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गुरुवार, 31 जुलाई 2025

जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-2

 

लखनऊ से अयोध्या और अवध विश्वविद्यालय कैंपस


लखनऊ से अयोध्या तक का आगे का सफर सावरमती एक्सप्रेस से पूरा होता है। ट्रेन रात को 1 बजे थी, सो हमारे पास तीन घंटे स्टेशन पर बिताने की चुनौती थी। जिस स्टेशन में उतरे, उसी के वातानुकूलित (एसी) विश्राम कक्ष में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पहली मंजिल पर पहुँचते हैं, रजिस्टर में अपना नाम पता व ट्रैन का पीएनआर आदि दर्ज कर विश्राम कक्ष में बैठते हैं। इसी बीच डॉ. दिलीपजी अपनी खोजवीन कर चुके थे। पता चला कि हमारी ट्रेन पास के बड़े या मुख्य स्टेशन के प्लेटफॉर्म से चलेगी और वहाँ रुकने की ओर वेहतर व्यवस्था भी है। सो हम इस भवन से बाहर निकल दूसरे स्टेशन में प्रवेश करते हैं।

विश्राम कक्ष में पहुँचने पर देखते हैं कि यहाँ एसी के साथ सोफा युक्त बैठने की व्यवस्था थी। 20 रुपए प्रति घँटा प्रति व्यक्ति के हिसाब से शुल्क लिया जा रहा था। चाय नाश्ते की सारी सुविधाएं भी यहाँ उपलब्ध थी। मोबाइल चार्जिंग की तो विशेष व्यवस्था थी, कितने सारे प्वाइंट्स सामने दीवार पर टंगे थे। चाय-कॉफी के साथ वाशरुम टॉयलेट की उचित सुविधा थी तथा सबकुछ चकाचक साफ था। बाहर की गर्मी में राहत एक बड़ी बात थी। हालाँकि लेटने की सुविधा नहीं थी, लेकिन भीड़ कम होने पर कमर सीधी कर सकते थे। और कई लोग तो जैसे चादर तान कर खर्राटे भर रहे थे। हालाँकि भीड़ बढ़ने पर उनको जगा दिया जा रहा था

रात को 1 बजे विश्राम गृह से बाहर निकलते हैं। वहाँ रहते कुछ तो सफर की थकान व नींद की कामचलाउ भरपाई हो गई थी, हालांकि नींद हॉवी थी। रात 1.30 बजे रेल चल पड़ती है, एसी ट्रेन में ठंड ठीक-ठाक लग रही थी, सो टोपा निकालकर व चादर तानकर राहत की सांस लेते हैं। अगले दो-अढ़ाई घंटे कैसे नींद में बीते, पता ही नहीं चला। प्रातः 4 बजे अयोध्या कैंट पर रेल खड़ी होती है।

स्टेशन पर उतरते ही तीर्थक्षेत्र अयोध्या धाम को भाव निवेदन करते हैं। स्टेशन से बाहर निकलकर चाय की टपरी पर कुल्हड़ चाय का आनन्द लेते हैं।


सुबह की ठंड में यह एक राहत देने वाला व तरोताजा करने वाला अनुभव था। साथ में फैन के साथ कुछ पेट-पूजा की भी कामचलाउ व्वस्था हो रही थी। इतनी देर में प्रो. अनुराग पहुंच चुके थे, वे अपने वाहन में यूनिवर्सिटी के गैस्ट हाउस तक छोड़ते हैं। मैनेजमेंट स्कूल के एकांतिक परिसर में गैंदा लाल दीक्षित वीआईपी अतिथि गृह बना हुआ है, जो विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय का भी निवास स्थान है। इस एकांत शांत लोकेशन के आसपास मोर के बोलने की आवाज़ें आ रही थी, ऐसा लग रहा था कि जैसे ये प्रातः हमारे आगमन का स्वागत गीत गा रहे हों।

