हिंदी में यात्रा लेखन की परम्परा एवं इसका महत्व
घुमक्कडी इंसानी फितरत, जन्मजात प्रवृति है और जिज्ञासा उसका नैसर्गिक स्वभाव। दोनों का जब मिलन हो जाता है , तो एक घुम्मकड , खोजी यात्री , अन्वेषक , यायावर , एक्सप्लोअरर जन्म लेता है। आदि काल से देश व दुनियाँ के हर कौने में ऐसे लोग हुए, जिन्होंने विश्व के चप्प-चप्पे को छान मारा। शायद ही धरती पर कोई क्षेत्र ऐसा हो , जो उसके लिए अगम्य रहा हो। सागर की अतल गहराई , वीहड़ बनों के अगम्य क्षेत्र , रेगिस्तान के विषम विस्तार और बर्फीले प्रदेशों की दुर्गम चोटियाँ और देश-दुनियाँ का कोई क्षेत्र उसकी पहुँच से दूर नहीं। इन स्थलों के प्राकृतिक सौंदर्य , भौगोलिक विशेषता , सामाजिक ताना-बाना , सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का अनुभव , इनका सांगोपांग वर्णन तो यात्रा साहित्य का सृजन। इससे पाठकों का ज्ञानबर्धन , मनोरंजन व शिक्षण होता है और साथ ही मानवीय समाज , संभ्यता एवं संस्कृति की विकास यात्रा आगे बढ़ती है। कुछ परिभाषाएं, टिप्पणियाँ – जब उत्साह एवं उल्लास के भाव से यात्रा , सौंदर्यबोध की दृष्टि से प्रकृति-परिवेश को निहारते व हद्यंगम करते हैं , एक जिज्ञासु की दृष्टि से समाज का अवलोकन और उसक