शीघ्र की प्रकाशनीय...
सोमवार, 30 जून 2025
हरिद्वार से कुल्लू, वाया बस, जून 2025 का एक यादगार सफर
हरिद्वार से कुल्लू, वाया बस, जून 2025 का एक
यादगार सफर
प्रश्नों के चक्रव्यूह से बाहर निकालता एक यादगार
सफर
हरिद्वार से कुल्लू का सफर कई बार कर चुका हूँ, लेकिन इस वार का सफर
एक नई ताजगी व रोमाँच से भरा हुआ था। अमूमन हरिद्वार से हमारा लोकप्रिय सफर हिमधारा
सेमी डिलक्स में सांय 4 बजे प्रारम्भ होता रहा है, जो चण्डीगढ़ से लेकर हिमाचल के
मंडी तक रात के अंधेरे में ही तय होता रहा है और प्रातः नौ बजे तक अपने गन्तव्य तक
पहुँचाता है। इस बार हम ट्रैब्ल प्लान का शीर्षासन करते हुए 14 जून 2025 के दिन
प्रातः पौने पाँच बजे की बस में हरिद्वार से चढ़ते हैं, बस सामान्य श्रेणी की थी,
लेकिन सीटें किसी भी रुप में सेमी डिलक्स से कम नहीं थी, बस में एसी की सुविधा
नहीं थी, जिसकी पूर्ति रास्ते का हवादार सफर करता रहा।
बल्कि हरिद्वार से देहरादून तक के एक घंटे के सफर में तो ठंड़क अहसास
होता रहा, लगा टोपा या मफलर साथ लिए होते, तो बेहतर रहता। आगे तो अपने टॉउल को सर
पर लपेट पर काम चलाते रहे। ठीक सात बजे देहरादून से बस आगे बढ़ती है। राह के कई
पड़ावों व खेत-खलिहानों को पार करते हुए हम पौंटा साहिव पहुँचते हैं। यहाँ यमुना
नदी पर बना पुल और इसके वाईं ओर राइट बैंक पर दशम गुरुगोविंद सिंह जी के स्वर्णिम
काल का साक्षी गुरुद्वारा पौंटा साहिब सदैव ही गहनतम भाव-श्रद्धा के साथ नतमस्तक
करता है।
इसके आगे कुछ देर तक मैदानी क्षेत्र को पार करने के बाद क्रमिक रुप से
पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश होता है और घाटी के शिखर पर नाहन की ओर बढ़ता सफर नीचे
के विहंगम दृश्य से आल्हादित करता है। नीचे दूर-दूर तक फैली हरी-भरी घाटी और मार्ग
की मनोरम दृश्यावली निश्चित रुप से सफर में नया रस घोल रही थी।
नाहन बस स्टैंड पर कुछ देर रुकने के बाद पहाड़ से नीचे उतरते हुए वाया
अम्ब, नारायण गढ़ा आदि स्थानों से होते पंचकुला से चण्डीगढ़ शहर में प्रवेश होता
है। सिटी ब्यूटीफुल के दर्शन निश्चित रुप में सदैव ही सुखद अनुभव रहता है। माँ
चण्डी देवी के नाम से चण्डीगढ़ का शहर पड़ा है। जिसका मंदिर पास के चण्डीमाजरा
स्थान पर है। यहाँ से गुजरते हुए आदिशक्ति का भाव सुमरण के साथ ही शहर में प्रवेश
होता है।
रास्ते में आम के बगीचों के बीच काफी देर तक सफर एक नया अनुभव रहता
है। इस बगीचे की कहानी तो मालूम नहीं, लेकिन इसके बीच सफर एक सुखद अहसास दिलाता
है। मेहनतकश बागवानों की किसानी संघर्ष की याद दिलाता है।
थोड़ी देर में चण्डीगढ़ 43 सेक्टर पहुँचते हैं, जहाँ नया आइएसबीटी
स्टेशन है। कुछ देर रिफ्रेश होने के बाद यहाँ से सफर आगे बढ़ता है। इस तरह आज दिन
के उजाले में चण्डीगढ़ शहर के दर्शन करते हुए पंचकुला साइड से एंटर होते हैं और
