गंगाजी में डुबकी के संग जंगल में मंगल
हर वर्ष सर्दी का मौसम आते ही गंगाजी के टापू जैसे नेह भरा आमन्त्रण
देते हैं पधारने के लिए अपने आंचल में। न जाने कितने सामूहिक भ्रमण की यादें
गंगाजी के टापूओं की गोद में छात्र-छात्राओं, शिक्षकों व कार्यकर्ता भाई-बहनों के
साथ जुड़ी हुई हैं, जो क्रमिक रुप से एकांतिक प्रवास की ओर सिमटती जा रही हैं।
तीन दशक पूर्व का ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में प्रवास का दौर, जब समूह के साथ गंगा पार, नदी को पार करते हुए जाते थे, जहाँ टापूओं में बेल फल से लेकर जंगली बेर का आनन्द लेते। पार करते हुए गंगाजी में डूबने व फिर सामान को बटोरते हुए पार करने की यादें ताजा हैं। हरिद्वार महाकुंभ के दौरान इन्हीं टापुओं में बाबाओं के तम्बू गढ़े रहते। पार जाने के लिए अस्थायी पुल की व्यवस्था रहती और सारे टापू साधु-संतो की छावनियों में रुपाँतरित हो जाते।
फिर ब्रह्मवर्चस के निदेशक एवं विवि के कुलाधिपति महोदय के साथ गंगा
भ्रमण की भी कई यादें सहज ही चिदाकाश में तैर जाती हैं। हरिपुर गाँव के आगे गंगा
के किनारे टॉवर के पास, फिर आगे अनुसूइया आश्रम के प्रांगण में और गंगाजी के उस पर
चीला डैम के साथ कई यादें जुड़ी हुई हैं, हालाँकि काल के प्रवाह में अब ये मात्र
चित्त को कुरेदती हुई स्मृतियों तक सिमटी हुई हैं।
फिर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के
छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों के संग टापूओं के कई सामूहिक भ्रमण याद हैं, जिनको
किश्तों में विजुअल स्टोरीज के रुप में प्रकाशित किया जा सकता है। हालाँकि गंगाजी
के तट पर कई दुर्घटनाओं के चलते ऐसे भ्रमण अब बीते दिनों की बातों तक सामित हो गए
हैं। फिर यदा-कदा पासआउट विद्यार्थियों के साथ गंगाजी के टापुओं पर भ्रमण की यादें
भी जुड़ी हुई हैं, जो समय के साथ अब सिमट रही हैं।
अभी शेष बची हैं इन टापुओं की सहज-स्फुर्त यात्राएं, जो कभी कभार उपलब्ध शिक्षकों व मित्रों के साथ संभव हो पाती हैं। पिछले ही वर्षों ऐसी यात्रा का आगाज़ हुआ था, जिसको आप संपादित वीडियो के रुप में देख व अनुभव कर सकते हैं।
लगता है कि ये यात्राएं मात्र इंसानी इच्छा से निर्धारित नहीं होतीं। कहीं गहरे अंतरात्मा की समवेत पुकार और गंगाजी की कृपा स्वरुप ऐसे संयोग घटित होते हैं और कुछ यादगार पल स्मृतिकोश से जुड़ते हैं और कुछ कर्मों का प्रवाह लेन-देन के क्रम में अपने नियत निष्कर्ष की ओर आगे बढ़ता है।
इसी वर्ष 2025 प्रयागराज महाकुंभ के दौरान जब वहाँ जाने का संयोग नहीं
बन पाया तो मकर संक्राँति के दिन इन्हीं टापुओं पर गंगाजी का जैसे बुलावा आता है
और यहीं सप्तसरोवर क्षेत्र में महाकुंभ के भावभरे सुमरण के साथ गंगाजी में डुबकी के
संग कुंभ स्नान का सुयोग घटित हो जाता है।
इस वर्ष 2025 के दिसम्बर माह में ऐसे ही एक सहज स्फुर्त टापू भ्रमण का
