भगवान गणेश से जुड़ा प्रेरणा प्रवाह
गणेश उत्सव का दौर चल रहा है, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
से शुरु होने वाला दस दिवसीय यह उत्सव अनन्त चतुर्दशी तक चलता है। कभी महाराष्ट्र
में लोकप्रिय यह उत्सव आज लगभग पूरे देश में फैल चुका है और गणपति बप्पा मोरया के
जयघोष की दिगंतव्यापी गूंज के साथ विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग और प्राँतों की सीमाओं
को पार करते हुए सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का उत्सव बन चुका है।
माँ पार्वती के मानस पुत्र - गणेशजी आदि शक्ति माँ पार्वती के मानस पुत्र
हैं, उनकी संकल्प सृष्टि हैं, जिसका सृजन उन्होंने स्नान के समय द्वारपाल के रुप
में अपनी पहरेदारी के लिए किया था। जब महादेव द्वारा गलती से संघर्ष के दौरान इनका
सर धड़ से अलग हो जाता है, तो वे प्रायश्चित रुप में शिशु हाथी का सर धड़ पर लगाकर
गणेशजी को नया जीवन व रुप देते हैं। और दोनों शिव-शक्ति के वरदान स्वरुप बाल गणेशजी
सभी देव शक्तियों में प्रथम पूज्य बनते हैं। तब से सनातन धर्म में हर मांगलिक
कार्य के प्रारम्भ में गणेशजी के पूजन का क्रम जुड़ता है। हर कार्य के शुभारम्भ को
श्रीगणेश कहना भी इसी पृष्ठभूमि में स्पष्ट होता है।
आध्यात्मिक रुप में गणेश मूलाधार के देवता हैं। मालूम
हो कि मूलाधार मानवीय सूक्ष्म शरीर में पहला चक्र पड़ता है, जिसका जागरण
आध्यात्मिक प्रगति का शुभारम्भ माना जाता है। मूलाधार के देवता के रुप में भगवान गणेशजी
की कृपा से इस चक्र का अर्थात आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है।
तात्विक रुप से भगवान गणेश अचिंत्य, अव्यक्त एवं अनंत हैं, लेकिन
भक्तों के लिए इनका स्थूल स्वरुप प्रत्यक्ष है और प्रेरणा प्रवाह से भरा
हुआ है।
गणेश जी का रुपाकार अन्य देवशक्तियों से देखने में थोड़ा अलग लगता है,
आश्चर्य नहीं कि बच्चे तो गणेशजी को एलीफेंट गोड के नाम से भी पुकारते हैं।
उनकी लम्बी सूंड, सूप से चौड़े कान, बड़ा सा पेट, मूषक वाहन, हाथ में पाश-अंकुश
लिए वरमुद्रा, मोदक प्रिय गणेशजी सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन इसके गूढ़
रहस्य को न समझ पाने के कारण गणेशजी से जुड़े भाव प्रवाह को ह्दयंगम नहीं कर पाते
और इनसे जुड़े आध्यात्मिक लाभ से वंचित रह जाते हैं।
गणेशजी का वाहन मूषक विषयोनमुख चंचल मन का प्रतिनिधि है, जिस पर
सवारी कर गणेशजी उसकी विषय लोलुपता पर अंकुश लगाते हैं। ये साधक को काम, क्रोध,
लोभ, मोह व परिग्रह जैसी दुष्प्रवृतियों के निग्रह का संदेश देते हैं।
गणेशजी की लम्बी सूंड, सूप से चौडे कान धीर, गंभीर, सूक्ष्म
बुद्धि और सबकी सुनने और सार तत्व को ग्रहण करने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही बड़ा
पेट दूसरों की बातों व भेद को स्वयं तक रखने व सार्वजनिक न करने की क्षमता की सीख
देते हैं।
पाश-अंकुश-वरमुद्रा तम, रज एवं सत गुणों पर विजय के प्रतीक हैं, जो गणेशजी
की त्रिगुणातीत शक्ति से जोड़ते हैं और मोदक जीवन की मधुरता एवं आनन्द का प्रतीक
हैं। गणेशजी का एक पैर जमीन पर और दूसरा मुड़ा हुआ रहता है, जो सांसारिकता के साथ
आध्यात्मिकता के संतुलन का संदेश देते हैं।
गणेशजी जल तत्व के अधिपति देवता भी हैं। कलश में जल की स्थापना
के साथ इसमें ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियों का आवाहन करते हुए पूजन किया जाता है। इस
सूक्ष्म संदेश के साथ गणेशजी प्रतीकात्मक रुप में जल संरक्षण की भी प्रेरणा संदेश
देते हैं।
गणेशजी के विविध नामों में भी गूढ़ रहस्य छिपे हैं, जो भक्तों व साधकों
को जीवन में सर्वतोमुखी विकास की प्रेरणा देते हैं। इनका विनायक नाम
नायकों के स्वामी अर्थात नेतृत्व शक्ति का प्रतीक है। गणाध्यक्ष के रुप में
ये सभी गणों के स्वामी अर्थात श्रेष्ठों में भी श्रेष्ठ हैं। इनका एकदन्त स्वरुप
एक तत्व की उपासना और ब्रह्मतत्व से एकता की प्रेरणा देता है। धूमकेतु के
रुप में ये सफलताओं का चरम और सिद्धि विनायक के रुप में बुद्धि, विवेक और
सफलता के प्रतीक माने जाते हैं। तथा विकट रुप में गणेशजी दुष्टों के लिए
काल स्वरुप हैं।
इस तरह ऋद्धि-सिद्धि के दात्ता, विघ्नविनाशक गणेशजी मांगलिक कार्यों में प्रथम पूज्या होने का साथ जीवन में समग्र सफलता एवं उत्कर्ष के प्रतीक हैं और गणेश उत्सव में इनके पूजन के साथ परिक्रमा का भी विशेष महत्व माना जाता है। इनके मंदिर में तीन वार परिक्रमा का विधान है। औम गं गणपतये नमः मंत्र के जाप के साथ इसे सम्पन्न किया जा सकता है। और भगवान गणेश का दूसरा लोकप्रिय एवं शक्तिशाली मंत्र है - वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विध्न कुरुमेदेवा सर्वकार्येषु सर्वदा। अर्थात्, टेड़ी सुंड वाले विशालकाय, करोड़ों सूर्यों के समान तेजवाले हे देव, आप मेरे सभी कार्यों को हमेशा बिना किसी विघ्न के पूरा करें।