गुरुवार, 31 जुलाई 2025

जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-1

                                           मेरी पहली वंदे भारत एक्सप्रेस रेल यात्रा

हरिद्वार स्टेशन पर वंदे भारत एक्सप्रेस का आगमन

पहली बार अयोध्या जाने का अवसर बन रहा था, वह भी एक नई रेल में। वहाना एक काँफ्रेंस का था, लेकिन अहसास हो रहा था कि जैसे अयोध्या धाम से राम लल्ला, भगवान रघुनाथ का बुलावा आया हो। अयोध्या धाम के साथ रामलल्ला के चिरप्रतिक्षित दर्शन करेंगे। साथ में जा रहे थे डॉ. दिलिप सराह, जिनके साथ यात्रा का संयोग मई माह की केंद्रीय संस्कृत विवि, देवप्रयाग क्रांफ्रेंस में भी बना था। टिकट से लेकर रुकने आदि की व्यवस्था में इनका सहयोग काविले ताऱीफ रहा।

वन्दे भारत एक्सप्रेस, मालूम हो कि प्रधानमंत्री मोदीजी की एक महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है और इसे एक सफल प्रयोग कह सकते हैं। मेक इन इंडिया के तहत यह लगभग पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बनी रेल हैं। यह अपनी हाइ-स्पीड़, स्वच्छता व किफायती दरों पर सुविधाओं के लिए जानी जाती है। बाहर से देखने पर कुछ-कुछ बुलेट ट्रेन का फील दे जाती है। एयरोडाइनमिक के सिद्धान्तों पर इसकी संरचना हुई है, जिससे यह हवा के प्रतिरोध को सक्षमता के साथ चीरते हुए गति पकड़ने व अपने मंजिल की ओर गतिशील होने में सक्षम है।

वंदे भारत एक्सप्रेस में डब्बे के अंदर का नज़ारा

इसमें मेट्रो की तरह स्वचालित दरबाजे हैं, जिनसे प्रवेश होता है, जो स्वतः ही यात्रियों के अंदर-बाहर निकलने पर खुल जाते हैं। अंदर जाने पर एकदम हवाई जहाज का लुक दिखता है। बस इसमें ऊपर लगेज बॉक्स खुले रहते हैं। सीट आरामदायक थी, सामने सीट के पीछे जालीदार बक्से में हल्का सामान रख सकते थे। इसमें लगी पट्टी फोल्ड होकर टेबल का काम कर रही थी। एक अखबार भी रो में पढ़ने के लिए उपलब्ध था। पानी की बोटल को रखने के लिए नीचे गोल खाँचा बना हुआ था और मोबाइल चार्ज के लिए हर सीट के नीचे चार्जिंग प्वाइंट था।

हवाई यात्रा का फील देती बंदे भारत एक्सप्रेस में एयर हॉस्टेस की जगह पुरुष हॉस्ट थे, जो यात्रियों की खाने-पीने की सुविधाओं का पूरा ध्यान रख रहे थे। पूरी मुस्तैदी से मिल रहे निर्देशों का पालन कर रहे थे। देहरादून से चलने के कारण स्वाभाविक रुप से उत्तराखण्ड के परिधान व टोपी को पहने हुए थे। ज्वालापुर को पार करते ही आगे के मार्ग में हरे-भरे खेत-खलिहान, गन्ने के नन्हें पौध, पोपलर के वृक्षों की कतारें स्वागत करती रहीं। कहीं-कहीं गाँव व कस्वों के दर्शन होते रहे और साथ छोटे पुल मिलते रहे।

इनके बीच विशेष ध्यान आकर्षित करता है एक विशाल नदी पर बना पुल, जो पूछने पर पता चला कि हम गंगा नदीं के ऊपर से गुजर रहे हैं। यह बालावाली का क्षेत्र था, जिसे उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश का सीमा विभाजक (बोर्डर रेखा) पुल माना जाता है। बरसाती जल में उफनती, वृहद जलराशि से समृद्ध गंगा नदी के विस्तार को हम यथासंभव कैमरे में केप्चर करते रहे, जिसकी एक झलक आप नीचे वीडियो में देख सकते हैं।

