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रविवार, 30 नवंबर 2025

कर्म की खेती, आस्था की उड़ान

ईष्ट के संग, जीवन का पथ संधान...


कर्म की खेती, विचारों के बीज,

भावनाओं का सिंचन, आस्था की उड़ान,

धर्म का पथ रुहानी, सत्य का संधान,

वाकि ईष्ट की इच्छा, ईश्वर का कृपा विधान ।1।

 

जो समझ आया, वो करते गए,

अंतरात्मा का थाम दामन, अंधड़ का सामना करते चले,

मंजिल का नहीं रहा अधिक ठौर ठिकाना,

अपने कर्तव्य पथ पर बस आगे बढ़ते चले ।2।

 

होती रही राह में भूल चूकें भी कई,

होश आते ही उनको सुधारते चले,

नहीं कभी सोचा किसी का बुरा,

जो बन पड़ा सबका भला करते रहे ।3।

 

नहीं रहा कोई बंधन स्वीकार,

न किसी को कभी बाँध कर रखे,

सब परमात्मा के भेजे अपने पराए,

उसी में रमकर सबको निभाते रहे ।4।

सुखी को देख होते रहे प्रमुदित,

दुःखी को देख ह्दय से हुए भावुक,

अनाधिकार चेष्टा अवश्य उलझाती रही राह में,

अपमान नहीं उपेक्षा का सुत्र अपनाते रहे ।5।

 

रहा अग्नि परीक्षाओं का दौर कुछ लम्बा,

रास्ते में करारे सबक झोली में गिरते रहे,

कर्मों की खेती लहलहाने को तैयार अब तो,

दूर मंजिल के दिग्दर्शन भी हो चले ।6।

 

रखना याद विधान ईश्वर का, जो अटल,

कर्म की गति सूक्ष्म अति गहन,

चाहे हो भगवान राम कृष्ण या सिद्ध पुरुष कोई,

कर्म के विधान से नहीं बच सका यहाँ कोई ।7।

 

एक ही मार्ग शांति, स्वतंत्रता का,

प्रकाश, आनन्द, सुकून का यहाँ,

अपने भीतर तलाश कर सुख की,

बाहर इसकी खोज में भटकना नादानी ।8।

 

सकल संभावनाएं भरकर जब भेजा है खुदा ने,

तो फिर कैसी भटकन, कब तक खुद से अनजान,

उम्दा विचार बीजों के संग कर लो अब कर्म की खेती,

करो ईष्ट के संग जीवन पथ का मौलिक संधान ।9।


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