गुरुवार, 31 जुलाई 2025

जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-3

दर्शन रामलल्ला के

3 जुलाई 2025 को प्रातः 8 बजे अतिथि गृह से बाहर निकलकर गेट पर ही एक एक कैफिटेरिया में सुबह का नाश्ता करते हैं और थोडा पैदल चल कर बाहर मुख्य मार्ग पर आते हैं, जिसे घनौरा वाइपास कहा जाता है। यहाँ सुदर्शन हॉटल के पास ऑटो में चढ़ते हैं। लगभग आधा घंटा में हम अयोध्या धाम के समीप थे। रास्ते में लगभग एक किमी पहले साज-सज्जा युक्त सड़कों के दृश्य हमें किसी विशेष स्थल में प्रवेश का गहरा अहसास दिला रहे थे। हम पूरे मार्ग का वीडियो कैप्चर कर रहे थे, ऑटो के दाईं ओर से वाइक सवार इशारा करता है कि आगे का दृश्य विशेष है। पुल से राममंदिर के पहले दर्शन होते हैं। पुल से नीचे उतर कर ऑटो सड़क के अंतिम छोर पर हमें उतारता है। सुरक्षा कारण व ट्रैफिक सुविधा के चलते पुलिस इससे आगे नहीं जाने दे रही थी।

अतः लगभग 10-15 मिनट चल कर हम मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचते हैं।


अंदर प्रवेश करते ही बहुत बड़े विश्रामकक्ष के दर्शन होते हैं। यहाँ सीलिंग से जैसे हेलीकॉप्टर के बड़े-बड़े पंखे लटके हुए थे। साइड में शीतल जल की व्यवस्था थी। साथ ही स्त्री-पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रसाधन की बेहतरीन सुविधा थी। 15-20 मिनट में बाहर से आए थके-हारे दर्शनार्थी तरोताजा होकर दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे। मंदिर के बाहर का यह प्रयोग हमें बहुत अच्छा लगा। लगा कि क्या अच्छा होता कि हर मंदिर व तीर्थ स्थल में दर्शन से पूर्व तीर्थयात्रियों की ऐसी स्वागत-विश्राम व्यवस्था हो।

यहाँ से बाहर निकलकर हम आगे बढ़ते हैं। बैरेक के बीच बने मार्ग से, नीचे दरियाँ बिछी थी। कुछ हिस्सा सीमेंट का होने के चलते बहुत तप रहा था। सो हियादत है कि कोमल चर्म बाले तीर्थयात्री गर्मी के मौसम में पतली जुराब अवश्य पहनें, ताकि गर्मी के अनावश्यक ताप से बच सके। हालाँकि आगे दरियाँ बिछी हैं औऱ अंतिम पड़ाव में तो जल की भी व्यवस्था है।


रास्ते में पीपल के विशाल पेड़ को पार कर सुरक्षा गेट से प्रवेश करते हैं। सुरक्षा निरीक्षण के बाद बाहर एक भव्य परिसर में प्रवेश होते हैं, जिसमें भव्य भवन मंदिर का ही प्रतिरुप जैसा दिखता है, जिसके पहली नज़र में राम मंदिर के प्रवेश द्वार होने का भ्रम हुआ। और हम उसी रुप में इसकी फोटो व वीडियो भी लेते रहे।

लेकिन बाद में पता चला की यह तो क्लॉक रुम तथा विश्राम की व्यवस्था है। यहाँ जुत्ते-चप्पल के साथ बेग, बटुआ व मोबाइल पेन सब सामान जमा किया जाता है। फिर इनको ड्राअर में बंद कर ताला लगाया जाता है और चाबी दर्शनार्थी को दी जाती है, बापिसी में इसी के आधार पर उनका सामान बापिस होता है।

अगले कुछ सौ मीटर के बाद हम मंदिर में प्रवेश करते हैं। रास्ते में जल की उचित व्यवस्था थी, जिसमें पैर धुल जाते हैं और मस्तिष्क पर भी इसका शीतल प्रभाव बहुत राहत देता है। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए परकोटे पर गरुढ़, हनुमानजी व द्वारपाल के दर्शन होते हैं। मुख्य मंदिर भवन के प्रवेश द्वार पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्ण है, जिनकी सूक्ष्म नक्काशी देखते ही बनती है। यहीं कौने में एक स्थान पर बैठ कर हवा के झौंके का आनन्द लेते हैं और कुछ मिनट बैठकर ध्यान करते हैं।

