अन्तःप्रेरणा संग उठाएं साहसिक कदम
जीवन में लक्ष्य का होना बहुत महत्वपूर्ण है। बिना लक्ष्य के व्यक्ति उस पेंडुलम की भांति
होता है, जो इधर-ऊधर हिलता ढुलता तो रहता है, लेकिन पहुँचता कहीं नहीं। जीवन का
लक्ष्य स्पष्ट न होने पर व्यक्ति की ऊर्जा यूँ ही नष्ट-भ्रष्ट होती रहती है और हाथ
कुछ लगता नहीं। फिर कहावत भी है कि खाली मन शैतान का घर। लक्ष्यहीन जीवन शैतानियों
में ही बीत जाता है, निष्कर्ष ऐसे में कुछ निकलता नहीं। पश्चाताप के साथ इसका अंत
होता है और बिना किसी सार्थक उपलब्धि के एक त्रास्द कॉमेडी के रुप में वहुमूल्य
जीवन का अवसान होता है। अतः जीवन में लक्ष्य का होना बहुत महत्वपूर्ण है।
लेकिन जीवन लक्ष्य निर्धारण में प्रायः चूक
हो जाती है। अधिकाँशतः बाह्य परिस्थितियाँ से प्रभावित होकर हमारा जीवन लक्ष्य निर्धारित
होता है। समाज का चलन या फिर घर में बड़े-बुजुर्गों का दबाव या बाजार का चलन या
फिर किसी आदर्श का अंधानुकरण जीवन का लक्ष्य तय करते देखे जाते हैं। इसमें भी कुछ
गलत नहीं है यदि इस तरह निर्धारित लक्ष्य हमारी प्रतिभा, आंतरिक चाह, क्षमता और स्वभाव
से मेल खाता हो। लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो फिर जीवन एक नीरस एवं बोझिल यात्रा बन
जाती है। हम जीवन में आगे तो बढ़ते हैं, सफल भी होते हैं, उपलब्धियाँ भी हाथ लगती
हैं, लेकिन जीवन की शांति, सुकून और आनन्द से वंचित ही रह जाते हैं। हमारी
अंतर्निहित क्षमता प्रकट नहीं हो पाती, जीवन का उल्लास प्रस्फुटित नहीं हो पाता।
पेशे के साथ व्यक्तित्व में जो निखार आना चाहिए वह नहीं आ पाता।
क्योंकि जीवन के लक्ष्य निर्धारण में अंतःप्रेरणा
का कोई विकल्प नहीं। अंतःप्रेरणा सीधे ईश्वरीय वाणी होती है, जिससे हमारे जीवन
की चरम संभावनाओं का द्वार खुलता है। हर इंसान ईश्वर की एक अनुपम एवं बैजोड़ कृति
है, जिसे एक विशिष्ट लक्ष्य के साथ धरती पर भेजा गया है, जिसका कोई दूसरा विकल्प
नहीं। अतः जीवन लक्ष्य के संदर्भ में किसी की नकल नहीं हो सकती। ऐसा करना अपनी
संभावनाओं के साथ धोखा है, जिस छोटी सी चूक का खामियाजा जीवन भर भुगतना पड़ता है। यह
एक विडम्बना ही है कि मन को ढर्रे पर चलना भाता है। अपने मौलक लक्ष्य के अनुरुप
लीक से हटकर चलने का साहस यह नहीं जुटा पाता और भेड़ चाल में उधारी सपनों का बोझ
ढोने के लिए वह अभिशप्त हो जाता है। ऐसे में अपनी अंतःप्रेरणा किन्हीं अंधेरे
कौनों में पड़ी सिसकती रहती है और मौलिक क्षमताओं का बीज बिना प्रकट हुए ही दम
तोड़ देता है।
कितना अच्छा हुआ होता यदि व्यक्ति अपने सच का
सामना करने का साहस कर पाता। अंतर्मन से जुड़कर अपने मूल बीज को समझ पाता। बाहर