प्रबन्धन स्कूल के इसी परिसर में पर्यटन, खेल, इंजीनियरिंग कालेज भी मौजूद हैं। कैंपस के अंदर ही कई हॉस्टल भी हैं, जो मुख्य मार्ग तक जोड़ते कैपस के अंदर विराजमान लिंक रोड़ के दोनों ओर व्यवस्थित हैं। लिंक मार्ग की चौड़ी सड़क प्राकृतिक सुषमा से भरे परिवेश से होकर गुजरती है और यात्रियों के लिए एक सुखद अहसास दिलाती है। प्रातः-सांय टहलने के लिए भी यह मार्ग हमें आदर्श लगा। अतिथि घर के आगे पता चला कि 500 बीघा और भूमि है, जहाँ अवध विश्वविद्यालय परिसर का विस्तार होना है। अवध विश्वविद्याल का मुख्य कैंपस लगभग 3 किमी दक्षिण की ओर है, जहाँ क्रांफ्रेंस होनी थी।

अतिथि गृह पहुँचकर स्नान के बाद तरोताजा होकर विश्राम करते हैं। रास्ते भर की अधूरी नींद व थकान के चलते, नींद कुछ ऐसे गहरी आती है कि कुछ सुध-बुध नहीं रहती और चित्र-विचित्र स्वप्नों के साथ नींद पूरा होती है। जब आँख खुलती है, तो सुबह के दस बज चुके थे। क्रांफ्रेस कल 4 जुलाई को प्रातः 8-9 बजे से थी। सो आज का दिन शेष था, जो राममंदिर दर्शन व अय़ोध्या धाम के अन्य तीर्थों के तीर्थाटन के लिए सुरक्षित था। (भाग-3 में पठनीय)

अवध विश्वविद्यालय में AEDP पर क्रांफ्रेंस प्रतिभागिता

4 जुलाई को प्रातः तैयार होकर, 8 बजे वाहन से अवध विवि मुख्य कैंपस पहुंचते हैं। विश्वविद्यालय का कैंपस पहली ही नज़र में अपनी भव्य उपस्थिति के साथ चित्त को आल्हादित करता है। काफी पुराने वृक्षों के बीच इसके सुंदर भवनों का संयोजन किसी भी प्रकृति प्रेमी को गहरा सुकून देने के लिए पर्याप्त है।

कैंपस में सजे पांडालों में पंजीयन होता है और फिर लान में सजे दूसरे पांडाल में नाश्ता, यहीं दोपहर का लंच भी रहा। बीच-बीच में जलपान भी चलता रहा। यहाँ पर खान-पान की उमदा व्यवस्था काविले तारीफ लगी।

इस क्रांफ्रेंस में सेंट्रल जोन अर्थात मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड के उच्च शिक्षण संस्थानों के शैक्षणिक प्रतिनिधि आए थे। लगभग 500 प्रतिभागियों एवं विवि के दर्शकों के साथ हॉल खचाखच भरा हुआ था। आयोजन स्वामी विवेकानन्द सभागर में सम्पन्न होता है और संयोग से आज स्वामीजी की पुण्य तिथि (4 जुलाई) भी थी।

ठीक 10 बजे कार्यक्रम शुरु होता है। यूजीसी के पूर्व चेयरमैन एम. जगदीशजी इसकी केंद्रिय भूमिका में थे। यूजीसी के ही ज्वांइंट सचिव अविचल कपूर, अंडर सचिव मीना मेनन भी उपस्थित थे, जिनसे संक्षिप्त मुलाकात का बीच में अवसर मिलता है। दिन भर विशेषज्ञों के सत्र चलते रहे, जिनमें कई विषय विशेषज्ञ एवं कुलपति स्तर के शैक्षणिक अधिकारी थे। प्रश्नोत्तरि का क्रम एम.जगदीशजी ही कुशलतापूर्वक संभालते रहे।

