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शुक्रवार, 30 मई 2025

देवप्रयाग की एक यादगार एवं रोमाँचक यात्रा

 

शिक्षा, संस्कार एवं उत्कृष्टता की त्रिवेणी

आज बहुत समय बाद देवप्रयाग तक जाने का संयोग बन रहा था। संयोग कहें, या की संगम का बुलावा। जॉलिग्रांट अस्तपताल में पारिवारिक उपचार के लिए गया था, ऑनलाइन संगोष्ठी में प्रतिभाग की योजना थी, लेकिन गोष्ठी के संयोजक डॉ. स्नेहीजी से संवाद के बाद परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि लगा ऑफलाइन ही इसमें प्रतिभाग करना बेहतर रहेगा और परिस्थितियाँ भी अनुकूल बनती गई। यह सब दैव कृपा व संगम तीर्थ का आवाह्न मान हम दोपहरी में सफर पर निकल पड़ते हैं।

साथ में युवा शिक्षक डॉ. दिलीप सराह थे। हरिद्वार से देवप्रय़ाग तक काफी अर्से बाद जा रहे थे, सो रास्ते में सड़कों पर हुए कार्य को देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि सड़कें काफी चौड़ी हो चुकी हैं, फोरलेन पर कार्य जोरों से चल रहा है। ऋषिकेश के पास वीकेंड के कारण थोड़ा जाम रहा, लेकिन आगे का सफर एक दम सपाट एवं सुखद रहा। एक-दो स्थान पर भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों पर चल रहे कार्य के कारण थोड़ा अबरोध अवश्य मिला। कुल मिलाकर हम सवा तीन घंटे में, साढ़े पाँच बजे तक देवप्रयाग पहुँच जाते हैं।

रास्ते में व्यासी, कोडियाला जैसे चिरपरिचित स्टेशन आते हैं, जहाँ यात्री चाय-नाश्ता के लिए रुकते हैं। फिर शिवपुरी आता है, जहाँ चम्बा की ओर से सुरकुंडा पहाड़ियों से निस्सृत हेम्वल नदी गुजरती है और गंगाजी में समा जाती है। इन्हीं के बीच बजी जंपिंग के कुछ प्रयोग चलते हैं, जो शाम की चमचमाती रोशनियों में एक अलग ही नज़ारा पेश करते हैं। यहीं से रिवर केंपिंग साइट्स तथा राफ्टिग की भी शुरुआत होती, जो बाहर से आए पर्यटकों के बीच साहसिक रोमाँच का एक लोकप्रिय शग्ल रहता है।

रास्ते में तीन पानी स्थान भी उल्लेखनीय हैं, जहाँ कभी जल के तीन स्रोत थे। हम भी एक स्रोत से जल भरते हैं, जल एकदम ठण्डा व स्वाद में भी बेहतरीन निकला। आगे रास्ते में रेलमार्ग के कार्य का भी दर्शन होता है, जहाँ स्टेशन के लिए वृहद संरचना जुटाई जा रही है और गंगाजी के पार सुरंग से रास्ता बनने की तैयारी दिखी।

रास्ते भर पहाड़ों के शिखर व आंचल में बसे घर-गाँव हमेशा की तरह हमे रोमाँचित करते रहे। प्रश्न एक ही उठता रहा कि बिमार होने पर यहाँ के लोग किस तरह अस्तपाल पहुँचते होंगे। और बच्चों के पढ़ाई की व्यवस्था कैसे होती होगी। हालाँकि अधिकांश गाँव तक सड़कों का जाल बिछा दिख रहा था, कुछ ही घर सड़कों से काफी दूर दिख रहे थे।

देवप्रयाग पहुँचते ही संगम के दूरदर्शन होते हैं, देवप्रयाग बस स्टेंड से पहले ही हमारा वाहन दायीं ओर मुड़ जाता है, सामने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का विहंगम परिसर ध्यान आकर्षित कर रहा था। हर यात्री यहाँ से गुजरते हुए इस नवनिर्मित विश्वविद्यालय के भव्य परिसर को देखते ही कुछ पल के लिए आश्चर्यचकित होकर स्तम्भित हुए बिना नहीं रह सकता।

थोड़ी देर में नीचे गंगा नदी पर पुल पार कर हम कुछ मिनट में विश्वविद्याल के गेस्ट हाउस के सामने पहुँचते हैं, जो संभवतः परिसर का पहला भवन भी है। यहाँ फ्रेश होकर हम बाहर कैंपस के दर्शन के लिए निकलते हैं। शहर के प्रदूषण से दूर यहाँ के एकांतिक परिसर की शुद्ध आवोहवा किसी वरदान से कम नहीं लग रही थी। कैंपस की लोकेशन ऐसी जगह है, जहाँ हर पल हवा के तेज झौंके बहते रहते हैं। इस गर्मी के मौसम में तो यह बहुत सुकूनदायी लग रहा था लेकिन हम कल्पना सर्दी के मौसम की कर रहे थे, जब यहाँ विचरण करना काफी चुनौतीपूर्ण रहता होगा।