फिर उचित मनोभूमि के साथ मंदिर में प्रवेश करते हैं। रामलल्ला के चिरप्रतिक्षित दर्शन के हम साक्षी होने जा रहे थे। सामने रामलल्ला की भव्य प्रतिमा सज्जी थी। राह में खम्बों व ऊपर छत पर की गई नक्काशी भी देखते ही बन रही थी। सामने रामल्ला के दर्शन कर दर्शनार्थी भावविभोर हो रहे थे। अपनी भी चिरप्रतिक्षित इच्छा आज पूर्ण हो रही थी। यहाँ के दिव्य परिवेश में स्वयं को डूबा हुआ अनुभव कर रहे थे। बाहर निकलने पर एक कौने में कुछ पल शांत ध्यान में बैठते हैं, हवा के झौंके को अनुभव करते हैं, जैसे की तीर्थ परिसर की दैवीय कृपा इनके रुप में सभी के ऊपर बरस रही हो। हम भी अपने भावों के सागर में गोते लगाते रहे और फिर सुरक्षा कर्मियों की आबाज़ सुनकर जागते हैं और उठकर आगे बढ़ते हैं।

बाहर निकलते हुए रास्ते में ही प्रसाद को पाते हैं। दूसरे रुट से परिक्रमा करते हुए नीचे बाहर निकलते हैं। रास्ते में प्राचीन बरगद के पेड़ में बंदरों के परिवार के खेलते, झूमते व आपस में क्रीड़ा विनोद के दृश्य देख ऐसे लग रहा था कि जैसे रामराज्य में वानर अपने अधिपति के शासन में निश्चिंत, निर्द्वन्द व मस्त-मगन विचरण कर रहे हों। थोड़ा आगे क्लॉक रूम के पीछे बड़े-2 एसी कक्ष पड़ते हैं, जहाँ दर्शन कर बाहर लौट रहे तीर्थयात्री विश्राम कर रहे थे।

हम भी वहाँ कुछ मिनट विश्राम करते हैं और फिर क्लॉक रुम से सामान लेकर फर्श पर बैठ जाते हैं, जहाँ ताजी हवा के ऐसे झौंके आ रहे थे कि अंदर के एसी इसके सामने फेल थे। यहाँ चारों ओर का दृश्य देखने लायक था। क्या बच्चे, क्या बुढ़े, क्या महिलाएं, क्या प्रौढ़ सब फर्श पर लेटकर धन्य अनुभव कर रहे थे। हवा का झौंका प्राकृतिक एसी का काम कर रहा था। ऊपर छत की ओर वानर सेना अपनी उछल-कूद के साथ जैसे उत्सव मना रही थी।

यहाँ के बंदर परिसर में कई स्थानों पर मिले। लेकिन इनकी प्रकृति एकदम उलग दिखी। शांत, सौम्य व स्वयं में मस्त-मग्न। यहाँ आधा घंटा बैठने के बाद बाहर आते हैं। पियाउ की उचित व्यवस्था परिसर में थी। जल पीकर बाहर शार्टकट से बाहर गेट तक आते हैं, जहाँ सीता रसोई में खिचड़ी प्रसाद बंट रहा था। स्थानीय महिलाएं ही इसको परोस रही थी।


इस तरह हमारा राम मंदिर का दर्शन पूरा होता है और कहीं गहरे अंतरात्मा को छू जाता है।

सैंकड़ों वर्षों के वनवास के बाद जिस तरह से रामलल्ला की प्राण प्रतिष्ठा होती है, यह भावुक करने वाला प्रकरण है। हालाँकि अभी मंदिर का निर्माण कार्य चल ही रहा है, लेकिन जितना हो चुका है, वह स्वयं में अभूतपूर्व है, जिसे मानवीय नहीं दैवीय संकल्प का प्रतीक माना जा सकता है। इसे किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष तक सीमित न कर पीढ़ियों के त्याग-बलिदान व राष्ट्र के संम्वेत संकल्प का मूर्त रुप माना जा सकता है। हाँ इसके माध्यम सनातन संस्कृति एवं इसकी आध्यात्मिक विरासत के प्रति संवेदनशील सुपात्र व्यक्ति बने हैं, जो युग परिवर्तन के लिए उदयत महाकाल की चेतना से संवाहक बनते हैं और इस दैवीय कार्य को सम्पन्न किए हैं, जिसके साथ नए युग के सुत्रपात का शंखनाद देखा जा सकता है। कोई भी सनातन धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति यहाँ पधार कर इसे अनुभव कर सकता है और यहाँ की तीर्थ चेतना का स्पर्श पाकर रुपांतरित हुए बिना नहीं 

जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-2

 

लखनऊ से अयोध्या और अवध विश्वविद्यालय कैंपस


लखनऊ से अयोध्या तक का आगे का सफर सावरमती एक्सप्रेस से पूरा होता है। ट्रेन रात को 1 बजे थी, सो हमारे पास तीन घंटे स्टेशन पर बिताने की चुनौती थी। जिस स्टेशन में उतरे, उसी के वातानुकूलित (एसी) विश्राम कक्ष में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पहली मंजिल पर पहुँचते हैं, रजिस्टर में अपना नाम पता व ट्रैन का पीएनआर आदि दर्ज कर विश्राम कक्ष में बैठते हैं। इसी बीच डॉ. दिलीपजी अपनी खोजवीन कर चुके थे। पता चला कि हमारी ट्रेन पास के बड़े या मुख्य स्टेशन के प्लेटफॉर्म से चलेगी और वहाँ रुकने की ओर वेहतर व्यवस्था भी है। सो हम इस भवन से बाहर निकल दूसरे स्टेशन में प्रवेश करते हैं।

विश्राम कक्ष में पहुँचने पर देखते हैं कि यहाँ एसी के साथ सोफा युक्त बैठने की व्यवस्था थी। 20 रुपए प्रति घँटा प्रति व्यक्ति के हिसाब से शुल्क लिया जा रहा था। चाय नाश्ते की सारी सुविधाएं भी यहाँ उपलब्ध थी। मोबाइल चार्जिंग की तो विशेष व्यवस्था थी, कितने सारे प्वाइंट्स सामने दीवार पर टंगे थे। चाय-कॉफी के साथ वाशरुम टॉयलेट की उचित सुविधा थी तथा सबकुछ चकाचक साफ था। बाहर की गर्मी में राहत एक बड़ी बात थी। हालाँकि लेटने की सुविधा नहीं थी, लेकिन भीड़ कम होने पर कमर सीधी कर सकते थे। और कई लोग तो जैसे चादर तान कर खर्राटे भर रहे थे। हालाँकि भीड़ बढ़ने पर उनको जगा दिया जा रहा था

रात को 1 बजे विश्राम गृह से बाहर निकलते हैं। वहाँ रहते कुछ तो सफर की थकान व नींद की कामचलाउ भरपाई हो गई थी, हालांकि नींद हॉवी थी। रात 1.30 बजे रेल चल पड़ती है, एसी ट्रेन में ठंड ठीक-ठाक लग रही थी, सो टोपा निकालकर व चादर तानकर राहत की सांस लेते हैं। अगले दो-अढ़ाई घंटे कैसे नींद में बीते, पता ही नहीं चला। प्रातः 4 बजे अयोध्या कैंट पर रेल खड़ी होती है।

स्टेशन पर उतरते ही तीर्थक्षेत्र अयोध्या धाम को भाव निवेदन करते हैं। स्टेशन से बाहर निकलकर चाय की टपरी पर कुल्हड़ चाय का आनन्द लेते हैं।


सुबह की ठंड में यह एक राहत देने वाला व तरोताजा करने वाला अनुभव था। साथ में फैन के साथ कुछ पेट-पूजा की भी कामचलाउ व्वस्था हो रही थी। इतनी देर में प्रो. अनुराग पहुंच चुके थे, वे अपने वाहन में यूनिवर्सिटी के गैस्ट हाउस तक छोड़ते हैं। मैनेजमेंट स्कूल के एकांतिक परिसर में गैंदा लाल दीक्षित वीआईपी अतिथि गृह बना हुआ है, जो विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय का भी निवास स्थान है। इस एकांत शांत लोकेशन के आसपास मोर के बोलने की आवाज़ें आ रही थी, ऐसा लग रहा था कि जैसे ये प्रातः हमारे आगमन का स्वागत गीत गा रहे हों।