समाप्न समारोह में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री और शिक्षा मंत्री भी उपस्थित रहे। यूजीसी के सचिव डॉ. मनीष जोशीजी भी इस सत्र में अपने उद्बोधन के साथ मंत्रियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया। शेष विशेषज्ञों का जमाबड़ा हर सत्र में प्रतिभागियों को अपने ज्ञान व अनुभवों से प्रकाशित करता रहा। और दर्शकों ने भी पर्याप्त प्रश्न पूछे, जिससे पूरी क्राँफ्रेंस इंटरएक्टिव मोड में रही, जिसे ज्ञान के आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

कांफ्रेस का उद्देश्य एईडीपी के अर्थ, प्रयोजन, आवश्यकता व महत्व को समझाना था और स्नातक स्तर पर इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना था। जिससे उद्योग से शैक्षणिक संस्थान सीधे जुड़कर छात्र-छात्राओं को रोजगार से अबसर सुनिश्चित करवा सके। एप्रेंटसशिप के दौरान भी इसमें छात्र-छात्राओं के लिए समुचित अनुदान की व्यवस्था है, इस रुप में इसे ओन जॉब ट्रेनिंग (OJT) भी कह सकते हैं। एम जगदीशजी से ब्रेक में व्यक्तिगत संवाद भी संभव हुआ, जिसमें अपनी एईडीपी और एनईपी-2020 से जुड़े कुछ अहं प्रश्नों पर चर्चा हुई।

क्रांफ्रेंस से हम इस आशय के साथ बापिस आए कि अपने विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर एईडीपी पाठ्यक्रमों को लागू करना है। जिस पर कार्य विश्वविद्यालय के नेतृत्व में कार्य चल रहा है और आशानुकूल तीव्रता के साथ आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2026 के अकादमिक सत्र से स्नातक स्तर पर ऐसे पाठ्यक्रम के लागू होने की संभावना है।

क्रांफ्रेस समाप्त होने पर अपने गेस्ट हाउस से समान समेटकर अयोध्या धाम स्टेशन पहुँचते हैं।


यहाँ का स्टेशन अयोध्या जंक्शन से एकदम दूसरी दिशा में और राममंदिर के बहुत समीप है। स्टेशन में भी राममंदिर की प्रतिकृति बनी हुई है और अंदर प्रवेश करने पर गिलहरी की मूर्ति ध्यान आकर्षित करती है।

पूरा स्टेशन साफ-सूथरा और एसी सुविधा से लैंस है, जहाँ के बडे-बड़े हाल में यात्री बहुत आराम से विश्राम कर रहे थे। यहीं पर रेल्वे स्टेशन के आहार केंद्र IRTC में रात का भोजन करते हैं। रेट 70, 120 से लेकर 150 रुपए तक के थे। यहाँ अपनी भूख के अनुकूल भोजन लेकर बाहर एक बेंच पर कुछ विश्राम करते हैं। साथ ही मोबाइल चार्ज करते हैं और ट्रेन का समय होने पर लिफ्ट से ऊपर चढ़कर फिर नीचे उतरते हैं औऱ दो नम्बर प्लेटफॉर्म पर अपनी रेल का इंतजार करते है।

ट्रेन रात 8.20 बजे स्टेशन पर आती है, जो तीन घंटे लेट थी। रेल चुनिंदा स्टेशनों से होते हुए हरिद्वार पहुँचती है। रेल हर स्टेशन पर काफी समय रुक कर आगे बढ़ती है और हरिद्वार पहुँचते-पहुँचते छः घंटे लेट होती है। इसमें क्या स्पेशल था, ये समझ नहीं आया। पानी की भी उचित व्यवस्था डिब्बे में नहीं थी, हालाँकि फोन करने पर तत्काल अगले स्टेशन पर समाधान मिला। इसमें सरकार को दोष नहीं दे सकते,  रेल में बैठे कर्मचारियों की लापरवाही इसमें अधिक दिख रही थी।

लेट होने के कारण हम प्रातः छः बजे की बजाए 12 बजे हरिद्वार पहुँचते हैं और 1 बजे तक अपने कैंपस में पदार्पण करते हैं। इस तरह 15 घंटे के लम्बे सफर के साथ हमारी पहली अयोध्या धाम की यात्रा पूरी होती है।


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