सड़क के नीचे अकादमिक ब्लॉक के भव्य भवन दिखे, सड़क के ऊपर पहाड़ी के आंचल में हॉस्टल के दर्शनीय भवनों की श्रृंखला तथा बीच में खेल का चौड़ा मैदान। साईड़ में नीचे दक्षिण की ओर स्टाफ क्वार्टर। शाम हो चुकी थी, कैंपस की कैंटीन व स्टोर बंद हो चुके थे। सो हम कैंपस के बाहर निकल कर थोड़ा नीचे मार्केट में पहुँचते हैं। साबुन सर्फ आदि दैनिक आवश्यकताओं के कुछ सामान खरीदते हैं। थोड़ा नीचे अलकनंदा नदी पर एक पुराना पुल दिख रहा था, उस तक पहुँचने का भी दुस्साहस कर बैठते हैं, लेकिन पुल के बीच से नीचे संगम काफी दूर लगा, सो दूर से ही प्रणाम कर उलटे पाँव बापिस होते हैं और राह की खड़ी चढ़ाई के संग कैंपस तक पहुँचते हैं।

ऐसे में कपड़े पसीने से तर हो चुके थे। फ्रेश होकर गर्मागर्म चाय पीते हैं। गेस्ट हाउस में किचन, दूध, चाय पत्ती, व चीनी आदि की उम्दा व्यस्था थी। साथ में आए डॉ. दिलीपजी की चाय बनाने की विशेषज्ञता से आज परिचित हुए। एकाउटेंसी से जुड़े होने के कारण वे चाय के अभ्यस्त हैं और चाय बनाने में भी एक्सपर्ट। थके होने पर उम्दा चाय की प्याली निसंदेह रुप से सदैव एक तरोताजा करने वाला अनुभव रहती है। सो दो दिन इसका भरपूर लाभ लेते रहे। हम यहाँ चाय की वकालत नहीं कर रहे, इसके अन्य स्वस्थ विकल्प भी आजमाए जा सकते हैं, लेकिन देश, काल परिस्थिति के अनुरुप अपने यथार्थ का यहाँ वर्णन कर रहे हैं।

सांय एक सत्र फेकल्टी डेवेल्पमेंट पर होता है, विषय था – शिक्षकों का सर्वांगीण विकास एवं गुणवत्तापरक शिक्षा। लेक्चर से अधिक यह अपने अनुभवों को साझा करने का उपक्रम था, जिसे लगा सभी प्रतिभागियों ने बेहतरीन ढंग से ह्दयंगम किया।

रात को भोजनोपरान्त गेस्ट हाउस में शयन का क्रम बनता है। गेस्ट हाउस की वाल्कनी से नीचे वालगंगा के दर्शन प्रत्यक्ष थे। थोड़ी ही दूरी में भगीरथी और अलकनन्दा के संगम होता है, जो हॉस्टल से दृश्य नहीं था, लेकिन यहाँ गंगा मैया का बालरुप हमारे सामने से कुछ दूरी पर प्रत्यक्ष प्रवाहमान था। हम वाल्कनी में इसका दर्शन कर धन्य अनुभव कर रहे थे। और संगम की तीर्थ चेतना की ऊर्जा यहाँ तक जैसे हमारी रुह को स्पर्श कर रही थी। सामने पहाड़ों में बसे गाँवों की टिमटिमाती रोशनी हमें अपने गृह प्रदेश में बचपन की यादों को ताजा कर रही थी। ऐसा ही दृश्य पिछले वर्ष गंगोत्री धाम यात्रा के दौरान धराली (कल्प केदार) से सामने मुखबा गाँव के हुए थे।

इन्हीं भावों के सागर में गोते लगाते हुए रात बीती। कल की तैयारियाँ भी चल रही थी, सो रात को शयन में थोड़ा विलम्ब हो जाता है, लेकिन नींद में उपरोक्त भाव हॉवी रहे। औऱ प्रातः ब्रह्ममुहुर्त में ही उठने का क्रम बनता है। स्नान, ध्यान व अपनी अकादमिक तैयारी के साथ फिर थोड़ा विश्राम करते हैं। छः बजे चाय की चुस्की के साथ बाहर मोर्निंग वाक होती है। पहाड़ियों से घिरे विश्वविद्याल के कैंपस और नीचे देवप्रयाग के संगम, उस पार तमाम पहाड़ी गाँव, सबका मनोरम दृश्य निहारते हुए आज की प्रातः हमारे लिए एक अद्वितीय एवं यादगार अनुभव थी, जो चिरकाल तक अंकित रहेगी।