मोहाली साईड से बाहर निकलते हैं। चण्डीगढ़ को सिटी ब्यूटीफुल क्यों कहा जाता है,
राह के प्राकृतिक नज़ारों, सुव्यवस्थित टॉउन प्लानिंग को देखकर स्पष्ट होता है। रास्ते
में चौराहे पर बस के जाम में खड़ा रहने के चलते थोड़ा गर्मी का अहसास भी हो रहा था।
बस स्टैंड पर पहुंच कर कोल्ड कॉफी के साथ इसकी कुछ भरपाई करते हैं।
दिन के उजाले में मोहाली से गुजरते हुए रुपनगर (रोपड़) को पार करते
हैं, बीच में ब्यास-सतलुज नदी के सम्मिलित जल की नीली धारा वाली नहर को पार करते
हैं और हमारी बस रुकती है, कीरतपुर के लगभग 4 किमी पहले....स्थान पर, जो पंजाबी
जायके वाले ढावों के लिए प्रख्यात है। हमारी बस भी शुद्ध वैष्णों ढावे के सामने
खड़ी होती है। यहाँ की पंजाबी थाली व अन्त में लस्सी के गिलास के साथ पूर्णाहुति
करते हैं और यहाँ बाहर काउंटर पर खड़े बंधु से बात कर अपनी सहज जिज्ञासाओं को शांत
करते हैं।
स्थान की विशेषता पूछने पर पता चला कि यह इलाका अन्न उत्पादन के लिए
प्रख्यात है, क्योंकि यहाँ की उर्बर भूमि और जल की प्रचुरता के कारण ऐसा संभव रहा
है। अतः यहाँ लोगों का प्रमुख पेशा अन्न उत्पादन के साथ ढावों के माध्यम से अपने
उत्पादों का व्यवसाय है। अपनी गाय-भैंसों के साथ यहाँ दूर-दही व घी की भी प्रचुरता
रहती है। अपने खेतों से साग-सब्जी व दाल आदि शुद्ध रुप में सहजता से उपलब्ध रहती
है। जलस्रोत के रुप में पास बहती नहर व नदी है। इस प्राकृतिक जल व खाद्य उत्पादन
के कारण संभवतः यहाँ के भोजन में एक विशेष स्वाद रहता है।
ढावे के परिसर में ही पास ग्रामीण परिवेश के मध्य खड़ी गाय, बछड़े के
बूत राहगीरों का ध्यान आकर्षित कर रहे थे। जहाँ सेल्फी के लिए लोगों की भीड़ लगी
थी। खासकर महिलाएं बाल्टी हाथ में लेकर गाय को दुहने का अभिनय कर रही थी और रील
बनाकर जीवन को धन्य अनुभव कर रही थी। बच्चे भी इसका पूरा आनन्द लेते दिख रहे थे।
उनके लिए खेलने के लिए झूले से लेकर स्लाइडिंग स्लोप्स की मिनी पार्क जैसी सुविधा
पास में थी। हालांकि यहाँ पर्याप्त गर्मी का अहसास हो रहा था, लेकिन ठंडी लस्सी के
साथ इसको बैलेंस करते हैं।
भोजन से तृप्त होकर सभी बस में चढ़ते हैं और कुछ ही देर में कीरतपुर
साहिब पार करते हैं। हमारे दिन में सफर करने का वास्तविक मकसद अगले कुछ मिनटों में
पूरा होने वाला था। मालूम हो कि पुराना रुट वाया पहाड़ी के टॉप पर स्वारघाट, फिर
कई घाटी-मोड़ व पुलों को पारकर बिलासपुर शहर, आगे घाघस तथा सतलुज नदी के उपर
स्लापड़ पुल पार कर पूरा होता था। नया रुट पहाड़ों को खोदकर बनाई गई लगभग आधा
दर्जन सुरंगों के कारण वाइपास वाला है, इससे सफर लगभग दो घंटे कम हो गया है। इस
रुट पर पुराने कोई स्टेशन नहीं आते। बल्कि सतलुज नदी व इसके भाखडा बाँध पर रोकने
से बनी गोविंद सागर झील (हालाँकि इस समय जल सामान्य स्तर पर था, सो झील का स्वरुप
