2025 बीत चला, 2026 में मंजिल का नया सोपान मिलेगा
अंधेरी सुरंग के पार एक रोशनी का टिमटिमाना,
सोए बुझे अरमानों में जैसे नए पंख का लग जाना,
घनघोर रात के बाद जैसे भौर का उजाला छा जाना,
रेगिस्तान में भटक रहे प्यासे को जल का स्रोत मिल
जाना।
लेकिन अभी तो क्षितिज के पार बहुत दूर है मंजिल,
अग्नि परीक्षा के कई दौर हैं अभी बाकि,
बाहरी छल-छद्म के खेलों का भी होगा राह में सामना,
थक जाओगे राह में पथिक, लेकिन तुम्हें है बस चलते
जाना।
सबसे बड़ी चुनौती हो स्वयं, चित्त् शुद्धि का विकट
कार्य,
बिगड़ैल मन की कुचालों को भी है पग-पग पर साधना,
बार-बार गिरोगे, फिसलोगे, लेकिन लक्ष्य सिद्धि तक
अनन्त काल तक बिना हारे तुम्हें है बस चलते जाना।
जहाँ अपनी शक्ति चूक जाए, हाथ खड़े हो जाएं,
वहाँ दैवीय शक्ति, गुरु अवलम्बन में क्या
शर्मिंदगी,
दो कदम बढ़ो उस ओर, वह दस कदम पास मिलेगा,
2025 बीत चला, 2026 में मंजिल का नया सोपान
मिलेगा।