रास्ते में सफर के लगभग आधा-पौन घंटा बाद ही चाय-नाश्ता सर्व किया जाता है। एक प्लेट में चॉक्लेटी फ्लेवर का पॉपकार्न पैकेट, एक छोटा हल्दीराम का नमकीन पैकेट और गर्मागर्म कचौरी, साथ में टोमेटो सोस और कॉफी पाउच, इस किट में थे। रेलनीर पानी की बोटल भी रास्ते में सभी यात्रियों को थमा दी गई थी। इस तरह यात्रा की शुरुआत नाश्ते के एक बेहतरीन अनुभव के साथ होती है। परिचारक चॉक्लेट, मैगी आदि लेकर घूम रहे थे। साथ ही चाय व कोल्ड ड्रिंक्स भी। हमें लगा शायद सब मुफ्त में बाँटा जा रहा हो, लेकिन चाय का ऑर्डर देने के बाद पता चला कि इनकी कीमत बसूली जा रही थी। इस तरह सफर के साथ नाश्ता और रात का भोजन ही फ्री में था, जो कि टिकट बुकिंग के समय दिए विकल्प के चयन के आधार पर तय था। जिनका टिकट बुकिंग के दौरान यह ऑपशन छूट गया हो, वे उचित दाम चुका कर नाश्ता, डिन्नर आदि कर सकते हैं।

नई ट्रेन के नए अनुभव के साथ सफर आगे बढ़ता जा रहा था। दोनों ओर गाँव, खेत-बगीचों के वही हरे-भरे दृश्य स्वागत कर रहे थे। कहीं बरसात के जल से बने तालाब भी दिख रहे थे। जब रेल थोड़ा धीरे होती तो, यथा संभव बाहर के मनोरम दृश्यों को कैप्चर करने का प्रय़ास कर रहे थे। इस तरह शाम का अंधेरा छा रहा था और लो रात का भोजन भी आ गया। इसमें दो रोटी, पुलाव, दाल, पनीर सब्जी, सलाद व रसगुल्ला आदि थे। कुल मिलाकर भोजन पेटभराउ था, न अधिक न कम। साथ ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी।

रात का भोजन (Dinner)

वंदे भारत रेल की साफ-सफाई व्यवस्था काविले तारीफ लगी। प्रसाधन सुविधा में हवाई जहाज की तरह बायोवैक्यूम शौचालय बनाए गए हैं, जिनके साथ साफ-सफाई, की उचित व्यवस्था सुनिश्चित हो रही थी। जल और सोप सोल्यूशन की उचित व्यवस्था थी, जो प्रायः दूसरी रेलों में बहुत खस्ता हालत में रहते हैं। बाकि यात्रियों की भी जिम्मेदारी बनती है, कि सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाओं का सावधानी व जिम्मेदारी से उपयोग करते हुए इन्हें दुरुस्त रखने में मदद करें। यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक डिब्बे में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

वंदे भारत रेल में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है, जो आने वाले स्टेशनों की जानकारी देता है। देहरादून से लखनऊ जंक्शन पर चलने वाली वंदे भारत रेल रास्ते में चार स्टेशन पर ही रुकती है – हरिद्वार, नजीबाबाद, मुरादाबाद और बरैली। बरैली और लखनऊ की राह में शाहजहाँपुर, हरदोई जैसे स्टेशन आते हैं, लेकिन रेल यहाँ नहीं रुकती। देहरादून से 2:25 PM पर छूटने वाली वंदे भारत का रास्ते में पहुँचने व छूटने का मानक समय कुछ इस तरह से है – हरिद्वार (3:26-3:31 PM), नजीबाबाद जन्कशन (4:17-4:19  PM) मुरादाबाद जन्कशन (5:40-5:45 PM), बरैली जन्कशन (7:00-7:02) और लखनऊ जन्कशन (10:40 PM)। इस तरह देहरादून से लखनऊ की कुल दूरी 544 किमी रहती है, जबकि हरिद्वार से कुल 492 किमी का रेल सफर तय कर हम मंजिल पर पहुँचते हैं।  

हरे भरे खेत बागानों से गुजरता रेल सफर

इस तरह हमारी वंदे भारत एक्सप्रेस औसतन 70 किमी प्रति घंटे के साथ मंजिल पर पहुँचती है। जबकि दावा किया जाता है कि यह ट्रेन 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ यात्रा कर सकती है। जो भी हो इस रेल में यात्रा बहुत ही स्थिर व सुखद रही, कहीं झटकने लगने की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा। फिर बड़े-बड़े सीसों की खिड़कियों से बाहर के नजारे दिन के उजाले में यात्रियों को मश्गूल रखते हैं और रात की टिमटिमाती रोशनियाँ भी एक नया अनुभव देती हैं।

इस तरह हम सात घंटे के सफर के बाद रात साढ़े दस बजे लखनऊ पहुँचते हैं। नई ट्रेन में यह यात्रा हमारे जीवन के सबसे सुखद और यादगार अनुभवों में से एक रही। हम अपने अनुभव के आधार पर यात्रियों को भारतीय रेल्वे की वंदे भारत सेवा में एक बार सफर का सुझाव दे सकते हैं, जो आपके जीवन का एक वेहतरीन अनुभव सावित होगा तथा किसी भी रुप में घाटे का सौदा नहीं लगेगा।
बाहर से वंदे भारत एकस्प्रेेस का नज़ारा

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