दर्शन रामलल्ला के
3 जुलाई 2025 को प्रातः 8 बजे अतिथि गृह से बाहर निकलकर गेट पर ही एक एक
कैफिटेरिया में सुबह का नाश्ता करते हैं और थोडा पैदल चल कर बाहर मुख्य मार्ग पर
आते हैं, जिसे घनौरा वाइपास कहा जाता है। यहाँ सुदर्शन हॉटल के पास ऑटो में चढ़ते
हैं। लगभग आधा घंटा में हम अयोध्या धाम के समीप थे। रास्ते में लगभग एक किमी पहले
साज-सज्जा युक्त सड़कों के दृश्य हमें किसी विशेष स्थल में प्रवेश का गहरा अहसास
दिला रहे थे। हम पूरे मार्ग का वीडियो कैप्चर कर रहे थे, ऑटो के दाईं ओर से वाइक
सवार इशारा करता है कि आगे का दृश्य विशेष है। पुल से राममंदिर के पहले दर्शन होते
हैं। पुल से नीचे उतर कर ऑटो सड़क के अंतिम छोर पर हमें उतारता है। सुरक्षा कारण व
ट्रैफिक सुविधा के चलते पुलिस इससे आगे नहीं जाने दे रही थी।
अतः लगभग 10-15 मिनट चल कर हम मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचते हैं।
अंदर प्रवेश करते ही बहुत बड़े विश्रामकक्ष के दर्शन होते हैं। यहाँ सीलिंग से जैसे हेलीकॉप्टर के बड़े-बड़े पंखे लटके हुए थे। साइड में शीतल जल की व्यवस्था थी। साथ ही स्त्री-पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रसाधन की बेहतरीन सुविधा थी। 15-20 मिनट में बाहर से आए थके-हारे दर्शनार्थी तरोताजा होकर दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे। मंदिर के बाहर का यह प्रयोग हमें बहुत अच्छा लगा। लगा कि क्या अच्छा होता कि हर मंदिर व तीर्थ स्थल में दर्शन से पूर्व तीर्थयात्रियों की ऐसी स्वागत-विश्राम व्यवस्था हो।
यहाँ से बाहर निकलकर हम आगे बढ़ते हैं। बैरेक के बीच बने मार्ग से, नीचे दरियाँ बिछी थी। कुछ हिस्सा सीमेंट का होने के चलते बहुत तप रहा था। सो हियादत है कि कोमल चर्म बाले तीर्थयात्री गर्मी के मौसम में पतली जुराब अवश्य पहनें, ताकि गर्मी के अनावश्यक ताप से बच सके। हालाँकि आगे दरियाँ बिछी हैं औऱ अंतिम पड़ाव में तो जल की भी व्यवस्था है।
रास्ते में पीपल के विशाल पेड़ को पार कर सुरक्षा गेट से प्रवेश करते हैं। सुरक्षा निरीक्षण के बाद बाहर एक भव्य परिसर में प्रवेश होते हैं, जिसमें भव्य भवन मंदिर का ही प्रतिरुप जैसा दिखता है, जिसके पहली नज़र में राम मंदिर के प्रवेश द्वार होने का भ्रम हुआ। और हम उसी रुप में इसकी फोटो व वीडियो भी लेते रहे।
लेकिन बाद में पता चला की यह तो क्लॉक रुम तथा विश्राम की व्यवस्था
है। यहाँ जुत्ते-चप्पल के साथ बेग, बटुआ व मोबाइल पेन सब सामान जमा किया जाता है। फिर
इनको ड्राअर में बंद कर ताला लगाया जाता है और चाबी दर्शनार्थी को दी जाती है,
बापिसी में इसी के आधार पर उनका सामान बापिस होता है।
अगले कुछ सौ मीटर के बाद हम मंदिर में प्रवेश करते हैं। रास्ते में जल
की उचित व्यवस्था थी, जिसमें पैर धुल जाते हैं और मस्तिष्क पर भी इसका शीतल प्रभाव
बहुत राहत देता है। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए परकोटे पर गरुढ़, हनुमानजी व द्वारपाल के
दर्शन होते हैं। मुख्य मंदिर भवन के प्रवेश द्वार पर विभिन्न देवी-देवताओं के
चित्र उत्कीर्ण है, जिनकी सूक्ष्म नक्काशी देखते ही बनती है। यहीं कौने में एक
स्थान पर बैठ कर हवा के झौंके का आनन्द लेते हैं और कुछ मिनट बैठकर ध्यान करते
हैं।
