी की दूरी पर स्थित है। नरेन्द्रनगर से होकर यहाँ का रास्ता हरे-भरे सघन जंगल से होकर जाता है, जिसके बीच यात्रा जैसे प्रकृति की गोद में शांति-सुकून का गहरा अहसास देती है। जैसे-जैसे सफर ऊपर बढ़ता है नीचे ऋषिकेश, गंगाजी व ऊधर जोलीग्रांट-देहरादून का विहंगमदृश्य क्रमशः स्पष्ट होने लगता है। आसपास पहाड़ियों पर बसे गाँव, उनके सीढ़ीदार खेत दूर से दिलकश नजारा पेश करते हैं। बरसात के बाद अगस्त-सितम्बर के माह में इस राह का नजारा अलग ही रहता है जब पग-पग पर झरने झरते मिलते हैं। नरेन्द्रनगर रास्ते का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो टिहरी के राजा का आवास स्थल रहा है। यहाँ का आनन्दा रिजोर्ट बड़ी हस्तियों के बीच खासा लोकप्रिय है, जिसके दूरदर्शन कुंजापुरी से सहज ही किए जा सकते हैं।

कुंजादेवी ट्रेकिंग मार्ग
चम्बा-उत्तरकाशी की ओर जाता मुख्य मार्ग से हिंडोलखाल स्टॉप से एक सड़क दाईं ओर मुडती है। यहाँ से 4 किमी अपने वाहन से कुंजापुरी तक जाया जा सकता है। दूसरा एडवेंचर प्रेमियों के लिए 3 किमी का ट्रेकिंग रुट है। जो हल्की चढ़ाई और घने बाँज के जंगलों से होकर जाता है। इसकी बीच ट्रेकिंग एक यादगार अनुभव रहती है। रास्ते में बंदर, लंगूर, जंगली पक्षी सुनसान के सहचर के रुप में मिलते रहते हैं। इस सीजन में हिंसालू(आंछा), किल्मोडे (शांभल), मेहो (शेगल) जैसे कांटेदार झाडियों व वृक्षों में लगे खटे-मीठे जंगली फल सहज ही रास्ते में यात्रियों का स्वागत करते हैं।
ट्रेकिंग मार्ग का रोमाँच
रास्ते में कहीं-कहीं बहुत ही संकरे मार्ग से आगे बढ़ना होता है, नीचे सीधे गहरी खाई के दर्शन नवांतुकों को सर चकराने का अनुभव दे सकते हैं। ऐसे में सारा ध्यान अपनी राह पर आगे व बढ़ते चरणों में नीचे की ओर रहे तो ठीक रहता है। साथ में लाठी इस रास्ते में बहुत बड़ा सहारा सावित होती है। बहुत तंग जगह पर दाएं हाथ से पहाड़ का सहारा लेकर आगे बढ़ना सुरक्षित रहता है। नीचे खाई की और देखने की भूल न करें। ट्रेकिंग रास्ते में इस तरह के 3-4 छोटे-छोटे पड़ाव आते हैं। दूसरा, ऐसे स्थानों पर अपना सेल्फी प्रेम दूर ही रखें, क्योंकि ऐसा प्रयोग मिसएडवेंचर सावित हो सकता है। बीच-बीच में विश्राम के शानदार ठिकाने बने हुए हैं। पत्थरों के आसन पर, बांज-देवदार के घनी छाया के नीचे कुछ पल बैठकर यहाँ रिचार्ज हो सकते हैं। रास्ते में घने बाँज के बनों के बीच बहती हवा के झौंके नेचुलर ऐ.सी. का काम करते हैं। पूरे रास्ते में ऐसे झौंके दोपहरी की गर्मी के बीच ट्रेकरों के रास्ते को सुकूनदायी बनाए रखते हैं।

 मंदिर परिसर में
आधा-पौना घंटे बाद यात्री पीछे की ओर से मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। यहां मुख्य गेट पर प्रहरी के रुप में दो शेर स्वागत करते हैं। मंदिर में प्रणाम, पूर्जा अर्चन के बाद बाहर परिसर के खुले एवं साफ-सुथरे परिसर में भ्रमण आनन्ददायी रहता है। यहाँ से चारों ओर घाटी, पर्वत, चोटियों का विहंगम दृश्य यात्रियों को दूसरे लोक में विचरण की अनुभूति देता है। 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा स्थल है। यहाँ से नीचे दक्षिण की ओर ऋषिकेश, सुदूर हरिद्वार दक्षिण-पश्चिम की ओर जोलीग्रांट-देहरादून के दर्शन किए जा सकते हैं। 
 उत्तर में गढ़वाल के शिखरों के दर्शन साफ मौसम में सहज ही किए जा सकते हैं, जिनमें स्वर्गारोहण, बंदरपूँछ, चौखम्बा, गंगोत्री चोटियां प्रमुख हैं। यहाँ से इस क्षेत्र के अन्य दो शक्तिपीठ सुरकुण्डा और चंद्रवदनी के दर्शन भी किए जा सकते हैं, जो मिलकर एक शक्तिपीठों का दिव्य त्रिकोण बनाते हैं। यहाँ से नीलकण्ठ की पहाड़ियों सहज ही दर्शनीय हैं, जो यहाँ से काफी नीचे दीखती हैं।
यहाँ के परिसर में बने चबूतरे व इसके आसपास बने बेंचों पर बैठकर सहज ही हरपल वह रहे हवा के झौंकों का लुत्फ उठाया जा सकता है। यहाँ चाय-नाश्ता के लिए स्थानीय ढावा है। यहाँ के खुले व साफ परिसर में यात्री सुकून के पल विता सकता है, जो अन्य भीड़ भरे कंजेस्टेड तीर्थों में मुश्किल होता है। शहरों की भीड़ ते आजीज आ चुके तीर्थयात्रियों व प्रकृति प्रेमियों के लिए कुंजापूरी एक आदर्श स्थल है। यदि यहाँ प्रातः 7 बजे पहुंचने की व्यवस्था हो सके तो यहाँ के सूर्योदय का दर्शन एक यादगार अनुभव रहता है।