संयोग बनता है। शोध छात्र की भारतीय देशज संचार परम्परा पर सप्तवर्षीय शोध-साधना
की पूर्णाहुति के रुप में भी इसका संयोग बन रहा था।
गंगा कुटीर घाट नम्बर 18 से प्रवेश होता है, जहाँ इस वर्ष गंगाजी की निर्मल धार पर्याप्त गर्जन-तर्जन के साथ प्रवाहित हो रही है, मानो पहाड़ से उतर कर मैदान की ओर बढ़ने का उत्साह संभाल नहीं पा रही हो।
हरिद्वार में गंगाजी को इसके निर्मलतम स्वरुप में देखने व अनुभव करने के लिए यह घाट सर्वोत्तम है। यहीं पर हरिद्वार क्षेत्र में गंगाजी के पहले दिग्दर्शन होते हैं।
यहाँ से उत्तर की ओर बिरला घाट को पार करते हुए, आगे व्यास मंदिर घाट
के समीप से गंगा की पहली धार को पार करते हैं। आगे रेत के मैदान को पार कर
पत्थरीले मैदान से होकर दूसरी धार को पार करते हैं। गंगाजी के किनारे कुछ
श्रद्धालु, परिवारजन तो कुछ बाबाजी विश्राम कर रहे थे, कुछ स्नान कर रहे थे, तो
कुछ ध्यान में मग्न थे। एक विश्राँति, शांति का अनुभव यहाँ सहज रुप में हो रहा था।
जीवन के सकल द्वन्द-विक्षोभ और तनाव-अवसाद जैसे गंगाजी के कलकल निनाद में विलीन हो
रहे हों।
थोड़ी आगे पेड़ों के नीचे चिर-परिचित रेतीले टीले पर हम आसन जमाते
हैं, जहाँ से गंगाजी के दर्शन सुलभ थे और दूर-दूर के दृश्य का अवलोकन कर सकते थे।
यहाँ चूल्हा पहले से ही बना रखा था। यहाँ आसन बिछाते हैं, लकड़ी बटोरते हैं और धूप
जलाकर जलपान व स्नान ध्यान का कार्यक्रम शुरु करते हैं।
पास में चरती गाय स्थान की जंगली जानवरों से रहित होने की सूचना दे
रहीं थी। दो लड़के जंगल से आते दिखे, शायद इनके चरवाहे रहे हों या हमारी ही तरह
घूमने आए हों।
चाय की चुस्की के साथ चर्चा करते हुए आज की पिकनिक का उद्घाटन होता है
और फिर गंगाजी के किनारे स्नान के लिए जाते हैं। गंगाजी के बर्फीले स्पर्श वाले
निर्मल जल में जैसे तन-मन के सकल विकार धुल रहे थे। आत्म-चैतन्यता जाग्रत हो रही
थी और सारी थकान जैसे छूमंतर हो जाती है।
फिर आकर चाय-नाश्ते का क्रम चलता है। चाय पर आपसी संवाद के अतिरिक्त
विभाग एवं विश्वविद्यालय के विकास सम्बन्धी भावी संभावनाओं पर चर्चा होती है। साथ
ही धुनी, मचान और गुफा आदि पर भी विचार-विमर्श होता है, जो यहाँ पर साधु-संतों की
तप साधना के प्रचलित प्रारुप हैं और किसी भी साधक को प्रयोग के लिए लुभा सकते हैं।
अपना आज का संक्षिप्त प्रवास पूरा कर, सामान समेटते हुए पूरा दल
गंगाजी की धाराओं को पार करते हुए घाट नम्बर 18 पहुँचता है। और अपने पात्रों में गंगाजाल
को भरकर, गंगाजी को प्रणाम करते हुए आज के सफल प्रवास के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता
है और विवि परिसर की ओर बढ़ता है।
सारतः यदि कोई हरिद्वार पधारता है, तो सहज ही इन टापुओं में गंगाजी के तट पर स्नान-ध्यान व आत्मचिंतन के साथ भीड़ से दूर कुछ शांति-सुकून भरे एकांतिक यादगार पल बिता सकता है और एक नई ऊर्जा के साथ अपने कार्यक्षेत्र के लिए तैयार हो सकता है।