प्रबन्धन स्कूल के इसी परिसर में पर्यटन, खेल, इंजीनियरिंग कालेज भी मौजूद हैं। कैंपस के अंदर ही कई हॉस्टल भी हैं, जो मुख्य मार्ग तक जोड़ते कैपस के अंदर विराजमान लिंक रोड़ के दोनों ओर व्यवस्थित हैं। लिंक मार्ग की चौड़ी सड़क प्राकृतिक सुषमा से भरे परिवेश से होकर गुजरती है और यात्रियों के लिए एक सुखद अहसास दिलाती है। प्रातः-सांय टहलने के लिए भी यह मार्ग हमें आदर्श लगा। अतिथि घर के आगे पता चला कि 500 बीघा और भूमि है, जहाँ अवध विश्वविद्यालय परिसर का विस्तार होना है। अवध विश्वविद्याल का मुख्य कैंपस लगभग 3 किमी दक्षिण की ओर है, जहाँ क्रांफ्रेंस होनी थी।

अतिथि गृह पहुँचकर स्नान के बाद तरोताजा होकर विश्राम करते हैं। रास्ते भर की अधूरी नींद व थकान के चलते, नींद कुछ ऐसे गहरी आती है कि कुछ सुध-बुध नहीं रहती और चित्र-विचित्र स्वप्नों के साथ नींद पूरा होती है। जब आँख खुलती है, तो सुबह के दस बज चुके थे। क्रांफ्रेस कल 4 जुलाई को प्रातः 8-9 बजे से थी। सो आज का दिन शेष था, जो राममंदिर दर्शन व अय़ोध्या धाम के अन्य तीर्थों के तीर्थाटन के लिए सुरक्षित था। (भाग-3 में पठनीय)

अवध विश्वविद्यालय में AEDP पर क्रांफ्रेंस प्रतिभागिता

4 जुलाई को प्रातः तैयार होकर, 8 बजे वाहन से अवध विवि मुख्य कैंपस पहुंचते हैं। विश्वविद्यालय का कैंपस पहली ही नज़र में अपनी भव्य उपस्थिति के साथ चित्त को आल्हादित करता है। काफी पुराने वृक्षों के बीच इसके सुंदर भवनों का संयोजन किसी भी प्रकृति प्रेमी को गहरा सुकून देने के लिए पर्याप्त है।

कैंपस में सजे पांडालों में पंजीयन होता है और फिर लान में सजे दूसरे पांडाल में नाश्ता, यहीं दोपहर का लंच भी रहा। बीच-बीच में जलपान भी चलता रहा। यहाँ पर खान-पान की उमदा व्यवस्था काविले तारीफ लगी।

इस क्रांफ्रेंस में सेंट्रल जोन अर्थात मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड के उच्च शिक्षण संस्थानों के शैक्षणिक प्रतिनिधि आए थे। लगभग 500 प्रतिभागियों एवं विवि के दर्शकों के साथ हॉल खचाखच भरा हुआ था। आयोजन स्वामी विवेकानन्द सभागर में सम्पन्न होता है और संयोग से आज स्वामीजी की पुण्य तिथि (4 जुलाई) भी थी।

ठीक 10 बजे कार्यक्रम शुरु होता है। यूजीसी के पूर्व चेयरमैन एम. जगदीशजी इसकी केंद्रिय भूमिका में थे। यूजीसी के ही ज्वांइंट सचिव अविचल कपूर, अंडर सचिव मीना मेनन भी उपस्थित थे, जिनसे संक्षिप्त मुलाकात का बीच में अवसर मिलता है। दिन भर विशेषज्ञों के सत्र चलते रहे, जिनमें कई विषय विशेषज्ञ एवं कुलपति स्तर के शैक्षणिक अधिकारी थे। प्रश्नोत्तरि का क्रम एम.जगदीशजी ही कुशलतापूर्वक संभालते रहे।

समाप्न समारोह में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री और शिक्षा मंत्री भी उपस्थित रहे। यूजीसी के सचिव डॉ. मनीष जोशीजी भी इस सत्र में अपने उद्बोधन के साथ मंत्रियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया। शेष विशेषज्ञों का जमाबड़ा हर सत्र में प्रतिभागियों को अपने ज्ञान व अनुभवों से प्रकाशित करता रहा। और दर्शकों ने भी पर्याप्त प्रश्न पूछे, जिससे पूरी क्राँफ्रेंस इंटरएक्टिव मोड में रही, जिसे ज्ञान के आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

