रविवार, 31 अगस्त 2025

गणपति बप्पा मोरया

 

भगवान गणेश से जुड़ा प्रेरणा प्रवाह


गणेश उत्सव का दौर चल रहा है, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरु होने वाला दस दिवसीय यह उत्सव अनन्त चतुर्दशी तक चलता है। कभी महाराष्ट्र में लोकप्रिय यह उत्सव आज लगभग पूरे देश में फैल चुका है और गणपति बप्पा मोरया के जयघोष की दिगंतव्यापी गूंज के साथ विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग और प्राँतों की सीमाओं को पार करते हुए सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का उत्सव बन चुका है।

माँ पार्वती के मानस पुत्र - गणेशजी आदि शक्ति माँ पार्वती के मानस पुत्र हैं, उनकी संकल्प सृष्टि हैं, जिसका सृजन उन्होंने स्नान के समय द्वारपाल के रुप में अपनी पहरेदारी के लिए किया था। जब महादेव द्वारा गलती से संघर्ष के दौरान इनका सर धड़ से अलग हो जाता है, तो वे प्रायश्चित रुप में शिशु हाथी का सर धड़ पर लगाकर गणेशजी को नया जीवन व रुप देते हैं। और दोनों शिव-शक्ति के वरदान स्वरुप बाल गणेशजी सभी देव शक्तियों में प्रथम पूज्य बनते हैं। तब से सनातन धर्म में हर मांगलिक कार्य के प्रारम्भ में गणेशजी के पूजन का क्रम जुड़ता है। हर कार्य के शुभारम्भ को श्रीगणेश कहना भी इसी पृष्ठभूमि में स्पष्ट होता है।

आध्यात्मिक रुप में गणेश मूलाधार के देवता हैं। मालूम हो कि मूलाधार मानवीय सूक्ष्म शरीर में पहला चक्र पड़ता है, जिसका जागरण आध्यात्मिक प्रगति का शुभारम्भ माना जाता है। मूलाधार के देवता के रुप में भगवान गणेशजी की कृपा से इस चक्र का अर्थात आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है।

तात्विक रुप से भगवान गणेश अचिंत्य, अव्यक्त एवं अनंत हैं, लेकिन भक्तों के लिए इनका स्थूल स्वरुप प्रत्यक्ष है और प्रेरणा प्रवाह से भरा हुआ है।

गणेश जी का रुपाकार अन्य देवशक्तियों से देखने में थोड़ा अलग लगता है, आश्चर्य नहीं कि बच्चे तो गणेशजी को एलीफेंट गोड के नाम से भी पुकारते हैं। उनकी लम्बी सूंड, सूप से चौड़े कान, बड़ा सा पेट, मूषक वाहन, हाथ में पाश-अंकुश लिए वरमुद्रा, मोदक प्रिय गणेशजी सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन इसके गूढ़ रहस्य को न समझ पाने के कारण गणेशजी से जुड़े भाव प्रवाह को ह्दयंगम नहीं कर पाते और इनसे जुड़े आध्यात्मिक लाभ से वंचित रह जाते हैं।

गणेशजी का वाहन मूषक विषयोनमुख चंचल मन का प्रतिनिधि है, जिस पर सवारी कर गणेशजी उसकी विषय लोलुपता पर अंकुश लगाते हैं। ये साधक को काम, क्रोध, लोभ, मोह व परिग्रह जैसी दुष्प्रवृतियों के निग्रह का संदेश देते हैं।  

गणेशजी की लम्बी सूंड, सूप से चौडे कान धीर, गंभीर, सूक्ष्म बुद्धि और सबकी सुनने और सार तत्व को ग्रहण करने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही बड़ा पेट दूसरों की बातों व भेद को स्वयं तक रखने व सार्वजनिक न करने की क्षमता की सीख देते हैं।

पाश-अंकुश-वरमुद्रा तम, रज एवं सत गुणों पर विजय के प्रतीक हैं, जो गणेशजी की त्रिगुणातीत शक्ति से जोड़ते हैं और मोदक जीवन की मधुरता एवं आनन्द का प्रतीक हैं। गणेशजी का एक पैर जमीन पर और दूसरा मुड़ा हुआ रहता है, जो सांसारिकता के साथ आध्यात्मिकता के संतुलन का संदेश देते हैं।