महज नदी के प्रवाह तक सीमित था) की
परिक्रमा करता हुआ एक नया अनुभव रहा।
रास्ते में पड़ते नए गाँव, खेत-खलिहान, पुल आदि हमारी पहली दृष्टि के
लिए कौतुक का विषय थे, जानने की कोशिश कर रहा था कि पुराने रुट से हम कितना पास या
दूर सफर कर रहे हैं। क्योकि बीच में एक तिराहें पर शिमला जाने का भी साइनबोर्ड लगा
था। और आगे पुल को पार करते ही बिलासपुर शहर के भी दूरदर्शन हो रहे थे। इसके साथ
स्पष्ट था कि हम बिलासपुर के एक दम दूसरी ओर सतलुज नदी के किनारे समानान्तर मार्ग
से आगे बढ़ रहे थे।
जो पहाडियों के आंचल में बसे गाँवों-कसवों के मध्य आगे बढ़ता हुआ आगे
एक टलस से गुजरता है। अब सामने घाघस की सीमेंट फैक्ट्री के दूरदर्शन हो रहे थे।
अतः स्पष्ट था कि हम घाघस और सलापड़ के समानान्तर चल रहे थे। आगे पुनः एक सुरंग से
गुजरते हुए हम हरावाग के पास कहीं पहुंचते हैं, जहाँ थोड़ी देर में आगे सुन्दरनगर
शहर आता है। आगे का सफर पुराने मार्ग से होकर था। हालाँकि पता चला कि इसमें भी
सुरंगे बन रहीं हैं और भविष्य में और शॉर्टकट वाइपास बनने बाले हैं।
आज हमारा सफर सुंदरनगर से नैर चॉक और फिर मंडी पहुंचता है। शाम हो चली
थी। यहाँ से पंडोह की ओर बढ़ते हैं। फिर डैम को पाकर आगे सुरंग के रास्ते बाहर
थलौट के पास निकलते हैं, अंत में एक सुरंग को पार कर आउट आता है, जिसका जिक्र हम
एक अन्य ब्लॉग व वीडियो में कर चुके हैं। शाम का अंधेरा छा चुका था। आगे पनारसा,
नगवाईं, बजौरा और भुंतर पार करते हुए ढालपुर मैदान और फिर कुल्लू आता है। बस
मानाली जा रही थी, जो सेऊबाग राइट बैंक पौने नौ बजे पहुंचती है। वहाँ अपने भाई संग
बाहन में नौ बजे घर पहुंचता हूँ। इस तरह सौलह-सत्रह घंटे का थकाउ किंतु यादगार बस
का सफर पूरा होता है।
घर के सदस्यों को मिलने के बाद गर्मजल में स्नान के साथ सफर की थकान
दूर होती है। और आज के सफर में नए रुट को दिन के उजाले में प्रत्यक्ष अनुभव कर
रोमाँचित हो रहा था कि आज रुट का नक्शा मेरे दिमाग में क्लीयर हो गया है। जो पिछले
कई वर्षों से मेरे लिए प्रश्नों से भरा हुआ एक चक्रव्यूह बना हुआ था।
चुनींदी पोस्ट
Travelogue - In the lap of Surkunda Hill via Dhanaulti-Dehradun
A blessed trip for the seekers of Himalayan touch Surkunda is the highest peak in Garwal Himalayan region near Mussoorie Hills wi...
-
यात्रा वृतांत लेखन के चरण निश्चित रुप में यात्रा वृतांत का पहला ठोस चरण तो यात्रा ...
-
यात्रा वृतांत का इतिहास एव हिंदी में यात्रा लेखन घुमक्कडी इंसानी फितरत, जन्मजात प्रवृति है और जिज्ञासा उसका नैसर्गिक स्वभाव। दोनों का जब...
-
यात्रा लेखन में इन बातों का रहे ध्यान यात्रा वृतांत क्या है, यात्रा के रोचक, रोमाँचक एवं ज्ञानबर्धक अनुभवों का सांगोपांग वर्णन। जो आपन...