कांफ्रेस का उद्देश्य एईडीपी के अर्थ, प्रयोजन, आवश्यकता व महत्व को समझाना था और स्नातक स्तर पर इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना था। जिससे उद्योग से शैक्षणिक संस्थान सीधे जुड़कर छात्र-छात्राओं को रोजगार से अबसर सुनिश्चित करवा सके। एप्रेंटसशिप के दौरान भी इसमें छात्र-छात्राओं के लिए समुचित अनुदान की व्यवस्था है, इस रुप में इसे ओन जॉब ट्रेनिंग (OJT) भी कह सकते हैं। एम जगदीशजी से ब्रेक में व्यक्तिगत संवाद भी संभव हुआ, जिसमें अपनी एईडीपी और एनईपी-2020 से जुड़े कुछ अहं प्रश्नों पर चर्चा हुई।

क्रांफ्रेंस से हम इस आशय के साथ बापिस आए कि अपने विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर एईडीपी पाठ्यक्रमों को लागू करना है। जिस पर कार्य विश्वविद्यालय के नेतृत्व में कार्य चल रहा है और आशानुकूल तीव्रता के साथ आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2026 के अकादमिक सत्र से स्नातक स्तर पर ऐसे पाठ्यक्रम के लागू होने की संभावना है।

क्रांफ्रेस समाप्त होने पर अपने गेस्ट हाउस से समान समेटकर अयोध्या धाम स्टेशन पहुँचते हैं। यहाँ का स्टेशन अयोध्या जंक्शन से एकदम दूसरी दिशा में और राममंदिर के बहुत समीप है। स्टेशन में भी राममंदिर की प्रतिकृति बनी हुई है और अंदर प्रवेश करने पर गिलहरी की मूर्ति ध्यान आकर्षित करती है।

पूरा स्टेशन साफ-सूथरा और एसी सुविधा से लैंस है, जहाँ के बडे-बड़े हाल में यात्री बहुत आराम से विश्राम कर रहे थे। यहीं पर रेल्वे स्टेशन के आहार केंद्र IRTC में रात का भोजन करते हैं। रेट 70, 120 से लेकर 150 रुपए तक के थे। यहाँ अपनी भूख के अनुकूल भोजन लेकर बाहर एक बेंच पर कुछ विश्राम करते हैं। साथ ही मोबाइल चार्ज करते हैं और ट्रेन का समय होने पर लिफ्ट से ऊपर चढ़कर फिर नीचे उतरते हैं औऱ दो नम्बर प्लेटफॉर्म पर अपनी रेल का इंतजार करते है।

ट्रेन रात 8.20 बजे स्टेशन पर आती है, जो तीन घंटे लेट थी। रेल चुनिंदा स्टेशनों से होते हुए हरिद्वार पहुँचती है। रेल हर स्टेशन पर काफी समय रुक कर आगे बढ़ती है और हरिद्वार पहुँचते-पहुँचते छः घंटे लेट होती है। इसमें क्या स्पेशल था, ये समझ नहीं आया। पानी की भी उचित व्यवस्था डिब्बे में नहीं थी, हालाँकि फोन करने पर तत्काल अगले स्टेशन पर समाधान मिला। इसमें सरकार को दोष नहीं दे सकते,  रेल में बैठे कर्मचारियों की लापरवाही इसमें अधिक दिख रही थी।

लेट होने के कारण हम प्रातः छः बजे की बजाए 12 बजे हरिद्वार पहुँचते हैं और 1 बजे तक अपने कैंपस में पदार्पण करते हैं। इस तरह 15 घंटे के लम्बे सफर के साथ हमारी पहली अयोध्या धाम की यात्रा पूरी होती है।


जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-1

                                           मेरी पहली वंदे भारत एक्सप्रेस रेल यात्रा

हरिद्वार स्टेशन पर वंदे भारत एक्सप्रेस का आगमन

पहली बार अयोध्या जाने का अवसर बन रहा था, वह भी एक नई रेल में। वहाना एक काँफ्रेंस का था, लेकिन अहसास हो रहा था कि जैसे अयोध्या धाम से राम लल्ला, भगवान रघुनाथ का बुलावा आया हो। अयोध्या धाम के साथ रामलल्ला के चिरप्रतिक्षित दर्शन करेंगे। साथ में जा रहे थे डॉ. दिलिप सराह, जिनके साथ यात्रा का संयोग मई माह की केंद्रीय संस्कृत विवि, देवप्रयाग क्रांफ्रेंस में भी बना था। टिकट से लेकर रुकने आदि की व्यवस्था में इनका सहयोग काविले ताऱीफ रहा।