गणेशजी जल तत्व के अधिपति देवता भी हैं। कलश में जल की स्थापना के साथ इसमें ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियों का आवाहन करते हुए पूजन किया जाता है। इस सूक्ष्म संदेश के साथ गणेशजी प्रतीकात्मक रुप में जल संरक्षण की भी प्रेरणा संदेश देते हैं।

गणेशजी के विविध नामों में भी गूढ़ रहस्य छिपे हैं, जो भक्तों व साधकों को जीवन में सर्वतोमुखी विकास की प्रेरणा देते हैं। इनका विनायक नाम नायकों के स्वामी अर्थात नेतृत्व शक्ति का प्रतीक है। गणाध्यक्ष के रुप में ये सभी गणों के स्वामी अर्थात श्रेष्ठों में भी श्रेष्ठ हैं। इनका एकदन्त स्वरुप एक तत्व की उपासना और ब्रह्मतत्व से एकता की प्रेरणा देता है। धूमकेतु के रुप में ये सफलताओं का चरम और सिद्धि विनायक के रुप में बुद्धि, विवेक और सफलता के प्रतीक माने जाते हैं। तथा विकट रुप में गणेशजी दुष्टों के लिए काल स्वरुप हैं।

इस तरह ऋद्धि-सिद्धि के दात्ता, विघ्नविनाशक गणेशजी मांगलिक कार्यों में प्रथम पूज्या होने का साथ जीवन में समग्र सफलता एवं उत्कर्ष के प्रतीक हैं और गणेश उत्सव में इनके पूजन के साथ परिक्रमा का भी विशेष महत्व माना जाता है। इनके मंदिर में तीन वार परिक्रमा का विधान है। औम गं गणपतये नमः मंत्र के जाप के साथ इसे सम्पन्न किया जा सकता है। और भगवान गणेश का दूसरा लोकप्रिय एवं शक्तिशाली मंत्र है - वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विध्न कुरुमेदेवा सर्वकार्येषु सर्वदा। अर्थात्, टेड़ी सुंड वाले विशालकाय, करोड़ों सूर्यों के समान तेजवाले हे देव, आप मेरे सभी कार्यों को हमेशा बिना किसी विघ्न के पूरा करें।


मत भूलना समय की गति, काल की चाल...

 

रख धैर्य अनन्त, आशा अपार...