प्रकट होने के लिए कुलबुला रहे प्रतिभा के बीज को निहार पाता। अपनी शक्ति-सीमाओं
को, अपनी खूबी-न्यूनताओं को देख कर अपनी अंतःप्रेरणा के अनुरुप जीवन लक्ष्य
के निर्धारण का साहसिक कदम उठा पाता, जिसमें आदर्श की बुलंदियाँ भी होती और
व्यवहार का सघन पुट भी। ऐसे में नजरें आदर्शों के शिखर को निहारते हुए, कदम जड़ों
से जुड़े हुए शनै-शनै मंजिल की ओर आगे बढ़ रहे होते।
ऐसा न कर पाने का एक प्रमुख कारण रहता है, दूसरों
से तुलना व कटाक्ष में समय व ऊर्जा की बर्वादी। अपनी मौलिकता की पहचान न होने
की बजह से हम अनावश्यक रुप में दूसरों से तुलना में उलझ जाते हैं। भूल जाते हैं कि
सब की अपनी-अपनी मंजिलें हैं और अपनी अपनी राहें। इस भूल में छोटी-छोटी बातों में
ही हम एक दूसरे के प्रतिद्वन्दी बन बैठते हैं। इस बहकाव में अपने स्वधर्म पर
केंद्रित होने की वजाए हम कहीं ओर उलझ जाते हैं। ऐसे में अपने मौलिक बीज को निहारने-निखारने
की शांत-स्थिर मनःस्थिति ही नहीं जुट पाती। मन की अस्थिरता-चंचलता गहरे उतरने से
रोकती है। एक पल किसी से आगे निकलने की खुशी में मदहोश हो जाते हैं, तो अगले ही पल
दूसरे से पिछड़ने पर अंदर ही अंदर कुढ़ते व घुटते रहते हैं। बाहर की आपा-धापी और
अंधी दौड़ में कुछ यूँ उलझ जाते हैं कि अपने मूल लक्ष्य से चूक जाते हैं।
ऐसे में जरुरत होती है, कुछ पल नित्य अपने लिए
निकालने की, एकाँत में शांति स्थिर होकर बैठने की और गहन आत्म समीक्षा करने की,
जिससे कि अपनी प्रतिभा के मौलिक बीज को खोदने-खोजने की तथा इसके ईर्द-गिर्द
केंद्रित होने की। प्रेरक पुस्तकों का स्वाध्याय इसमें बहुत सहायक होता है। इसके
प्रकाश में आत्म समीक्षा व्यक्तित्व की गहरी परतों से गाढ़ा परिचय कराने में मदद
करती है। अपने व्यवहार, स्वभाव एवं आदतों का पेटर्न समझ आने लगता है। इसी के साथ अपने
मौलिक स्व से परिचय होता है और जीवन का स्वधर्म कहें या वास्तविक लक्ष्य स्पष्ट
होता चलता है।
खुद को जानने के प्रयास में ज्ञानीजनों का
संगसाथ बहुत उपयोगी सावित होता है। उनके साथ विताए कुछ पल जीवन की गहन अंतर्दृष्टि
देने में सक्षम होते हैं। जीवन की उच्चतर प्रेरणा से संपर्क सधता है, जीवन का मूल उद्देश्य
स्पष्ट होता है। भीड़ की अंधी दौड़ से हटकर चलने का साहस जुट पाता है और जीवन को
नयी समझ व दिशा मिलती है। जीवन नई ढ़गर पर आगे बढ़ चलता है। वास्तव में अपनी मूल
प्रेरणा से जुड़ना जीवन की सबसे रोमाँचक घटनाओं में एक होती है। इसी के साथ जीवन
के मायने बदल जाते हैं, जीवन अंतर्निहित संभावनाओं की अभिव्यक्ति का एक रोचक
अभियान बन जाता है।