वन्दे भारत एक्सप्रेस, मालूम हो कि प्रधानमंत्री मोदीजी की एक महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है और इसे एक सफल प्रयोग कह सकते हैं। मेक इन इंडिया के तहत यह लगभग पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बनी रेल हैं। यह अपनी हाइ-स्पीड़, स्वच्छता व किफायती दरों पर सुविधाओं के लिए जानी जाती है। बाहर से देखने पर कुछ-कुछ बुलेट ट्रेन का फील दे जाती है। एयरोडाइनमिक के सिद्धान्तों पर इसकी संरचना हुई है, जिससे यह हवा के प्रतिरोध को सक्षमता के साथ चीरते हुए गति पकड़ने व अपने मंजिल की ओर गतिशील होने में सक्षम है।

वंदे भारत एक्सप्रेस में डब्बे के अंदर का नज़ारा

इसमें मेट्रो की तरह स्वचालित दरबाजे हैं, जिनसे प्रवेश होता है, जो स्वतः ही यात्रियों के अंदर-बाहर निकलने पर खुल जाते हैं। अंदर जाने पर एकदम हवाई जहाज का लुक दिखता है। बस इसमें ऊपर लगेज बॉक्स खुले रहते हैं। सीट आरामदायक थी, सामने सीट के पीछे जालीदार बक्से में हल्का सामान रख सकते थे। इसमें लगी पट्टी फोल्ड होकर टेबल का काम कर रही थी। एक अखबार भी रो में पढ़ने के लिए उपलब्ध था। पानी की बोटल को रखने के लिए नीचे गोल खाँचा बना हुआ था और मोबाइल चार्ज के लिए हर सीट के नीचे चार्जिंग प्वाइंट था।

हवाई यात्रा का फील देती बंदे भारत एक्सप्रेस में एयर हॉस्टेस की जगह पुरुष हॉस्ट थे, जो यात्रियों की खाने-पीने की सुविधाओं का पूरा ध्यान रख रहे थे। पूरी मुस्तैदी से मिल रहे निर्देशों का पालन कर रहे थे। देहरादून से चलने के कारण स्वाभाविक रुप से उत्तराखण्ड के परिधान व टोपी को पहने हुए थे। ज्वालापुर को पार करते ही आगे के मार्ग में हरे-भरे खेत-खलिहान, गन्ने के नन्हें पौध, पोपलर के वृक्षों की कतारें स्वागत करती रहीं। कहीं-कहीं गाँव व कस्वों के दर्शन होते रहे और साथ छोटे पुल मिलते रहे।

इनके बीच विशेष ध्यान आकर्षित करता है एक विशाल नदी पर बना पुल, जो पूछने पर पता चला कि हम गंगा नदीं के ऊपर से गुजर रहे हैं। यह बालावाली का क्षेत्र था, जिसे उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश का सीमा विभाजक (बोर्डर रेखा) पुल माना जाता है। बरसाती जल में उफनती, वृहद जलराशि से समृद्ध गंगा नदी के विस्तार को हम यथासंभव कैमरे में केप्चर करते रहे, जिसकी एक झलक आप नीचे वीडियो में देख सकते हैं।

रास्ते में सफर के लगभग आधा-पौन घंटा बाद ही चाय-नाश्ता सर्व किया जाता है। एक प्लेट में चॉक्लेटी फ्लेवर का पॉपकार्न पैकेट, एक छोटा हल्दीराम का नमकीन पैकेट और गर्मागर्म कचौरी, साथ में टोमेटो सोस और कॉफी पाउच, इस किट में थे। रेलनीर पानी की बोटल भी रास्ते में सभी यात्रियों को थमा दी गई थी। इस तरह यात्रा की शुरुआत नाश्ते के एक बेहतरीन अनुभव के साथ होती है। परिचारक चॉक्लेट, मैगी आदि लेकर घूम रहे थे। साथ ही चाय व कोल्ड ड्रिंक्स भी। हमें लगा शायद सब मुफ्त में बाँटा जा रहा हो, लेकिन चाय का ऑर्डर देने के बाद पता चला कि इनकी कीमत बसूली जा रही थी। इस तरह सफर के साथ नाश्ता और रात का भोजन ही फ्री में था, जो कि टिकट बुकिंग के समय दिए विकल्प के चयन के आधार पर तय था। जिनका टिकट बुकिंग के दौरान यह ऑपशन छूट गया हो, वे उचित दाम चुका कर नाश्ता, डिन्नर आदि कर सकते हैं।