मत भूलना, याद रखना,

समय की गति, काल की चाल,

सब महाकाल की इच्छा, नहीं कोई इसका अपवाद ।1।


जब समय ठहरा सा लगे, काल पक्ष में न दिखे,

बिरोधियों की दुरभिसंधियाँ सफल होती दिखे,

और मंजिल दृष्टि से ओझल दूर होती दिखे ।2।


सही समय यह अपने गहनतम मूल्याँकन का,

अपनी दुर्बलता को सशक्त करने का,

उड़ान भरने के लिए इंधन एकत्र करने का ।3।


बाकि इतराने दो अपने दर्प-दंभ अहंकार में इनको,

औचित्य को हाशिए में ले जाकर, चैन के गीत गाने दो इन्हें ,

नहीं अधिक लम्बा खेल माया का, बस कर लें थोड़ा इंतजार ।4।


यहाँ कुछ भी नहीं रहता हरदम,

हर चीज के उतार-चढ़ाव का समय तय यहाँ,

और हर घटना, जीत-हार सब सामयिक यहाँ ।5।


कितने तीस मार खान आए यहाँ, कितने गए,

अर्श से फर्श पर गिरकर, शिखरों से भूलुंठित होकर,

काल के गर्त में हर हमेशा के लिए समा गए ।6।


यहाँ भी कुछ ऐसा हो जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं,

रख धैर्य अनन्त, आशा अपार,

अपने स्वधर्म पर अढिग, कर सही समय का इंतजार ।7।


प्रकृति को अपना खेल खेलने दो, कर्मों को अपना चक्रव्यूह रचने दो,

संचित कर्म, प्रारब्ध के विस्फोट से नहीं बच सकता कोई,

बाकि इच्छा महाकाल की, तुम तो औचित्य का दामन थामे रहो ।8



शनिवार, 30 अगस्त 2025

जब आया बुलावा अयोध्या धाम का, भाग-4

गायत्री शक्तिपीठ अयोध्या में कुछ यादगार पल


राममंदिर से बाहर निकलकर वाईं ओर मुढ़ते हुए हम हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ते हैं। समय बचाने व नया अनुभव लेने के लिए हम विशेष रिक्शा-वाहन में सवार हो जाते हैं, जो कुछ ही मिनट में हमें हनुमान गढ़ी के बाहर सड़क पर उतार देता है। रास्ते भर दोनों ओर बाजार की सजावट देखने लायक थी और तीर्थयात्रियों की चहचाहट पीछे जैसी ही थी। संकरी गलियों को पार करते हुए हम हनुमान गढ़ी मंदिर के सामने पहुँचते हैं। यह एक पहाड़ी टीले की चोटी पर स्थिति मंदिर है, जिसमें प्रवेश के लिए 58 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है।

हम भी सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पंक्ति में लग जाते हैं, अधिक भीड़ नहीं थी। लेकिन लाइन बीच में ठहरी हुई थी। अभी दोपहर के सवा तीन बजे थे। पता चला कि दर्शन चार बजे से होंगे। सो हम वहीं से भाव निवेदन करते हुए बापिस मुड़ जाते हैं, क्योंकि आज का ही दिन हमारे पास शेष था, कुछ घंटे बचे थे, जिसमें इस धर्म नगरी का आवलोकन करना था।

रास्ते में माथे में चंदन व तिलक छाप लगाने वालों की भीड़ लगी थी। इनका चिपकू रवैया थोड़ा असहज करता है, चित्त की शांति व भक्ति भाव की लौ को बिखेर देता है। तीर्थ स्थलों पर इनका जमावड़ा एक तरह से भक्ति दर्शन में व्यवधान ही रहता है। ऊपर से जब माथा पसीने से तर-बतर हो और चेहरे पर गंगा-जमुना बह रही हो तो, तिलक छापा लगाने का कोई औचित्य नहीं लगता। लेकिन इनका अपना धंधा जो ठहरा, सो ये अपनी निष्ठा के साथ लगे रहते हैं, भक्तों की भाव-संवेदना का संदोहन करने। लगा कि इनके उचित नियोजन की आवश्यकता है। मंदिर प्रबन्धन इस दिशा में कुछ कर सकता है। राममंदिर में इस तरह का कोई व्यवधान नहीं था।

यहाँ से आगे बढ़ते हैं, अगला पड़ाव कनक भवन था। यह कितनी दूरी पर स्थित है, पूछने पर स्थानीय लोगों का एक ही उत्तर रहता – बस दो सौ मीटर। कितने दो सौ मीटर निकल गए, लेकिन हर जगह पूछने पर दौ सौ मीटर की ही हौंसला फजाई मिलती रही। यहाँ सड़कें काफी चौड़ी की गई हैं और साफ सूथरी भी। एक तरह से तीर्थ कोरिडोर के तहत लगा पर्याप्त कार्य हुआ है। बीच में साइड में रुकने के उचित स्थल भी दिख रहे थे। पूजन सामग्री से लेकर खान-पान की तमाम दुकानों के साथ मार्केट पूरी तरह से सज्जी हुई थीं। हर दुकान में पेढ़ों के ढेर लगे थे। विविध आकार में, गोल से लेकर चपटे व सिलेंडर आकार के, जो काफी मशहूर माने जाते हैं।

इसी क्रम में कनक महल के गेट से दर्शन होते हैं। यह पिछला गेट था, जहाँ से प्रवेश निशिद्ध था, अतः बाहर से ही दर्शन कर आगे बढ़ते हैं। हम गायत्री शक्तिपीठ की खोज में भी थे, जो पता चला कि ठीक इसके पिछली साइड पड़ता है, सो पीछे मूड़कर एक गली से होकर आगे बढ़ते हैं। कनक भवन के दूसरी ओर के गेट के बाहर भोजन प्रसाद की उत्तम व्यवस्था के विज्ञापन लगे थे। अभी तो सेवा बंद थी। 70 रुपए से 120 रुपए में थाली की व्यवस्था दिख रही थी।