फिर उचित मनोभूमि के साथ मंदिर में प्रवेश करते हैं। रामलल्ला के
चिरप्रतिक्षित दर्शन के हम साक्षी होने जा रहे थे। सामने रामलल्ला की भव्य प्रतिमा
सज्जी थी। राह में खम्बों व ऊपर छत पर की गई नक्काशी भी देखते ही बन रही थी। सामने
रामल्ला के दर्शन कर दर्शनार्थी भावविभोर हो रहे थे। अपनी भी चिरप्रतिक्षित इच्छा
आज पूर्ण हो रही थी। यहाँ के दिव्य परिवेश में स्वयं को डूबा हुआ अनुभव कर रहे थे।
बाहर निकलने पर एक कौने में कुछ पल शांत ध्यान में बैठते हैं, हवा के झौंके को
अनुभव करते हैं, जैसे की तीर्थ परिसर की दैवीय कृपा इनके रुप में सभी के ऊपर बरस
रही हो। हम भी अपने भावों के सागर में गोते लगाते रहे और फिर सुरक्षा कर्मियों की
आबाज़ सुनकर जागते हैं और उठकर आगे बढ़ते हैं।
बाहर निकलते हुए रास्ते में ही प्रसाद को पाते हैं। दूसरे रुट से परिक्रमा करते हुए नीचे बाहर निकलते हैं। रास्ते में प्राचीन बरगद के पेड़ में बंदरों के परिवार के खेलते, झूमते व आपस में क्रीड़ा विनोद के दृश्य देख ऐसे लग रहा था कि जैसे रामराज्य में वानर अपने अधिपति के शासन में निश्चिंत, निर्द्वन्द व मस्त-मगन विचरण कर रहे हों। थोड़ा आगे क्लॉक रूम के पीछे बड़े-2 एसी कक्ष पड़ते हैं, जहाँ दर्शन कर बाहर लौट रहे तीर्थयात्री विश्राम कर रहे थे।
हम भी वहाँ कुछ मिनट विश्राम करते हैं और फिर क्लॉक रुम से सामान लेकर
फर्श पर बैठ जाते हैं, जहाँ ताजी हवा के ऐसे झौंके आ रहे थे कि अंदर के एसी इसके
सामने फेल थे। यहाँ चारों ओर का दृश्य देखने लायक था। क्या बच्चे, क्या बुढ़े,
क्या महिलाएं, क्या प्रौढ़ सब फर्श पर लेटकर धन्य अनुभव कर रहे थे। हवा का झौंका
प्राकृतिक एसी का काम कर रहा था। ऊपर छत की ओर वानर सेना अपनी उछल-कूद के साथ जैसे
उत्सव मना रही थी।
यहाँ के बंदर परिसर में कई स्थानों पर मिले। लेकिन इनकी प्रकृति एकदम उलग दिखी। शांत, सौम्य व स्वयं में मस्त-मग्न। यहाँ आधा घंटा बैठने के बाद बाहर आते हैं। पियाउ की उचित व्यवस्था परिसर में थी। जल पीकर बाहर शार्टकट से बाहर गेट तक आते हैं, जहाँ सीता रसोई में खिचड़ी प्रसाद बंट रहा था। स्थानीय महिलाएं ही इसको परोस रही थी।
इस तरह हमारा राम मंदिर का दर्शन पूरा होता है और कहीं गहरे अंतरात्मा को छू जाता है।
सैंकड़ों वर्षों के वनवास के बाद जिस तरह से रामलल्ला की प्राण प्रतिष्ठा होती है, यह भावुक करने वाला प्रकरण है। हालाँकि अभी मंदिर का निर्माण कार्य चल ही रहा है, लेकिन जितना हो चुका है, वह स्वयं में अभूतपूर्व है, जिसे मानवीय नहीं दैवीय संकल्प का प्रतीक माना जा सकता है। इसे किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष तक सीमित न कर पीढ़ियों के त्याग-बलिदान व राष्ट्र के संम्वेत संकल्प का मूर्त रुप माना जा सकता है। हाँ इसके माध्यम सनातन संस्कृति एवं इसकी आध्यात्मिक विरासत के प्रति संवेदनशील सुपात्र व्यक्ति बने हैं, जो युग परिवर्तन के लिए उदयत महाकाल की चेतना से संवाहक बनते हैं और इस दैवीय कार्य को सम्पन्न किए हैं, जिसके साथ नए युग के सुत्रपात का शंखनाद देखा जा सकता है। कोई भी सनातन धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति यहाँ पधार कर इसे अनुभव कर सकता है और यहाँ की तीर्थ चेतना का स्पर्श पाकर रुपांतरित हुए बिना नहीं