परिसर से बापसी का सीढीदार मार्ग
 यहाँ से बापसी मोटर मार्ग से हो सकती है। सड़क तक का रास्ता छत से ढकी लगभग 300 सीढियों से होकर जाता है। हर सीढ़ी में देवीसुक्त के मंत्र उत्कीर्ण हैं, जो इस यात्रा को विशेष बनाते हैं। श्रद्धालु इनका पाठ करते हुए सीढी का अवरोहण करते हैं। नीचे टैक्सी स्टेंड में भी चाय-नश्ते की कई दुकानें हैं। जहाँ से अपने बाहन से बापस आया जा सकता है। इसी रास्ते से सीधा बढ़ते हुए पुराने ट्रेकिंग मार्ग से नीचे हिंडोलखाल उतरा जा सकता है। जहाँ से चम्बा की ओर से आ रही बसों से सीधे ऋषिकेश पहुँचा जा सकता है।

गाँव से होता हुआ आगे का ट्रेकिंग मार्ग
ट्रेकिंग के इच्छुक रोमाँचप्रेमियों के लिए सडक के पहले मोड से वाइँ और नीचे की और जाते हुए पैदल मार्ग है, जो पटेर गांव से नीचे कच्ची सड़क तक पहुंचता है। यहाँ से एक सीधा मार्ग जंगल से होते हुए सीधे तपोवन पहुंचता है। जो 6 किमी लम्बा है। दूसरा ट्रेकिंग मार्ग वाइँ और से कोड़ाड, धारकोट व नीरगाँव से होकर बढ़ता है, जो कुल मिलाकर 15 किमी लम्बा है और अंत में नीरझरने से होकर नीचे ऋषिकेश-देवप्रयाग मुख्यमार्ग में निर्गड्डू पर मिलता है।
यह ट्रेकिंग मार्ग शांत वादियों से होकर गुजरता है। गांव के सीधे-सरल और मेहनती लोग यात्रा में अच्छे मार्गदर्शक और मेहमानवाज की भूमिका निभाते हैं। रास्ते में चाय व ठंडे के शौकीनों को रास्ते में निराश होना पड़ सकता है। रास्ता निर्जन है, कोई दुकान या ढावा नहीं है। नीरगाँव में आकर ही एक-दो दुकाने हैं, जहाँ ये जरुरतें पूरी की जा सकती हैं।

 नीरझरना ट्रेकिंग मार्ग
नीरगाँव से मोटर मार्ग से नीचे की ओर पैदल मार्ग नीर झरने की और बढ़ता है। गाँव के बीच से ही खेतों की मेड़ पर सीमेंट से बनी छोटी नहरें(कुल्ह) पानी को आगे प्रवाहित करती हैं। इसके कल-कल कर बहते जल की आबाज रास्ते के सफर में मिठास घोलती है। रास्ते में सीढ़ीदार खेतों में चाबल से लेकर अन्य फसलें देखी जा सकती हैं। हालांकि फल-सब्जी का चलन यहाँ नहीं दिखा, जो पानी की प्रचुरता के कारण सम्भव था। गांव के छोर पर नीचे नीर झरना आता है। अंतिम पढ़ाव गहरी उतराई से भरा है, जहाँ थके ट्रेकरों की कड़ी परीक्षा होती है। एक कदम फिसला कि गए सीधे खाई में। सामने झरना दो चरणों में नीचे गिरता है। उपर एक झील बनती है, फिर पानी नीचे दूसरी झील में गिरता है। यहाँ के निर्मल व शीतल जल में स्नान का लोभ शायद ही कोई संवरण कर पाए। इसमें डुबकी रास्ते की थकान को छूमंतर करती है। आसपास बने ढावों से मैगी चाय व नाश्ते का आनन्द उठाया जा सकता है।
यहाँ से नीचे आधा किमी भी छोटे छोटे झरनों से भरा है। जिसका यात्री पूरा लुत्फ उठा सकते हैं। कोई हरिद्वार-ऋषिकेश में आया यात्री कल्पना भी नहीं कर पाता कि यहाँ एक ऐसा प्राकृतिक झरने का खजाना भी छिपा हुआ है। ट्रेकिंग मार्ग नीचे आधा किमी बाद कच्ची सड़क से मिलता है। जो आगे लगभग 2 किमी के बाद निर्गड्डू में मुख्य मार्ग से मिलती है। जहाँ से तपोपन 1.5 किमी है। जहाँ से आटो टेक्सी आदि से यात्री ऋषिकेश बस स्टेंड होते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ सकते हैं।

चुनींदी पोस्ट

पुस्तक सार - हिमालय की वादियों में

हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय से एक परिचय करवाती पुस्तक यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं, घुमने के शौकीन हैं, शांति, सुकून और एडवेंचर की खोज में हैं ...