इसी क्रम में नाश्ता के बाद दिन की बाकि प्रस्तुतियाँ होती हैं। एक एनईपी-2020 के अनुरुप पाठ्यक्रम निर्माण और आउटकम आधारित शिक्षा पर तथा दूसरी मूल्यपर शिक्षा, स्व-नेतृत्व व अकादमिक-प्रशासनिक उत्कृष्टता पर थी। ब्लॉग लेखन पर भी एक रोचक सत्र चला, जिसमें लगभग सभी प्रतिभागियों के ब्लॉग तैयार हो गए थे। सत्र समाप्ति के बाद सबसे विदा लेते हुए हम हॉस्टल आते हैं। लगा कि परिसर में जैसे हम शिक्षा, संस्कार और उत्कृष्टता की त्रिवेणीं में डुबकी लगा रहे हैं। हालाँकि ये एक बीजारोपण जैसा संयोग लगा, जिसकी सुखद परिणतियाँ तो काल के गर्भ में छिपी हुई हैं।

यहाँ पिछले आगमन का भी संक्षिप्त चर्चा करना चाहूँगा, जब हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रविंद्र बर्तवालजी के निमन्त्रण पर भारतीय संदर्भ में शोध-अनुसंधान एवं भाषाई विमर्श (हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी एवं लोक भाषा के संदर्भ में) विषय पर एक गोष्ठी के अंतर्गत 30 जनवरी, 2017 के दिन यहाँ आए थे। हालाँकि तब यह परिसर निर्माणाधीन था और उस पार ही सड़क के किनारे एक होटल में कार्यक्रम हुआ था।

शाम को ही आज बापिसी का क्रम था। सो अपने वाहन से नीचे पुल से होते हुए गंगा नदी के किनारे इसे रोकते हैं। दो पुल पार कर संगम तक पहुँचते हैं। राह के परिक्रमा पथ का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं और रास्ते के मनोरम दृश्य को अनुभव कर सकते हैं, जहाँ एक ओर श्रीनगर की ओर से आ रही अलकन्दा नदी को पार करते हुए नीचे देवप्रयाग संगम का विहंगम दृश्य दर्शनीय है तो ऊपर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का भव्य परिसर।

संगम का दृश्य को स्वयं में मनोहारी था, तीर्थ चेतना की ऊर्जा से आवेशित। इसमें डुबकी लगा कर लोग धन्य अनुभव कर रहे थे। हम तीर्थ का पावन जल साथ लाते हैं। यहाँ सूर्य और चंद्र गुफा के भी दर्शन किए और बापिस वाहन में आते हैं। रास्ते में ही भगवान राम का मंदिर पड़ता है। मान्यता है कि रावण के बध के पश्चात प्रायश्चित स्वरुप वे यहाँ रुक कर प्रायश्चित तप किए थे। देवप्रयाग और ऋषिकेश के मध्य वशिष्ट गुफा पड़ती है। लक्ष्मण झूला के पास लक्ष्मण तथा ऋषिकेश में भरत व शत्रुधन की तपःस्थली मानी जाती है।  

बापिसी में पुल को पार करते हुए केंदीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर के विहंगम दर्शन होते हैं। इसको विदा करते हुए, यादगार स्मृतियों के साथ अपने गन्तव्य की ओर कूच करते हैं। रास्ते भर गढ़वाल हिमालय की पहाडियों के मध्य सफर का रोमाँचक अनुभव लेते रहे। आप भी नीचे के वीडियो को देखकर इसमें भागीदार बन सकते हैं। कहीं नीचे घाटी में गंगाजी के दर्शन होते हैं, तो कहीं लंगूर सड़क के किनारे दिन भर की थकान मिटा रहे थे।

रास्ते में हमारे चालक रवि राह में पड़ने वाले पर्यटक स्थलों के प्रति हमारी जिज्ञासाओं का समाधान करते रहे, जिनका जिक्र हम यात्रा के प्रारम्भ में भी कर चुके हैं। इस तरह शिवपुरी के पास के बजी जंपिग साइट, राफ्टिंग जोन, कोडियाला-ब्यासी, दुगढ़ा (नीरझरना) आदि से होकर ऋषिकेश पहुँचते हैं, जहाँ शहर की टिमटिमाती रोशनियाँ गंगाजी में एक अद्भुत दृश्य पेश कर रही थी। ऋषिकेश के ट्रेफिक को पार कर हम रात सवा नौ तक विश्वविद्याल परिसर पहुंचते हैं।

सफर का सार यह रहा कि सरकार जिस तरह से सड़कों पर कार्य कर रही है वह सराहनीय है। इससे सफर का समय कम हो रहा है और अधिक सुकूनदायी भी बन रहा है, बस ध्यान साबधानी पूर्वक ड्राइविंग का है। रेल्वे ट्रेक खुलने से पर्यटन का नया अध्याय शुरु होने वाला है। गंगा में राफ्टिंग व अन्य पर्यटन को थोड़ा इकोफ्रेंडली बनाने की आवश्यकता है। जिम्मेदार पर्यटन समय की माँग है। बाकि अकादमिक कार्यक्रम एवं आदान-प्रदान होते रहने चाहिए, जिससे हमारे शिक्षक श्रेष्ठतम शिक्षा के साथ ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता की ओर बढ़ते हुए एक सशक्त भारत, समृद्ध प्रदेश एवं संस्कारवान पीढ़ी के निर्माण की परिकल्पना को साकार कर सके। पूरा विश्व आशाभरी निगाहों से भारत की ओऱ देख रहा है।

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