नई ट्रेन के नए अनुभव के साथ सफर आगे बढ़ता जा रहा था। दोनों ओर गाँव, खेत-बगीचों के वही हरे-भरे दृश्य स्वागत कर रहे थे। कहीं बरसात के जल से बने तालाब भी दिख रहे थे। जब रेल थोड़ा धीरे होती तो, यथा संभव बाहर के मनोरम दृश्यों को कैप्चर करने का प्रय़ास कर रहे थे। इस तरह शाम का अंधेरा छा रहा था और लो रात का भोजन भी आ गया। इसमें दो रोटी, पुलाव, दाल, पनीर सब्जी, सलाद व रसगुल्ला आदि थे। कुल मिलाकर भोजन पेटभराउ था, न अधिक न कम। साथ ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी।

रात का भोजन (Dinner)

वंदे भारत रेल की साफ-सफाई व्यवस्था काविले तारीफ लगी। प्रसाधन सुविधा में हवाई जहाज की तरह बायोवैक्यूम शौचालय बनाए गए हैं, जिनके साथ साफ-सफाई, की उचित व्यवस्था सुनिश्चित हो रही थी। जल और सोप सोल्यूशन की उचित व्यवस्था थी, जो प्रायः दूसरी रेलों में बहुत खस्ता हालत में रहते हैं। बाकि यात्रियों की भी जिम्मेदारी बनती है, कि सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाओं का सावधानी व जिम्मेदारी से उपयोग करते हुए इन्हें दुरुस्त रखने में मदद करें। यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक डिब्बे में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

वंदे भारत रेल में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है, जो आने वाले स्टेशनों की जानकारी देता है। देहरादून से लखनऊ जंक्शन पर चलने वाली वंदे भारत रेल रास्ते में चार स्टेशन पर ही रुकती है – हरिद्वार, नजीबाबाद, मुरादाबाद और बरैली। बरैली और लखनऊ की राह में शाहजहाँपुर, हरदोई जैसे स्टेशन आते हैं, लेकिन रेल यहाँ नहीं रुकती। देहरादून से 2:25 PM पर छूटने वाली वंदे भारत का रास्ते में पहुँचने व छूटने का मानक समय कुछ इस तरह से है – हरिद्वार (3:26-3:31 PM), नजीबाबाद जन्कशन (4:17-4:19  PM) मुरादाबाद जन्कशन (5:40-5:45 PM), बरैली जन्कशन (7:00-7:02) और लखनऊ जन्कशन (10:40 PM)। इस तरह देहरादून से लखनऊ की कुल दूरी 544 किमी रहती है, जबकि हरिद्वार से कुल 492 किमी का रेल सफर तय कर हम मंजिल पर पहुँचते हैं।  

हरे भरे खेत बागानों से गुजरता रेल सफर

इस तरह हमारी वंदे भारत एक्सप्रेस औसतन 70 किमी प्रति घंटे के साथ मंजिल पर पहुँचती है। जबकि दावा किया जाता है कि यह ट्रेन 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ यात्रा कर सकती है। जो भी हो इस रेल में यात्रा बहुत ही स्थिर व सुखद रही, कहीं झटकने लगने की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा। फिर बड़े-बड़े सीसों की खिड़कियों से बाहर के नजारे दिन के उजाले में यात्रियों को मश्गूल रखते हैं और रात की टिमटिमाती रोशनियाँ भी एक नया अनुभव देती हैं।

इस तरह हम सात घंटे के सफर के बाद रात साढ़े दस बजे लखनऊ पहुँचते हैं। नई ट्रेन में यह यात्रा हमारे जीवन के सबसे सुखद और यादगार अनुभवों में से एक रही। हम अपने अनुभव के आधार पर यात्रियों को भारतीय रेल्वे की वंदे भारत सेवा में एक बार सफर का सुझाव दे सकते हैं, जो आपके जीवन का एक वेहतरीन अनुभव सावित होगा तथा किसी भी रुप में घाटे का सौदा नहीं लगेगा।
बाहर से वंदे भारत एकस्प्रेेस का नज़ारा

चुनींदी पोस्ट

Travelogue - In the lap of Surkunda Hill via Dhanaulti-Dehradun

A blessed trip for the seekers of Himalayan touch Surkunda is the highest peak in Garwal Himalayan region near Mussoorie Hills wi...