निर्माणाधीन, गायत्री शक्तिपीठ अयोध्या

कनक भवन से ठीक आगे किनारे पर गायत्री शक्तिपीठ का प्रवेश द्वार दिखा। इसके व्यवस्थापक बाबा राम केवल यादव से मुलाकात होती है। जिनकी लम्बी-लम्बी शुभ्रवर्णी दाढ़ी और केशों से सजा भव्य व्यक्तित्व विशेष ध्यान आकर्षित कर रहा था। इनके संवाद पर थोड़ी ही देर में अहसास हुआ कि एक गायत्री साधक से संवाद हो रहा है। संवाद के तार कहीं गहरे जुड़ रहे थे। इसी बीच हमारी सेवा में चाय-बिस्कुट आ जाते हैं। पास में ही तीन वरिष्ठ स्वयंसेवक पदाधिकारी अपने आसनों में शोभायमान थे और सभी अपने ऑफिशयल कार्यों में व्यस्त थे।

फिर हम ऊपर कक्ष में आकर थोड़ा विश्राम करते हैं। यहीं व्यवस्थापक महोदय से उनकी व शक्तिपीठ की कहानी का श्रवण करते हैं। जो रोचक ही नहीं रोमाँचक भी थी। हमारे लिए ज्ञानबर्धक भी। स्वयंसेवक माताजी बीच में बेल का शर्वत लेकर आती हैं। संवाद पर बाबाजी एक अद्भुत व्यक्तित्व के व्यक्ति निकले। 1981 से आचार्य़ श्रीरामशर्माजी से इनकी पहली मुलाकात होती है और तभी से मात्र आलू व चना पर निर्वहन कर रहे हैं।

परमपूज्य गुरुदेव द्वारा वर्ष 1981 में यहाँ अयोध्या आगमन हुआ था और उन्हीं के करकमलों द्वारा शक्तिपीठ की नींव पड़ी थी। इस भूमि की कई विशेषताओं की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और वर्तमान गतिविधिय़ों के प्रति हमारी जिज्ञासाओं का समाधान किया। इसे गायत्री तीर्थ शांतिकुंज का ही एक प्रतिरुप कह सकते हैं, जहाँ नाना प्रकार की गतिविधियाँ संचालित होती हैं। नियमित गायत्री साधना, यज्ञ, संस्कार के साथ यहाँ विभिन्न साधना सत्र, स्वावलम्बन, योग, संगीत, प्राकृतिक चिकित्सा, धर्म विज्ञान, आपदा प्रबन्ध, आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी जैसे लोकोपयोगी कार्यक्रमों की भी व्यवस्था है।

इनके संचालन हेतु पांच मंजिला भवन तैयार हो रहा है। इसकी छत से अयोध्या नगरी का विहंगम दृश्य देखने लायक था।

सभी तीर्थ स्थल यहाँ से दिख रहे थे। श्रीराममंदिर से लेकर हनुमानगढ़ा और दूर सरयू नदी। जिसका अवलोकन नीचे दिए वीडियो में कर सकते हैं।

शक्तिपीठ परिसर में ही निचले तल पर गायत्री मंदिर, सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा, भटका हुआ देवता और यज्ञशाला स्थापित हैं। बाहर बारिश शुरु हो चुकी थी, लग रहा था जैसे देव अभिसिंचन हमारे ऊपर हो रहा है। बाबा रामकेवलजी से विदाई लेकर हम लोग इस अभिसिंचन का आनन्द लेते हुए हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ते हैं। बारिश ओर तेज हो रही थी। सो आज दर्शन की संभावना नहीं थी। मंदिर के बाहर एक दुकान से यहाँ के स्पेशन खुरचन वाले पेढ़े का प्रसाद लेते हैं।

फिर पतली गलियों से बाहर निकलते हुए मुख्य मार्ग पर आते हैं, स्पेशन रिक्शा वाहन में ऑटो स्टेंड पहुँचते हैं। बापिसी में मार्केट का नज़ारा देखने लायक था, शाम के धुंधले अंधेरे में रौशनी की जगमग जैसे उत्सव का अहसास करा रही थी। 


ऑटो स्टैंड पहुंचने पर हम दूसरे ऑटो में बैठकर घनौरा चौक पहुँचते हैं। वहाँ से पैदल चलते हुए बापिस अतिथि गृह में पहुँचते हैं। इस तरह आज के अयोध्या धाम में तीर्थस्थलों के यथासंभव दर्शन का क्रम पूरा होता है। कल अवध विश्वविद्यालय में क्राँफ्रेंस में प्रतिभाग लेना था, जिसका हमें बेसव्री से इंतजार था। (इसे भाग2, लखनऊ से अयोध्या और अवध विश्वविद्यालय कैंपस पढ़ सकते हैं)

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